मेरी प्यारी गौरैया !
गलती हमारी ही थी .......
तुम तो आतीं थीं रोज़
गीत गाने .....बच्चों को फुसलाने .....
उनके और अपने हिस्से का भात खाने .....
हमीं नें नहीं आने दिया तुम्हें अपने घर में /
बसने ही नहीं दिया घर के किसी कोने में
जब कि हक था तुम्हारा उस पर.....
न जाने कितनी सदियों से /
तुम्हारे घोसले के तिनकों से
कहीं गंदा न हो जाए हमारा घर,
अपना घर साफ़ रखने की जिद में
उजड़ गया तुम्हारा घर /
तुम्हारे प्रजनन को इतना महत्वहीन समझा हमने
कितनी बड़ी भूल थी यह ........
अक्षम्य भूल ......
अब पश्चाताप होता है,
बच्चे तरस गए हैं तुम्हें देखने के लिए......
मैं उन्हें कैसे बताऊँ .........
कि रोज़ सुबह सूरज के जगने से पहले
खुद जगकर........
हम सबको जगा जातीं थीं तुम....
गाते हुए भोर का गीत /
................
उड़ जाती थीं फुर्र से कहीं दूर
लौट आती थीं दोपहर से पहले
बाबा के खाने के समय तक ........
उनके खाने में तुम्हारा भी हिस्सा जो होता था /
मैं उन्हें कैसे बताऊँ..........
कि कितने सुन्दर होते हैं तुम्हारे पंख ....
तुम्हारी फुदक-फुदक कर दाना चुंगने की अदा .....
तुम्हारी प्यारी गुस्ताख हरकतें.....
आईने में अपनी ही शक्ल से
चोंच लड़ा-लड़ा कर थक जाना
और फिर खीझ कर फुर्र से उड़ जाना /
....................
तिनका-तिनका जोड़ कर
आले में ..........या आईने के पीछे
घोंसला बनाने की तल्लीनता
जी-तोड़ मेहनत,
......और फिर
गुलाबी मुह खोले
नन्हें बच्चों को भात का दाना चुंगाने में बरसती ममता /
गर्मी में .....मिट्टी के प्याले में रखे पानी को
चौंक -चौंक कर...डरते-डरते पीना /
धूल में लोट-लोट कर नहाना.........
देख-देख कर खुश होते थे बाबा
गौरैया धूल में नहा रही है ........
ज़रूर ........बरसने वाला है पानी /
कैसे बताऊँ मैं यह सब ..........अपने बच्चों को
जिन्होंने देखी नहीं आज तक एक गौरैया /
उफ़ .....
बहुत याद आती है तुम्हारी
प्यारी गौरैया !
मुझे माफ़ कर दो ना ,
देखो, मैंने खोल दी हैं अपनी सारी खिड़कियाँ
और रोशनदान भी /
आकर कहीं भी घोंसला बनाओ
अब तुम्हें कोई नहीं भगाएगा
कभी नहीं भगाएगा
तुम वापस आओगी ना !