लड़के को चोट लगी तो दर्द से कराह उठी लड़की, और जब
दिल दुखा लड़की का तो तड़प उठा लड़का। बचपन में देखी लैला-मजनू की नौटंकी के कुछ दृष्य
आज भी याद हैं मुझे। मगर मोहब्बत की दीवानगी और इबादत के ऐसे किस्से अब कहाँ? आदिवासी
गाँव कुआँपानी की किशोर लड़की ने कभी नौटंकी नहीं देखी अलबत्ता लैला-मजनू की अमर मोहब्बत
के बारे में ज़रूर सुन रखा था उसने। कुआँपानी, यानी बस्तर के ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में
बसा छोटा सा आदिवासी गाँव।
जंगल में हिन्नी सी घूमने वाली निर्भीक किशोरी को
एक दिन कॉलेज में एडमीशन के लिये एक बड़े से गाँवनुमा कस्बे में जाना पड़ा। कॉलेज की
इत्ती बड़ी बिल्डिंग देखकर ही लड़की के होश उड़ गये। जैसे-तैसे लड़की ने एडमीशन फ़ॉर्म लिया
...पर अब परेशान, कैसे भरूँ इसे?
लड़के को लगा कि लड़की को किसी के सहयोग की आवश्यकता
है। ऐसे अवसर को भला कौन लड़का हाथ से जाने देना चाहेगा? लड़का पास आया, बड़ी विनम्रता
से बोला- “लाइए, मैं भर दूँ!”
जंगल की हिन्नी कुछ सकुचाई फिर बिना कुछ बोले हाथ
का फ़ॉर्म लड़के के सुपुर्द कर दिया। लड़का पूछता रहा, लड़की बताती रही, और फ़ॉर्म भरता
गया। जब तक फ़ॉर्म पूरा हुआ तब तक लड़के के पास हिन्नी की सारी जानकारी आ चुकी थी। अपने
गाँव से बाहर के किसी मरद से यह उसकी पहली मुलाकात थी।
मुलाकात अगले दिन फिर हुई, उसके अगले दिन भी हुई ....रोज
हुई ... होती रही।
चार साल हो गये मुलाकात होते। इस बीच लड़की ने अपनी
ज़िन्दगी के पाँच मौसम देख लिये थे। पाँच मौसमों की अलग-अलग तासीर ने लड़की की मोहब्बत
को पर दे दिये थे। जंगल की हिन्नी के पास अविश्वास का कोई कारण नहीं था ....एक दिन
उसने लड़के को सौंप दिया अपना सब कुछ। पहाड़ी नदी बह चली पूरे वेग से। बह चली ..बहती
रही ....बहती रही ...ख़ूब बही ......
फिर एक दिन लड़की मैना बन गयी। बस्तर की गाने वाली
मैना। वह लड़के को एक गीत सुनाने लगी ..मधुरगीत....सहज प्रेम का मधुर प्रेमगीत। लड़के
को गीत अच्छा नहीं लगा। उसे रिश्तों के व्यापारिक स्वरूप में गहरा यकीन था। उसकी रगों
में बहने वाले ख़ून में कुशल व्यापारी के रिश्ते निभाने की काबिलियत थी।
लड़की गीत गाती रही ... उसने सुन रखा था कि मैना पक्षी
अपने जीवन में केवल एक ही जोड़ा बनाते हैं इसलिये जंगल की हिन्नी पूरे यकीन और आत्मविश्वास
के साथ गीत गाती रही।
एक दिन लड़के ने मैना को बुलाया, मैना उड़ कर झट उसके
पास आ गयी। लड़का उसे लेकर पास के एक जंगल में गया। लड़की आज छठा मौसम देखने वाली थी।
जंगल में पहुँचते ही लड़का एक बहेलिया बन गया। उस दिन मैना ने अपनी ज़िन्दगी में पहली
और अंतिम बार पतझड़ को देखा ...अनुभव किया ....और फिर उड़ गयी ...एक अनन्त यात्रा पर।
वह सारे मौसमों के अनुभवों की सीमा से दूर चली गयी।
अगले दिन समाचार पत्र में लोगों ने पढ़ा- “जंगल में
एक अज्ञात लड़की की लाश पायी गयी”।
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने लड़की की निश्चल देह
को एक बार देखा फिर भरे कण्ठ से बुदबुदा कर अपने आप से कहा –“जंगल, शिकार और शिकारियों
के ये रिश्ते कोई हुक़ूमत कभी ख़त्म नहीं कर सकती।”
मैना तो उड़ गई। पर उसकी आत्मा आज भी मुस्कराकर पूछती
है शिकारी से- “सुनो, मोहब्बत के चमन में पाँच ही मौसम काफ़ी नहीं थे क्या?”
gehri samvednayen chhodti sacchayi.
जवाब देंहटाएंऐसे कुबेर पुत्रों के लिये कठोरतम दण्ड की व्यवस्था एक स्वप्न है क्योंकि भारत में कुछ भी ऐसा नहीं जो बिकता नहीं .....
हटाएंदुखी तो आपने, नहीं-नहीं इस कथा ने, हमें भी कर दिया।
जवाब देंहटाएंहमारे आस-पास की घटना है इसलिये दुःखी होना और भी स्वाभाविक है भइया जी!
हटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_31.html
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ही काफी थी ....
जवाब देंहटाएंयह फ़िक्शन नहीं, एक सच्ची घटना है...और आज मैं बेहद दुःखी हूँ।...यह लिखकर तो और दुखी कर दिया .....:((((((((((((((
किसी निश्छल लड़की के साथ क्रूर विश्वासघात.....लोग कितने पाषाण हो गये हैं। भोलेपन को ठगा जाना बहुत से विश्वासों को तोड़ता है सरस जी! मनुष्य ही मनुष्य का अवमूल्यन कर रहा है ...यह अधोपतन हमारी चिंता और घोर निराशा का विषय है।
हटाएंबस्तर के जंगल में आपका प्रथम आगमन हुआ है ....स्वागत है। आपका आना मंगलमय हो।