देवेन्द्र जी के आग्रह पर मकर संक्रांति पर आज एक पुरानी रचना ...
स्थान था गुलाबी नगर जयपुर...और तारीख थी 14 जनवरी, 1991..
वे व्यंग्य चाहते थे ...पर वह फिर कभी, अभी तो उनके आग्रह का सम्मान कर रहा हूँ ......
शहर
छतों पर है
और पतंगें
आसमान में.
कामनाओं के सूर्य
व्याकुल हो उठे हैं ....संक्रांति को ...
नाना रूप-रंग की पतंगों पर बैठ
उड़ चले हैं.
संक्रांति को व्याकुल
मन-मकर की अभिलाषा है
कि बंध जाएँ
आकाश की सारी पतंगें
उसी की डोर से...
और तोड़ डाले वह
सारी सीमाएं ...सारे बंधन ...
उठ जाए आकाश में
ऊंचा....
बहुत ऊंचा .....
सबसे ऊंचा.........
सोचता है,
दूसरों की पतंगों को काट
कैसे बढ़ती जाय मेरी ही पतंग
आगे ..और आगे .....
बादलों से भी परे ....
और
कैसे कट कर आ गिरें
आकाश में उड़ती सारी पतंगें
मेरे ही आँगन में.
सोच
सीमाबद्ध हो गयी है
कामना
असीमित हो गयी है
दांवपेंच शुरू हो चुके हैं.
चारो ओर शोर हो रहा है ....
विजय
और हर्षातिरेक का उन्माद छा गया है.
लोग
चीख रहे हैं,
कांटे बंधे.. ऊंचे बांस उठाये
भागे चले जा रहे हैं.
शायद
किसी ने किसी की पतंग काट दी है.
कामनाओं के युद्ध में
किसी का विश्वास खंडित हुआ है
किसी का
आकाश में और भी गहरे उतर गया है.
पराजित कामना को
अभी भी परित्राण नहीं,
खंडित होकर भी
वह उलझ गयी है
किसी के बांस के काँटों में.
कामनाओं के क्रांतियुद्ध में
अपना बांस जितना ऊंचा....
अपने कांटे जितने अधिक...
उलझनें उतनी ही सुलभ .......
लूटने में उतनी ही सुविधा.
लुटेरा
विजेता बनकर लौट रहा है
........................................
और........
इस संक्रांति युद्ध में
मैंने
अपनी डोर खीचनी शुरू कर दी है
मेरी कामनाएं
धरातल पर उतरने लगी हैं
आधारहीन आकाश से
यथार्थ के धरातल पर .....
उड़ते, आकाश छूते पतंग की तरह हमें अपनी उन्नति का प्रयत्न करते रहना चाहिए किइन्तु स्वयं को पतन की ओर नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि व्हम स्वयं ही अपना मित्र भी है और स्वयं ही अपना शत्रु भी। कई बार अपना पतंग हम स्वयं काट लेते हैं।
जवाब देंहटाएं...लुटेरा विजेता बनकर लौट रहा है।..वाह!
जवाब देंहटाएंयहीं पूर्ण विराम लगा देना था डाक्टर साहब मेरी समझ से, और..की आवश्यकता न थी। 91 की कविता 12 में ज्यों की त्यों..!
मेरे संग संग पतंग उड़ाने और एक बेहतरीन कविता पढ़ाने के लिए आपका आभारी हुआ। लेकिन मेरा अनुरोध तो जस का तस है..हवा में उड़ती पतंगें जब आपस में बतियाती हैं तो क्या कहती हैं..?
नए प्रतीक विधान लिए सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोसट .. आपके इस पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है .. आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना. सदा सामयिक रचना है डॉ. साहब!
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