हर साल
आता है नया साल
किंतु
नहीं होता है कुछ भी नया
सिवाय
कुछ और
नये
पापों ......
और
घोटालों के ।
समाचार
पत्रों की सुर्खियाँ बनते रहते हैं
दुःखद
समाचार
कि
.....
फिर
हुये कुछ यौनदुष्कर्म
फिर चटक
कर टूट गयीं कुछ लड़कियाँ
फिर
हुयीं कुछ आतंकी घटनायें
फिर
आरोप मुक्त हो गये कुछ निर्लज्ज अपराधी
फिर
वारिश में भीग कर सड़ गया
करोड़ों
रुपये का धान .....
राजा
कभी
नहीं सोच पाता ....
कि प्रबन्धन
की उपेक्षा और अकर्मण्यता से
जब-जब
सड़ता है अनाज का एक भी दाना
तब-तब
होता है बलात्कार
किसान
की आत्मा से ।
जब-जब
चीख-चीख कर पथराती हैं लड़कियाँ
तब-तब
विदीर्ण होती है मानवता
वही
मानवता
जिसके
कोई अर्थ नहीं होते
भेड़ियों
के गाँवों में ।
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