वादे के अनुरूप उत्तर-मधुशाला का वह अंश जिसे मित्रगण "बस्तर की मधुशाला" के नाम से सुनाने का आग्रह करते रहे हैं ,प्रस्तुत है आज आप सबके लिए भी ......
बारम्बार छली जाती क्यों
मधुर-मधुर श्रापित "महुवा" /
बेचारी का दोष बता क्या
बना दिया मिल सबने "हाला" //
"बस्तर" की "महुवा" को छलकर
खूब निचोड़ी सबने हाला /
खुद तो मिट गयी पर औरों को
मस्त बनाती बन कर हाला //
पोर-पोर पीड़ित मधुबाला
रोज़ नचाती मधुशाला /
बैठे-ठाले कोई मतवाला
तोड़ न दे पीकर प्याला //
छली गयी है सदियों से ये
बस्तर की "निश्छल" हाला /
कुछ पीने वाले तो पी गए
बस्तर की असली मधुशाला //
चारागाह चरे "रखवाला"
भूखा सोये "जंगलवाला" /
ठौर-ठौर आ हर कोई खोले
बस्तर में अपनी मधुशाला //
...............मधुशाला अभी शेष है .......कल के लिए ......
ब्लॉग पर आते रहने और मधुशाला पर अपने विचारों से अवगत कराते रहने की कृपा करने का अनुरोध स्वीकार करें .....
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जवाब देंहटाएंएक जिन्न मिला टहलते हुए। पकड़कर यहाँ ले आया। आकर पढ़ी बस्तर की मधुशाला। बहुत सुन्दर लगी रचना। बधाई।
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kindly visit zealzen.blogspot.com
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