ये रहे वो पत्थर ....
नीलगात आकाश ने झाँककर कहा, चलो हम ढूँढते हैं....कहाँ है धूप ....
कहीं यहाँ तो नहीं .....
अन्दर प्रवेश कर देखते हैं .....
नन्हीं धूप का वह रहा एक टुकड़ा ....
चलिए न ! कुछ और समीप से देखते हैं ....
हाँ हाँ ...यही तो है ....
नीलगात आकाश ने झाँककर कहा, चलो हम ढूँढते हैं....कहाँ है धूप ....
कहीं यहाँ तो नहीं .....
अन्दर प्रवेश कर देखते हैं .....
नन्हीं धूप का वह रहा एक टुकड़ा ....
चलिए न ! कुछ और समीप से देखते हैं ....
हाँ हाँ ...यही तो है ....
पर भला, पत्थरों ने क्यों चुराई धूप .....? पता तो लगाना ही पड़ेगा न! ......
सभी चित्र कांकेर के गढ़िया पहाड़ के हैं ...
पत्थरों ने
जवाब देंहटाएंनहीं चुराया
एक टुकड़ा धूप
धूप खाने के लिए दौड़ते
भूखे आदमी की
हाहाकारी से घबड़ाकर
पत्थरों में जा छुपी
जाड़े की दुलारी
एक टुकड़ा धूप।
कैमरे ने कर दिया उसे
यहां भी नंगा
हाय रे मानव!
तू तो निकला
बड़ा शिकारी
खाया तो खाया
फोटू खींच खींच
सबको दिखाया!
..:)
काव्यात्मक टिप्पणी ! मज़ा आ गया पाण्डेय जी !
हटाएंएक ही बिम्ब पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं ...यही तो कला है ......और इसी में विविधता का आनंद है .......
प्रारंभ के दूसरे चित्र से लगा शायद कुटुमसर है बाद में भ्रम दूर हुआ. चित्र सुन्दर लगे. आभार.
जवाब देंहटाएंअरे वाह, कहाँ से खोजकर पकड़ा है छिपी हुई धूप को।
जवाब देंहटाएंऐसे दृश्य देखकर मैं बच्चों की तरह उछल पड़ता हूँ ......
हटाएंअक्सर जो धूप हंसती खेलती दिखती होती है
जवाब देंहटाएंवह वज्र पत्थरों के काबिज़ सहमी बैठी होती है
हम देख पाते हैं सिर्फ खिली हुई हंसी उस रश्मि की ,
हंसी के पीछे लेकिन कोई कहानी अक्सर छुपी होती है
aabhaar ....
हटाएंभई वाह ! क्या बात है !
हटाएं......अब टिप्पणियाँ भी काव्यात्मक होने लगी हैं ....ब्लोगिंग में साहित्यिक विकास के बढ़ते चरण .......स्वागत है .......
सार्थक और रोचक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंपत्थरों के बीच जतन से छुपाया गया धूप जितना आकर्षक है....उतना ही आकर्षक उनके मध्य से झांकता आसमान का एक टुकड़ा भी
जवाब देंहटाएंबड़ी ख़ूबसूरत तस्वीरें हैं...