गुरुवार, 29 जनवरी 2015

तू क्यों आया रे वसंत !



     

       घर आते ही उसने अपनी फ़्रॉक की झोली चटाई पर उलट कर खाली दी, सरसों के पीले फूलों का एक छोटा सा ढेर लग गया । लड़की ने ख़ुश होकर आवाज़ दी – अम्मा ! देखो तो कित्ते अच्छे फूल ।
मटर के छिलके बाहर गाय को डालने के लिये निकली अम्मा ने देखा कि उनकी लाड़ली ‘बेवड़ी’ किसी के खेत से सरसों के फूल उजाड़ लायी थी । लड़की को डाँट पड़ी, पीपल वाले बाबा से पकड़वाने की धमकी दी गयी । इतनी डाँट-फटकार के बाद भी लड़की की आख़ें चमक रही थीं, सरसों के पीले रंग ने उसे बावली बना दिया था ।
रंगरूप की बात की जाय तो वह सुन्दर बिल्कुल भी नहीं थी । पड़ोस के बच्चे उसे कई नामों से पुकारकर चिढ़ाया करते किंतु इसका उस लड़की पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । वह अपने में ही मस्त बनी रहती । अड़ोस-पड़ोस में कच्चे जाम फले हों या कसैली-खट्टी केरियाँ कुछ भी उसकी दृष्टि से बच नहीं पातीं । पड़ोस के बच्चे शिकायत करने आते – देखो आज फिर आपकी बेटी ने हमारे पेड़ से जाम तोड़े । अम्मा चिंतित होती कि ऐसी ही रही तो कौन ब्याहेगा उस बेवड़ी को ?
किंतु एक दिन बेवड़ी का भी ब्याह हो गया । बेवड़ी पढ़-लिख कर गाँव के स्कूल में मास्टरनी बन गयी थी, उसे एक अच्छा सा दुलहा मिल गया, सरकारी नौकरी वाला । पड़ोस की लड़कियों को जलन हुयी, लेकिन वह ख़ुश थी ।

वह जब पहली बार मुझसे मिली थी तो उसके व्यवहार में झिझक नाम की कोई चीज नहीं थी, उसका व्यवहार ऐसा था जैसे कि वह मुझे वर्षों पहले से जानती हो । वह साधिकार बात करती और मेरी हर चीज पर अपना अधिकार जताती । इतना ही नहीं वह अपनी हर व्यक्तिगत बात भी साधिकार मुझे बताती । मुझे उसके व्यवहार से आश्चर्य होता ।

तब उसकी शादी नहीं हुयी थी और उसे एक वेज़ाइनल सिस्ट हो गया था । लड़की डरी हुयी थी... शायद यह पहली बार था जब मैंने उसके चेहरे पर डर की रेखायें देखीं । मैंने उसे किसी गायनिक सर्जन से मिलकर ऑपरेशन की सलाह दी, लड़की और भी डर गयी । तब मैंने उससे कहा कि वह अपनी माँ को लेकर मेरे पास आये । 
मैंने लड़की की माँ को सब कुछ समझाया और ऑपरेशन कराने की सलाह दी । माँ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि उसकी बेटी ने इस बारे में कभी उससे कहा क्यों नहीं । बल्कि उसने इस लापरवाही के लिये बेटी को डाँटा भी ।
शादी के बाद वह अपने पति के साथ घूमने के लिये अण्डमान निकोबार गयी । पहली बार शिप और प्लेन में बैठकर यात्रा के अनुभव मुझे सुनाने के लिये वह व्यग्र थी । वापस आते ही सबसे पहले उसने मेरे घर का रुख़ किया और बहुत देर तक बैठकर किस्से सुनाती रही । उसकी आँखों में एक विशिष्ट चमक थी ......
ससुराल जाने के बाद भी वह जब-तब मुझे फोन करती रहती थी । एक दिन गर्मी के दिनों में भरी दोपहर को उसने मेरा दरवाज़ा खटखटाया । वह अपने पति को मुझसे मिलवाने लायी थी ।
एक दिन उसने फोन करके बताया कि उसके “वो” दारू पीते हैं और नशे में उसे और बच्चों को ख़ूब पीटते हैं । रोज-रोज की मारपीट से वह आज़िज़ आ चुकी थी । सुनकर मैं सन्न रह गया । इस बिन्दास लड़की के सीने में कितना कुछ दफ़न है ।
एक दिन वह फ़ोन पर देर तक रोती रही .... । मैं उसे चुप कराने का प्रयास करता रहा । जब वह चुप हुयी तो उसने बड़ी मुश्किल से बताया कि उसके पति अब नहीं रहे । डॉक्टर्स के अनुसार उन्हें एड्स हुआ था । वह चिंतित थी कि कहीं उसे भी तो एड्स नहीं हो गया होगा .....फिर उसके दो छोटे-छोटे बच्चों को कौन सम्भालेगा ? उसकी चिन्ता स्वाभाविक थी । डॉक्टर्स ने उसकी और बच्चों की भी जाँच की थी, लेकिन बताया कुछ नहीं था । वह चाहती थी कि मैं सारी रिपोर्ट्स को पढ़कर देखूँ कि उसमें लिखा क्या है । मैंने उससे कहा कि वह सारी रिपोर्ट्स लेकर आ जाये ।
संयोग अच्छा था कि उसे या उसके बच्चों को एड्स नहीं हुआ था । मैंने उसे बताया तो वह तनिक निश्चिंत सी लगी और कुछ आवश्यक मेडिकल परामर्श के बाद चली गयी ।

बहुत दिन बाद एक दिन फिर उसका फोन आया, इस बार उसने जो बताया वह और भी दुःखद था । इतने साल बाद स्वयं को उसके पति की असली पत्नी बताने वाली कोई महिला सम्पत्ति के बटवारे के लिये आ धमकी थी । लड़की का रो-रो कर बुरा हाल था । फिर भी उसे अपने दिवंगत पति से कोई शिकायत नहीं थी । वह स्वयं को ही दोष देती रही कि यदि वह सुन्दर होती तो उसका पति कहीं और भटकता ही क्यों । सुनकर मैं द्रवित हो उठा था । 
इस बार सरस्वती पूजा के अगले दिन स्कूल के लोगों ने पिकनिक का कार्यक्रम बनाया । साथ के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने पिकनिक के लिये किसी तरह उसे भी मना ही लिया । जब सब लोग पिकनिक स्पॉट पहुँचे तो पहाड़ी झरने के पास सरसों के खेत देखते ही वह मचल उठी ....उसकी आँखों में चमक आ गयी । कई बरस के बाद लड़की फिर से ज़िन्दा होने लगी ।
मरी हुयी लड़की ने, जो अब फिर से ज़िन्दा हो गयी थी सरसों के खूब सारे फूल चुन कर अपने दुपट्टे में रखे, सेमल कन्द उखाड़ा और चने की हरी-हरी पत्तियाँ तोड़कर खायीं । निष्ठुर समय का एक छोटा हिस्सा आज उस पर मेहरबान था ।
अचानक यादों का एक साया उड़ता हुआ आया और लड़की को ढक दिया । लड़की फिर से शव बन गयी, उसके होठ बुदबुदाये – तू क्यों आया रे वसंत ! वो तो हैं नहीं अब ।
लड़की ने दुपट्टे के सारे फूल एक जगह गिरा दिये ....फिर वहीं ज़मीन पर बैठकर दुपट्टे का छोर मुंह में दबा, सिर झुकाकर सिसक उठी ।  

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.