1- तंत्र की बाध्यता
कपड़े
कितने भी ख़ूबसूरत क्यों न हों
चौबीसों घंटे नहीं पहन सकते आप.
उतारने ही पड़ते हैं
कभी न कभी...
अपनी-अपनी सुविधानुसार
और तब
कोई नहीं रह जाता
उतना सभ्य
जितना कि वह दिखता था
अब से पहले.
२- प्रेम ....
मैं इनवर्टेड कॉमा नहीं
उतारने ही पड़ते हैं
कभी न कभी...
अपनी-अपनी सुविधानुसार
और तब
कोई नहीं रह जाता
उतना सभ्य
जितना कि वह दिखता था
अब से पहले.
२- प्रेम ....
मैं इनवर्टेड कॉमा नहीं
जो लिस्बन से चलकर
खजुराहो में आकर दफ़न हो जाऊँ.
आग लगाने के लिए
अर्ध विराम क्या कम है ?
गौर से देखो ....
मैं डैश-डैश हूँ ......
यहाँ
कभी विराम नहीं होता.
3- साल
क्या ?
नया साल फिर आ गया ?
अपना वो पुराना वाला किधर है ...
मुझे तो वही देदो
बड़ी जतन से
उसमें कुछ पैबंद लगाए थे मैंने
बड़ी जतन से
उसमें कुछ पैबंद लगाए थे मैंने
नए साल में वही दोहरकम कौन करे!
४- नेता के आंसू
ए समंदर !
तुझसे कितनी बार कहा है .....
दो बूँद
उसे भी क्यों नहीं दे देता
बेचारे को
ग्लिसरीन से काम चलाना पड़ता है.
५- ये तो होना ही था.....
यूनीवर्सिटी लवली
स्टूडेंट लवली
बातें लवली
कपड़े लवली
स्टाइल भी लवली.
सुना है,
जालंधर में
लवली ने कोर्ट मैरिज कर ली है.
६- डिग्री
छात्र को यूनिवर्सिटी ने दी
यूनिवर्सिटी को यू.जी.सी. ने दी
यू.जी.सी. को पैसे ने दी
पैसे सेठ जी की जेब में थे
जो अब खाली है
जेब फिर से भर गयी है.
इस पूरे धंधे में
फैकल्टी कहीं नज़र नहीं आ रही.
७- सवाल-जवाब
जंगल में गाँव
गाँव में कॉलेज
कॉलेज में देश का 'भविष्य'
यह 'भविष्य' अपने वर्त्तमान से चिंतित है
रोज भीख माँगता है...
"भगवान के नाम पर एक अदद शिक्षक का सवाल है माई-बाप".
.........................
हुंह........
ऐसे थोड़े ही चलता है
हर चुनाव से पहले
एक ही माँग पूरी करने का विधान है.
८- उपनाम
मेरे पिता जी उपाध्याय लिखते हैं
मैं मिश्र लिखता हूँ
मेरी पत्नी चतुर्वेदी लिखती है
मेरी बेटी चटर्जी लिखती है
मेरा बेटा बनर्जी लिखता है
मेरा कुत्ता शर्मा लिखता है
मेरी बिल्ली तिवारी लिखती है
मेरा तोता पाण्डेय लिखता है
मेरे दादा जी क्या लिखते थे
यह नहीं बताऊँगा
बस, इतना जान लो
कि हम लोग
अनुसूचित जाति वाली सुविधाओं के सुपात्र है
खबरदार ! जो कभी मुझे भंगी कहा.
९- जाति
स्कूल में
जाति लिखना अनिवार्य है तो क्या हुआ.
इस अभिशाप से मुक्ति का सरलतम उपाय तो है
ऐसा करते हैं ....
ब्राह्मणों और राजपूतों के उपनाम लूट लो
यह अभिशाप दूर हो जाएगा.
उपनाम का डाका वरदान बन जाएगा.
शादी के बाद लड़की को बता देंगे
कि दरअसल
यह तो एक आदर्श
इंटरकास्ट मैरिज थी.
४- नेता के आंसू
ए समंदर !
तुझसे कितनी बार कहा है .....
दो बूँद
उसे भी क्यों नहीं दे देता
बेचारे को
ग्लिसरीन से काम चलाना पड़ता है.
५- ये तो होना ही था.....
यूनीवर्सिटी लवली
स्टूडेंट लवली
बातें लवली
कपड़े लवली
स्टाइल भी लवली.
सुना है,
जालंधर में
लवली ने कोर्ट मैरिज कर ली है.
६- डिग्री
छात्र को यूनिवर्सिटी ने दी
यूनिवर्सिटी को यू.जी.सी. ने दी
यू.जी.सी. को पैसे ने दी
पैसे सेठ जी की जेब में थे
जो अब खाली है
जेब फिर से भर गयी है.
इस पूरे धंधे में
फैकल्टी कहीं नज़र नहीं आ रही.
७- सवाल-जवाब
जंगल में गाँव
गाँव में कॉलेज
कॉलेज में देश का 'भविष्य'
यह 'भविष्य' अपने वर्त्तमान से चिंतित है
रोज भीख माँगता है...
"भगवान के नाम पर एक अदद शिक्षक का सवाल है माई-बाप".
.........................
हुंह........
ऐसे थोड़े ही चलता है
हर चुनाव से पहले
एक ही माँग पूरी करने का विधान है.
८- उपनाम
मेरे पिता जी उपाध्याय लिखते हैं
मैं मिश्र लिखता हूँ
मेरी पत्नी चतुर्वेदी लिखती है
मेरी बेटी चटर्जी लिखती है
मेरा बेटा बनर्जी लिखता है
मेरा कुत्ता शर्मा लिखता है
मेरी बिल्ली तिवारी लिखती है
मेरा तोता पाण्डेय लिखता है
मेरे दादा जी क्या लिखते थे
यह नहीं बताऊँगा
बस, इतना जान लो
कि हम लोग
अनुसूचित जाति वाली सुविधाओं के सुपात्र है
खबरदार ! जो कभी मुझे भंगी कहा.
९- जाति
स्कूल में
जाति लिखना अनिवार्य है तो क्या हुआ.
इस अभिशाप से मुक्ति का सरलतम उपाय तो है
ऐसा करते हैं ....
ब्राह्मणों और राजपूतों के उपनाम लूट लो
यह अभिशाप दूर हो जाएगा.
उपनाम का डाका वरदान बन जाएगा.
शादी के बाद लड़की को बता देंगे
कि दरअसल
यह तो एक आदर्श
इंटरकास्ट मैरिज थी.
बहुत ही खुबसूरत दिल को छूनेवाली सुंदर मनकों जैसी
जवाब देंहटाएंरमाकांत जी ! बस्तर के जंगल में स्वागत है आपका ....प्रथम आगमन पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है ......
हटाएंजो लिस्बन से चलकर
जवाब देंहटाएंखजुराहो में आकर दफ़न हो जाऊँ.
आग लगाने के लिए
अर्ध विराम क्या कम है ?
गौर से देखो ....
मैं डैश-डैश हूँ ......
यहाँ
कभी विराम नहीं होता.
...............................
..................................
......................................
आप प्रकृतिस्थ हो वापस आ गयी हैं ...जानकार सुखद अनुभूति हुयी. अब मत जाइयेगा हमें छोड़कर .........
हटाएंमेरे पिता जी उपाध्याय लिखते हैं
जवाब देंहटाएंमैं मिश्र लिखता हूँ
मेरी पत्नी चतुर्वेदी लिखती है
मेरी बेटी चटर्जी लिखती है
मेरा बेटा बनर्जी लिखता है
मेरा कुत्ता शर्मा लिखता है
मेरी बिल्ली तिवारी लिखती है
मेरा तोता पाण्डेय लिखता है
मेरे दादा जी क्या लिखते थे
यह नहीं बताऊँगा
बस, इतना जान लो
कि हम लोग
अनुसूचित जाति वाली सुविधाओं के सुपात्र है
खबरदार ! जो कभी मुझे भंगी कहा.
निशब्द करती हैं आपकी रचनायें ....
उपनामों की डकैती का कार्यकर्म मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में खूब धड़ल्ले से होता है. इस डकैती का उद्देश्य निस्संदेह अत्यंत कलुषित है. यूँ हम जातिप्रथा के समर्थक नहीं हैं किन्तु इस निर्लज्ज डकैती के निस्संदेह घोर विरोधी हैं. इस सामाजिक अपराध के प्रति यदि हम सचेत न हुए तो भविष्य दुखद होगा. डकैती की मानसिकता ही निकृष्ट है.
हटाएंसोचने को बाध्य करती रचनाएँ!
जवाब देंहटाएंमुझे लगता हैकि हमें एक जनहित याचिका दायर करनी चाहिए.
हटाएंबापकी ये छोटी कविताएं बहुत अच्छी हैं। पर उपनाम और जाति में आपका आश्य स्पष्ट नहीं होता।
जवाब देंहटाएंउत्साही जी ! नमस्कार ! बस्तर के जंगल में आपके प्रथम आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.
जवाब देंहटाएंयहाँ, जहाँ मैं हूँ, कुछ 'विशेष जाति' के लोगों ने कुछ 'विशेष जाति' के लोगों के उपनाम अपना लिए हैं. इससे एक भ्रम उत्पन्न करने के प्रयास को सफलता प्राप्त हुयी है.
हम जाति प्रथा के समर्थक नहीं हैं ( निश्चित ही वर्णप्रथा के समर्थक हैं ..वह भी घोषित रूप से) किन्तु जाति को लेकर भ्रम उत्पन्न करने के इस प्रयास को सामाजिक और सांस्कृतिक अत्याचार मानते हैं. मैंने अपने वंशगत उपनाम को लिखना छोड़ दिया है( इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि कुछ जाति विशेष के लोग खुलेआम एक जाति विशेष को ब्लैक मेल कर रहे हैं..उत्पीडित कर रहे हैं .....और उनसे बदला निकाल रहे हैं यह कह कर कि हजारों वर्षों तक तुम्हारे पुरुखों ने हमारे पुरुखों का शोषण किया है ...अब हमारी बारी है ...हम तुम्हारे साथ उससे भी बड़ा अत्याचार करेंगे. ऐसी शिकायतें पुलिस थाने और कलेक्टर के स्तर से आगे नहीं बढ़ पातीं क्योंकि एक जाति विशेष के लोगों को मनुष्य मान कर उनके प्रति व्यवहार किये जाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए भारतीय दंड संहिता के पास कोई नियम नहीं है ....अधिवक्ताओं ने मुझे ऐसा ही बताया है)
यदि हम अपने नाम में चतुर्वेदी या तोमर लिखते हैं तो एक स्वाभाविक सन्देश प्रसारित होता है कि हम ब्राह्मण या क्षत्रिय हैं...जबकि वास्तविकता कुछ और है. ऐसे लोग दोहरा लाभ प्राप्त करते हैं
१- विशिष्ट जातियों को शासन से मिलने वाले आरक्षण का और
२- ब्राह्मणों और क्षत्रियों की वर्त्तमान सामाजिक स्थिति का. 'पंडित जी ! पाय लागयं'...यह वाक्य उन लोगों को बड़ा आकर्षित करता है जो दिन-रात ब्राह्मणों को गरियाने में बड़ा आत्म संतोष का अनुभव करते हैं ..वे दूसरों से अपने लिए ऐसा सुनना चाहते हैं. और इसके लिए वे फरेब के हर स्तर पर जाने के लिए तैयार हैं. यह दोहरा चरित्र विरोधाभासी प्रतीत होता है पर यह ईर्ष्याजन्य द्वंद्व भर है.
ऐसा भ्रम उत्पन्न करने का कुत्सित प्रयास इस बात का प्रमाण है कि दिन-रात ब्राह्मणों-क्षत्रियों को कोसने के बाद भी एक वर्ग विशेष में उनके प्रति एक लालसा बनी हुयी है और वे वही स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं जो उनके पास नहीं है. उपनामों की इस डकैती की सम्पूर्ण रणनीति का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण समाज के लिए चेतावनी है. छल पूर्वक किसी जाति की लड़की को ब्याह लाना सामाजिक अपराध मानता हूँ मैं. लोग जो हैं वही प्रदर्शित करें जिसे शादी करनी होगी वह करेगा ....छल करने की क्या आवश्यकता ? सम्मान पाने के लिए वैसे गुण विकसित करना ही पर्याप्त है उपनाम हथियाने की आवश्यकता नहीं है...यह मेरा विचार है, अन्य लोगों को इसमें आपत्ति हो सकती है...उनके अपने तर्क हो सकते हैं.
मैं इस विषय पर मर्यादित ...शालीन तर्क के लिए तैयार हूँ.
सभी रचनाएँ गहन और प्रभावशाली
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