फेर आबे मोर गाँव ...
मोर गाँव में तोर सुआगत हे
ए में हौं
गाँव के गोरूआ मन
छत्तीसगढ़ के भुइयाँ धान के कटोरा
मोर बाड़ी के कुआँ ...अउर पाछू मं मोर धान के खेत
ए ह जुगुनू मन के घर
अब तोला ले चलत हौं में आपन घर
कहाँ जात हस? रुक न भाई
मोर घर नईं चलबे का?
तुम मन सहर के लोग गाँव के झोपड़ी से अतीक का बर घबरात हस?
अच्छा नईं जाबे त मत जा .....तोर बर मकई के भुट्टा राखे हौं ...ए त ले जा ...
फेर आबे मोर गाँव ...दसहरा फूटू खाये बर .....
जुगनुओं क घर होला! गज़बै फोटू हिंचला हो डागदर बाबू!!
जवाब देंहटाएंबड़ा याद आता है बस्तर.....
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
सपनों में बस्ता है बस्तर ,बचपना में बहुत रहे हंव मै हा बस्तर में ,वहां का अद्वितीय प्राकृतिक सोंदर्य ,पहाड़ झरने भुलाए नहीं भूलते इन चित्रों ने तो स्मृतियों को सजीव कर दिया -धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुग्घर फोटू मन ला देख के ए गाना के सुरता आगे...
जवाब देंहटाएंभारत माँ के रतन बेटा, बढ़िया हौं गा
मयँ छत्तीसगढ़िया हौं जी
मयँ छत्तीसगढ़िया हौं गा
@ पाण्डे जी! ई बताव मरदे भाड़ा बाला घर मं रहिहं त भाड़ा कहाँ से दिहं जुगुनू ...आपन घर न बनाये के परी।
जवाब देंहटाएं@ अनु जी! एवं अदिति पूनम जी!बस्तर आपका अपना है ...सदा स्वागत के लिये उत्कण्ठित। जगदलपुर आपकी प्रतीक्षा में है....आपकी भूली बिसरी यादों को फिर से ताज़ा करने के लिये।
@ निगम जी! बस्तर की अभिव्यक्ति में स्वागत है आपका। प्रथम आगमन पर हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें।