शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

अर्थ

सूरज तो 
अभी भी उगता है रोज 
प्रतीक ही खँडहर होते जा रहे हैं. 
एक-एक कर 
धराशायी होते जा रहे हैं अर्थ .
खंडित मूर्तियों के साथ तुकबंदी
और अस्पष्ट सी, शिलालेखों में उकेरी 
किसी अबूझ लिपि को पढ़ना 
बुद्धिविलास का हिस्सा बनकर रह गया है .
भग्न मुंडेरों पर बैठ
काँव-काँव करने से क्या लाभ ?
आइये , इसी बरसात में बोते हैं कुछ बीज 
नयी फसल में जब फूल खिलेंगे 
तो ख़ुश्बू के झोंकों से 
सजीव हो उठेंगीं मूर्तियाँ 
और सार्थक हो उठेंगें 
शून्य होते जा रहे अर्थ. 


4 टिप्‍पणियां:

  1. नये की तलाश न सिर्फ दिशाएं, बल्कि मंजिल भी तय करती है.

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  2. उम्मीद ....सफलता का पहला कुंजी

    बहुत सुन्दर रचना ...आभार

    मेरे ब्लॉग पे पधारे !
    http://anubhutiras.blogspot.com/

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  3. एक आशा का दीप आपने प्रज्वलित किया है.. कामना है कि इसका प्रकाश चतुर्दिक फैले!!

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  4. सलिल भाई एवं राहुल जी !! कोलांग यात्रा के बारे में आज कुछ विस्तार से देने का प्रयास किया है.

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.