१.
"सर्वेक्षण"
"सामने सड़क पर
"सर्वेक्षण"
"सामने सड़क पर
सुन्दर लड़की के साथ जा रहे लड़के से
उसका क्या रिश्ता है" .......
- चाय की दूकान पर बहस जारी थी.
सर्वाधिक मत
प्रेमी के पक्ष में गए
मात्र एक मत विरोध में गया,
यह मतदाता
और कोई नहीं
उन दोनों की माँ थी
ज़ो चाय की दूकान पर
कप-प्लेटें धोती थी.
२.
"प्रगतिशील संस्कृति"
मात्र सात दिन
एक्सचेंज की मर्यादा
यह है
सात फेरों की
नयी प्रगतिशील परिभाषा
ताकि मिल सके सभी दोस्तों को
हर हफ्ते
एक टेस्ट ज्य़ादा.
३.
"मंत्री"
वे
इतने ओछे हैं
सूखे तृण से भी हल्के हैं
यह सोच-सोच
हर आँख
आज फिर नम है
चुल्लू भर पानी की बात करें क्या
डूब मरें वे
इस खातिर
पानी
सात सागरों का भी कम है. .
४.
"प्रमाण"
यह तो रावण भी जानता था
कि मैं अयोध्या का हूँ
और अयोध्या मेरी.
किन्तु रावण बन पाना भी कोई हंसी-खेल नहीं.
तुम तो
न मित्र हो ...न शत्रु....
न जाने कौन हो
कि जन्म-भूमि को बंदी कर पूछ रहे हो
मेरे जन्म का प्रमाण .
निश्चित ही
तुम न तो मेरे वंशज हो....न आर्यावर्त के वासी
कोई घुसपैठिये हो
अरे, मेरा वंशज तो वह था
जिसे गोलियों से छलनी कर दिया तूने
उसी के पास था मेरे जन्म स्थान का प्रमाण
परन्तु तू क्या करेगा जानकर इसे
तू तो रावण भी नहीं कि मर सके मेरे हाथों
जा .....
पहले रावण तो बन ले
फिर मैं स्वयं चला आऊँगा तेरा वध करने.
.
२.
"प्रगतिशील संस्कृति"
मात्र सात दिन
एक्सचेंज की मर्यादा
यह है
सात फेरों की
नयी प्रगतिशील परिभाषा
ताकि मिल सके सभी दोस्तों को
हर हफ्ते
एक टेस्ट ज्य़ादा.
३.
"मंत्री"
वे
इतने ओछे हैं
सूखे तृण से भी हल्के हैं
यह सोच-सोच
हर आँख
आज फिर नम है
चुल्लू भर पानी की बात करें क्या
डूब मरें वे
इस खातिर
पानी
सात सागरों का भी कम है. .
४.
"प्रमाण"
यह तो रावण भी जानता था
कि मैं अयोध्या का हूँ
और अयोध्या मेरी.
किन्तु रावण बन पाना भी कोई हंसी-खेल नहीं.
तुम तो
न मित्र हो ...न शत्रु....
न जाने कौन हो
कि जन्म-भूमि को बंदी कर पूछ रहे हो
मेरे जन्म का प्रमाण .
निश्चित ही
तुम न तो मेरे वंशज हो....न आर्यावर्त के वासी
कोई घुसपैठिये हो
अरे, मेरा वंशज तो वह था
जिसे गोलियों से छलनी कर दिया तूने
उसी के पास था मेरे जन्म स्थान का प्रमाण
परन्तु तू क्या करेगा जानकर इसे
तू तो रावण भी नहीं कि मर सके मेरे हाथों
जा .....
पहले रावण तो बन ले
फिर मैं स्वयं चला आऊँगा तेरा वध करने.
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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.