विचित्र है अंतरजाल की रहस्यमयी माया
स्वतंत्रता और सम्प्रेषण के इस मार्ग नें सभी को लुभाया
किसी को हर्षाया ..किसी को भरमाया
किसी को निखारा ...किसी को मंच तक पहुंचाया
कहीं विवाद करवाया .... कहीं तनाव करवाया
कहीं किसी बिछुड़े को मिलवाया ...
तो किसी को मधुर प्रेम के बंधन में बांधा
...हर क्षण ...हर पल सबको कुछ न कुछ सिखाया /
हमें भी आपकी तरह कुछ नए रिश्ते मिले हैं
दूर-दूर अनजाने देशों में नए-नए फूल खिले हैं
और उनकी खुशबू नें सराबोर कर दिया है मेरी आत्मा को
मैं ऋणी हूँ ...उन सबका
जिन्होंनें अति सूक्ष्म संवेदनाओं का परिचय दिया
मन की आँखों से मुझे देखा
..अपनी संवेदनाओं से मुझे स्पर्श किया
ज़ो कल तक ....."होगा कोई मुझे क्या ?" से पहचाने जाते थे
आज ..."तुम सा कोई नहीं ".....या "मेरे अज़ीज़" की तरह पहचाने जाते हैं
सब नें दिलों में उनकी तस्वीरें बना रखी हैं
..अपने-अपने क्षितिजों को और विस्तृत कर लिया है /
टूट चुकी हैं धर्म और जाति की दीवारें
यहाँ केवल प्रेम के झरने बह रहे हैं
और तुम अभी भी अपने अँधेरे ...बदबूदार कुएं में से बाहर नहीं आना चाहते !!!!!!!
आश्चर्य है ..........धर्म के नाम पर
अपने को श्रेष्ठ और दूसरों को हेय सिद्ध करना चाहते हो
हम तो खड़े हैं तुम्हारे दरवाज़े पर कब से
तुम्हीं नें इतने कांटे बो रखे हैं
कि भीतर घुसने में डर लगता है
आइये नव वर्ष में हम प्रतिज्ञा करें कि
अंतरजाल की दुनिया में किसी का दिल नहीं दुखायेंगे
और इंसानियत ...सिर्फ इंसानियत की बात करेंगे
नफ़रत की जगह प्रेम और सिर्फ प्रेम ही बाटेंगे
....और इस तरह हर सुबह नव-वर्ष मनाएंगे
पर इससे पहले
अंतरजाल की एक आचार-संहिता बनायेंगे
और उसका ईमानदारी से पालन करेंगे /