राज्यों
को होने वाली आय के लिये क्या हमारे पास अच्छी और जनकल्याणकारी योजनाओं का अभाव है
?
जब हम
सुशासन और जनकल्याणकारी योजनाओं की बात करते हैं तो मन में यह विचार आना स्वाभाविक
है कि मांसाहार के लिये गो-हत्या, मद्य और तम्बाकू के विभिन्न उत्पादों का निर्माण
क्या किसी सुसंस्कृत और सभ्य समाज के विकास, समृद्धि, सुखीजीवन और कल्याण के लिये उपयुक्त
योजनायें हैं ?
मेरे
जैसे लोग यह समझ पाने में असमर्थ रहते हैं कि इस प्रकार की प्रकृतिविरुद्ध, स्वास्थ्यघातक,
परिवारखण्डक और अपराधमूलक योजनाओं के साथ किस प्रकार के सुशासन और जनकल्याण की आशा
की जा सकती है ?
इन
योजनाओं को प्रतिबन्धित न करके क्या हम एक स्वेच्छाचारी, कुटैवयुक्त, अनियंत्रित और
पाशविक अभ्यास वाले समाज की रचना में अपनी भूमिका को निभाकर समाज- विशेषकर
स्त्रियों, बच्चों और किशोरों के साथ न्याय का छल नहीं कर रहे हैं ?
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
उल्लास और उमंग के पर्व
लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'