इतनी बड़ी हो गयी हूँ ..आज तक कभी गढ़िया पहाड़ पर नहीं चढ़ी..कोई मुझे अपने साथ नहीं ले जाना चाहता। अब मैं बच्ची नहीं हूँ ...हिमालय पर भी चढ़ सकती हूँ ...
बड़े पापा को पटाना पड़ेगा ....कोशिश करके देखती हूँ .....
इस बार तो गढ़िया पहाड़ पर चढ़ना ही है...
बड़े पापा के साथ कहीं जाना हँसी-खेल नहीं ...इतनी नसीहतें ...इतने लेक्चर्स ...उफ़्फ़्फ़्फ़ ....
पर जाना है तो रास्ते भर उनके लेक्चर्स भी झेलने ही पड़ेंगे ...और कोई चारा नहीं ....
पर इन कपड़ों में ? सवाल ही नहीं उठता ....
आज का दिन अच्छा है। मात्र चौबीस मिनट की बहस के बाद ही तय हो गया कि मुझे क्या पहनकर जाना है। ...और अब मैं कुमारी विदुषी वाजपेयी गढ़िया पहाड़ पर चढ़ने ही वाली हूँ ...
तो ये चली मैं ...
अरे ! ये तो उतना मुश्किल भी नहीं है ...ख़ामख़्वाह ही लोगों ने हउवा बना कर रखा है।
मैं तो दौड़कर भी चढ़ सकती हूँ ...
अरे ! यहाँ तो एक तालाब भी है..वह भी कमल से भरपूर
बड़े पापा! अभी कितना और चलना है?
हाय राम ! अब नहीं चल सकती ....यह वाकई मुश्किल है ....
लीजिये ...शुरू हो गया लेक्चर ..
अभी हम लोग एक पत्थर पर बैठे हैं...पास में बड़े पापा की केवल शर्ट का एक हिस्सा भर दिख रहा है ...मगर उनके लेक्चर का एक-एक शब्द कानों में आ रहा है। सुनना ज़रूरी है क्योंकि बीच-बीच में बड़े पापा के प्रश्नों के ज़वाब जो देने पड़ते हैं...
लेक्चर के बाद अब डाँट ..
गुनाह यह है कि मैं पानी की बोतल साथ लेकर नहीं आयी ...पर ये बड़े लोग यह क्यों नहीं सोचते कि अगर मैं भूल गयी तो ख़ुद भी तो थे याद दिलाने के लिये।
...और ये लीजिये ...चढ़ाई फ़तह .....हुर्र्र्र्र्रे ! मैं इस वक़्त टॉप पर हूँ
गढ़िया पहाड़ पर है एक छोटा सा मगर बहुत पुराना ऐतिहासिक मन्दिर
जिसमें प्रवेश से पहले इस बड़े तालाब के पानी से पैर धोना आवश्यक है।
अच्छा लग रहा है यहाँ आकर ....
देवी के मंदिर से पहले शिव जी के दर्शन करती हूँ ..
आदिशक्ति की प्रतीक दुर्गा !
दुर्गा दुर्गति नाशिनि जय-जय, काल विनाशिनि काली जय-जय, उमा रमा ब्रह्माणी जय-जय ...
गढ़िया पर्वत पर कभी किला रहा था। यह सिंह द्वार उसी किले का है।
यहाँ तो उतरना भी मुश्किल है ...
देवी के ये नन्हें भक्त! छोटी वाली तो कैमरा देखते ही शरमा जाती है
आख़िर उसका ऐसे ही फ़ोटो लेना पड़ा।
आज हम जगदलपुर में हैं ।
एक घर के अहाते में पपीते के पेड़ पर नये जूते टाँगने का यह तरीका गज़ब का लगा।
बस्तर राजदरबार का एक दृष्य़ !
वर्तमान राजा कमल भंज देव जी दशहरे के दिन अपने राज्य की प्रजा के साथ ...
जी हाँ ! राजे-रजवाड़े तो अब रहे नहीं ...पर उन दिनों की याद ताज़ा करने में हर्ज़ ही क्या है जबकि बस्तर के आदिवासी आज भी राजा को भगवान मानकर पूजते हैं।
कभी-कभी तो लगता है कि भारत में मोनार्ची के लिये सबसे उपयुक्त माहौल कभी समाप्त नहीं होगा ...संभावनायें अभी भी बनी हुयी हैं। मैं राजा प्रवीर भंज देव जी की देशभक्ति से प्रभावित हूँ। यह बस्तर के राजा के ही सद्प्रयास थे कि बस्तर की विश्व प्रसिद्ध लौह खदान और अन्य प्राकृतिक संपदायें निजाम हैदाराबाद के पंजों में जाने से बच गयीं। बस्तर की धरती को जी-जान से प्यार करने वाले राजा प्रवीर भंज देव की निर्मम हत्या तत्कालीन स्वतंत्र भारत की लोकतांत्रिक सरकार द्वारा कर दी गयी थी।
हाँ ! तो मैं मोनार्ची की बात कह रही थी। यूँ भी, ज़रा गहराई से देखें तो आज की मल्ट्यार्ची(द सो काल्ड डेमोक्रेसी) भी किसी निरंकुश मोनार्ची से कम नहीं .....जो हर संभव-असंभव तरीके से देश को लूटने में लगी हुयी है। भारत को उसकी ही धरती के गद्दारों से ख़तरा रोज-ब-रोज बढ़ता ही जा रहा है। आज मैंने आदि शक्ति से प्रार्थना की है कि वह भारत के नेताओं, उद्योगपतियों, उच्चाधिकारियों और मतदाताओं को सद्बुद्धि प्रदान करे।
---- विदुषी वाजपेयी
बहुत ही सुंदर जगह की यात्रा । आप पानी भूल गयी पर बडे भी तो भूल गये कोई बात नही
जवाब देंहटाएंगलती बेशक मेरी ही थी! त्यागी जी!
हटाएंबस्तर में तो खूब रहे हैं....जगदलपुर में ही...खूब घूमे भी हैं...
जवाब देंहटाएंमगर ये गढिया पहाड़ किधर है?? कभी सुना ही नहीं वरना हम भी चढाई कर आते...
:-)
अनु
अनु जी! गढिया पहाड़ कांकेर में है। अब तो मैं भी जगदलपुर का ही वाशिन्दा हो गया हूँ। कभी तशरीफ़ लाइयेगा।
हटाएंशुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंबढ़िया वृत्तांत ||
जी, धन्यवाद! आज से कुछ वर्ष पूर्व तक कांकेर के गढ़िया पहाड़ को छत्तीसगढ़ के ही लोग नहीं जानते थे। माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा कुछ वर्ष पूर्व नवरात्रि के दिनों में नौ दिन तक चलने वाले महोत्सव की शुरुआत की गयी थी। इस महोत्सव में प्रतिदिन प्रवचन और सांकृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कला, संस्कृति और धर्म के संरक्षण हेतु प्रारम्भ किये गये इस महोत्सव को बड़े मान के साथ देखा जा रहा है।
हटाएंबढ़िया यात्रा और बढ़िया टिप्पणियाँ. पानी भूल जाना भी ऐसी चीज़ है कोई कि डांटें हुह...बड़े लोग... बड़े लोग..
जवाब देंहटाएंइन बड़े लोगों की भी अपनी एक समस्या है शिखा जी! अब इनकी बे-सिर-पैर की बातें सुनने के लिये कोई तो तैयार होता नहीं, किसी को इन "बड़े" लोगों को देखते ही खाना बनाने की याद आने लगती है तो किसी को कुछ और...। इसलिये जो पकड़ में आ जाये उसी को डाँटने लगते हैं ......फिर कारण वाज़िब हो या न हो। यूँ आपको बता दूँ कि ऊपर जाकर प्यास से दोनों का बुरा हाल था।
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंvery interesting style of narrating the climb :)
मेरे पिताको मै यह पढ़कर सुना रही हूँ जो मुझसे मिलने आये हुए हैं कांकेर उनका जन्म स्थान भी है आपका यह यात्रा वृत्तांत बहुत सी भूली बिसरी स्मृतियों को साझा कर गया ,गढ़िया पहाड़ ,दूध नदी और बहुत सी छोटी बड़ी यादें ----इसके लिए आपका बहुत --२ धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवे भी डाक्टर हैं और काफी समय बस्तर में पोस्टेड थे
@शिल्पा जी!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
@ अदिति पूनम जी!
स्मृतियों में आप लोग पुनः कांकेर आ सके ....लिखना सार्थक हुआ। पिता जी को मेरा नमस्कार कहियेगा। मैं भी यहाँ कोमलदेव जिला चिकित्सालय में हूँ। आप लोग जब भी कांकेर आयें ...हम आपके स्वागत में मिलेंगे। आप लोग सादर आमंत्रित हैं।