रविवार, 22 जनवरी 2012

चलो चलें भगवान बाबर की औलादों का नाटक देखने .... जुहू के इस्कॉन मंदिर में ...




प्रिय बंधुओ ! 
आगामी गणतंत्रदिवस के दिन मुम्बई में जुहू स्थित हरे कृष्ण चेतना अन्तर्रष्ट्रीय संगठन (इस्कॉन) के मंदिर प्रांगण में सलमान खुर्शीद लिखित नाटक "बाबर की औलादें" का मंचन होने जा रहा है. इस नाटक में बाबर के वंशजों को महिमा मंडित किया गया है. 
    घोर चिंतन-मनन के पश्चात् भी ऐसा कोई भारतीय चरित्र नाटक नहीं प्राप्त हो सका जिसका मंचन किया जा सकता अस्तु "बाबर की औलादें" नामक महान नाटक का मंचन किया जाना तय हुआ.

  भारतीय गणतंत्रदिवस दिवस के दिन बाबर को महिमा मंडित करने का विचार भारतीय नेताओं का एक अद्भुत, अनूठा और महान  प्रयास है. इस महान नाटक के महान लेखक सलमान खुर्शीद साहेब से हमारा अनुरोध है कि वे एक-एक नाटक चंगेज़ खान, मोहम्मद गौरी और महमूद गज़नवी पर भी लिखने की कृपा करें जिससे उन्हें महिमा मंडित किया जा सके.....भारत पर उनके उपकारों की एक सूची सभी कार्यालयों में लगाई जानी चाहिए ताकि भारत के लोग उनसे प्रेरणा ले सकें. राष्ट्रीय महत्त्व के अवसरों पर विश्व के इन महानायकों के नाटकों का मंचन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए. संस्कृत को मृत भाषा घोषित करने के उपायों पर भारत शासन विचार कर ही रही है. अब हमारा यह अनुरोध है कि कालिदास, भवभूति और वाणभट्ट जैसे भारतीय मूल के लोगों के साहित्य पर भी  प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए ...इनके साहित्य से भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द्य समाप्त होने की पूरी-पूरी संभावना है. सभी भारतीय बंधुओं से आग्रह है कि २६ जनवरी को मुम्बई पहुँच कर इस्कॉन मंदिर परिसर में पहुँचकर बाबर वान की औलादों का महिमा मंडन देखने की कृपा करें और अपना जीवन धन्य बनाएं. बड़ा पुण्य मिलेगा ...इस महान अवसर का लाभ अवश्य उठायें. भारत के महानाटककार सलमान खुर्शीद जी की जय !!!   



2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या इस्कान वालों की मति भी मारी गई है क्या. स्वतंत्रता दिवस नहीं बंधू, गणतंत्र दिवस है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुब्रमण्यम जी ! त्रुटि के लिए खेद है...ध्यानाकर्षण के लिए आभार. त्रुटि में सुधार किया गया है.
      किन्तु क्या फर्क पड़ता है स्वाधीनता दिवस हो या गणतंत्र दिवस एक आम भारतीय के लिए तो यह एक शब्द जाल ही है.

      हटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.