भारत की धरा पर हर कोई लिखता सफ़रनामा
आया प्रेत 'माओ' का, यहाँ अब होश में चलना.
कभी गौरी, कभी गज़नी, कभी बाबर ने है लूटा
कभी चंगेज ने काटा, कभी अंग्रेज ने लूटा.
गौतम बुद्ध के घर में, हैं बहती खून की नदियाँ
सहम कर देखते हैं सब, तड़पना और मर जाना.
माओवाद के सुर में, जहाँ रोकर भी है गाना
पता बारूद की दुर्गन्ध से तुम पूछ कर आना.
बिना दीवारों का कोई किला ग़र देखना चाहो
तो बस्तर के घने जंगल में चुपके से चले आना.
धुआँ बस्तर में उठता है तो बीज़िंग से नज़र आता
हमारे खून से लिखते हैं माओ का वे अफसाना.
वे लिख दें लाल स्याही से तो ट्रेने भी नहीं चलतीं
कंटीले तार के भीतर डरा सहमा पुलिस थाना.
ड्रेगन के इशारों पर कभी रुकना कभी चलना
यहाँ तिल-तिल के है जीना यहाँ तिल-तिल के है मरना.
यहाँ इस देश की कोई हुकूमत है नहीं चलती
कि बंदूकों से उगला हर हुकुम सरकार ने माना.
यहाँ जंगल धधकते हैं, वहाँ बादल बरसते हैं
ये बादल मौसमी इनको गरज कर है गुज़र जाना.
जो रखवाले थे हम सबके, वे अब केवल उन्हीं के हैं
नूरा कुश्तियों में ही ये बंटते अब खजाने हैं.
हमने ज़िंदगी ख़ुद की ख़रीदी तो बुरा क्या है
यहाँ सरकार भी उनको नज़र करती है नज़राना.
वो मंगल के बहाने से दंगल करने आते हैं
जंगल को निगल कर वो हमें कंगाल करते हैं.
ये कैसी रहनुमाई है, ये कैसी बदनसीबी है
जी भर खेलना मुझसे, कुचलकर फिर चले जाना.
तन के ग्राहकों ने कब किसी के मन को है जाना
ये बस्तर है यहाँ केवल हमें खोना उन्हें पाना.
भरत का मर गया भारत, इसे अब इंडिया कहना
लहू भी बन गया पानी, ये दुनिया भर ने है जाना.
चबाकर जी नहीं भरता, न भरता पीढ़ियाँ खाकर
सुना है इंडिया ही है, बिछाती रात का बिस्तर.
सिसकता रात-दिन भारत, इंडिया मुस्कुराती है
शरण जब माँगते हिन्दू, इंडिया खिलखिलाती है.
धर्म ने देश को बांटा, मगर फिर भी वो प्यारा है
जिताने को चुनावों में, वही तो एक सहारा है.
चलो एक बार फिर से हम, उन्हें कुछ और हक देदें
ये भारत जो बचा इतना, टुकड़े कुछ और फिर कर दें.
जो आये थे लुटेरे बन, वो हक़ से अब यहीं रहते
किरण से माँगते हैं अब, अँधेरे भी हलफ़नामा.
कभी इतिहास लिखना हो, तो इतना काम कर लेना
तुम, ढूँढते हुए हिन्दू , किसी टापू में आ जाना.
बस्तर का जीवंत चित्रण दिल को स्पर्श कराती
जवाब देंहटाएंआपने बस्तर में दंतेवाडा प्रवास को ताजा कर दिया
मर्मस्पर्शी चिंतन
सच्ची बात. दर्दनाक अफसाना है इस देश का. आम आदिवासी जाए तो जाए कहाँ? पंगु प्रशासन में उनकी सुरक्षा का दम नहीं. हत्यारे माओ-प्रेतपूजक तो २०१२ के चीनी हमले की उम्मीद में आँख बिछाए बैठे हैं.
जवाब देंहटाएंअदभुत कौशलेन्द्र जी.....एक एक पंक्ति बस्तर की कहानी कहती है......और बस्तर ही क्यों हर आदिवासी का दर्द इसमें समाया हुआ है....आपने इस दर्द को महसूस किया और उसे अपनी लेखनी में उतारा.....साधुवाद....
जवाब देंहटाएंमार्मिक ...लेकिन सौ फीसदी सच...बेहतरीन प्रस्तुति.
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