मेरे ही सुर होंगे
अब न चुराऊँगी मैं, प्रियतम !
यह लो अपनी मुरली, प्रियतम !
रोज-रोज ना मिल पाऊँगी
जमुना तट ना आ पाऊँगी।
काम बहुत हैं और भी मुझको
रास रचाना केवल तुमको।
मैंने अपने अधरों से छू
वंशी में प्राण हैं डाले, प्रियतम !
मान यही लेना अब से तुम
मुरली ही है राधा, प्रियतम !
बातें कर लेना जब जी हो
अपनी प्यारी मुरली से तुम।
मुरली से निकले सारे सुर
मेरे ही सुर होंगे, प्रियतम।
अब न चुराऊँगी मैं, प्रियतम !
यह लो अपनी मुरली, प्रियतम !
राधिका कभी खुद को मुरली कहती..कभी मुरली से जलती....
जवाब देंहटाएंप्रेम बावला कर देता है...
अनु
सुन्दर प्रवाह | गहरे भाव ||
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
बहुत सुंदर भाव ,बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंमै ही हूं ये मुरली प्रियतम । वाह बहुत कोमल और सुंदर भी ।
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