वसंतपंचमी
के अवसर पर गुजरात सरकार ने विद्यालयों में सरस्वती वन्दना कराये जाने का आदेश
ज्ञापित किया और सियासत शुरू हो गयी । कांग्रेस ने कहा कि यह अल्पसंख्यकों के
अधिकारों पर आक्रमण है । अन्य विरोधियों ने कहा कि यह हिंदुत्व को बढ़ावा देने का
अनुचित प्रयास है ।
मैं इसे
एक गम्भीर वैचारिक शून्यता मानता हूँ । विद्या की देवी सरस्वती की वन्दना विद्यालयों
में नहीं होगी तो और कहाँ होगी ? हमें ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के प्रति कृतज्ञ
होना चाहिये जबकि हम उसके प्रति उच्छ्रंखल होने की वकालत कर रहे हैं । यह एक विघटनकारी
आतंकी सोच है । मुझे समझ में नहीं आता कि असहिष्णुता का ऐसा संदेश देकर ये नेतागण
देश में किस प्रकार का वैचारिक बीजारोपण कर रहे हैं ? यह एक मूर्खतापूर्ण वक्तव्य
है कि सरस्वती वन्दना से किसी के अधिकारों पर आक्रमण हो जायेगा । बल्कि इस विषाक्त
सोच से भारतीय संस्कृति पर आक्रमण करने का प्रयास किया गया है । जहाँ तक हिंदुत्व
को बढ़ावा देने की बात है तो इसमें दो बातें हैं 1- अपनी परम्परा और संस्कृति का
पालन एक करणीय कर्तव्य है इसमें बढ़ावा देने की बात कहाँ से आ गयी ? 2- हिंदुत्व के
बढ़ावा को किसी आतंकी घटना की तरह प्रस्तुत किये जाने की यह विषाक्त मानसिकता भारत
के अस्तित्व के लिये घातक है ।
अल्पसंख्यक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर
तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने की निरंकुश होती जा रही निकृष्ट घटनाओं से समाज में
विघटनकारी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है । यह किसी देश के अन्दर एक समानांतर
व्यवस्था स्थापित करने का छल है जिसके परिणाम भारत की सम्प्रभुता के लिये शुभ नहीं
होंगे इसलिये भारत की उत्कृष्ट सांस्कृतिक परम्पराओं को प्रदूषित करने की सियासी
मानसिकता पर अंकुश लगाने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान लेना
चाहिये ।
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