Quora पर एक व्यक्ति ने पूछा है कि क्या यह कहना उचित होगा कि उत्तरप्रदेश में तालिबान राज्य है?
इस तरह के पश्न पूछे जाने का आशय केवल एक creation of misleading thought हुआ करता है । अपवादस्वरूप कहीं कोई अराजक घटना हो जाय तो उसे तालिबानी हुकूमत कहना कितना उचित होगा, विशेषकर तब जबकि घटना की उसी के समाज द्वारा निंदा की जा रही हो!
तालिबान
जिस शरीया को लागू करने की बात करते हैं अफ़गानिस्तान ही नहीं पाकिस्तान की भी
बहुसंख्य जनता उससे दहशत में हैं । यदि आप हिंदूराज की बात करते हैं तो उससे पूरी
दुनिया में कभी कोई भयभीत नहीं रहा । योगीराज की पुलिस तालिबान की तरह हर घर से 12
लोगों का ख़ाना वसूल नहीं करती । योगी पुलिस किसी स्कूल में घुसकर निर्दोष बच्चों
को कत्ल नहीं करती । योगी पुलिस लड़कियों को उनकी माओं की गोद से छीन कर नहीं ले जाती
। योगी जी तालिबान की तरह अपने सैनिकों से शादी करने के लिये 12 से 40 साल तक की
स्त्रियों की सूची नहीं माँगते । और अंतिम बात यह कि अँधेरों की तुलना रोशनी से
किए जाने का कोई औचित्य नहीं होता ।
इन दिनों
सोशल मीडिया पर एक वीडियो प्रसारित हो रहा है, इंदौर में कुछ युवकों ने एक मुस्लिम
कबाड़ी वाले को जय श्रीराम बोलने के लिए बाध्य किया । निश्चित ही यह एक अराजक घटना है
जो निंदनीय ही नहीं दण्डयोग्य भी है । दूसरे धर्म के लोगों को हिंदूधार्मिक प्रतीकों
या आदर्शों को स्वीकार करने या पालन करने के लिये बाध्य करना सनातन धर्म के सिद्धांतों
के विरुद्ध है । यह एक षड्यंत्र भी हो सकता है, जो भी हो फ़िलहाल
तो हिंदू-विरोधियों को बैठे ठाले हिंदू आतंकवाद प्रमाणित करने का एक अवसर मिल गया ।
अब्दुल समद
याकूब पीटीआई के प्रवक्ता हैं और गज़ब के आदमी हैं । पाकिस्तान के रक्षा विशेषज्ञ कमर
चीमा तो कभी-कभार दबी ज़ुबान से पाकिस्तान की ग़ुस्ताख़ियों को व्यंग्य में मुस्कराते
हुये स्वीकार भी कर लेते हैं लेकिन अब्दुल समद तो सूरज को भी सूरज कहने से साफ़ नकार
देते हैं । आज एक टीवी चैनल पर अब्दुल समद ने फरमाया कि अफ़गानिस्तान में तालिबान पर
लगाये गये सारे इल्ज़ाम बेबुनियाद और इस्लाम को बदनाम करने के लिये हैं, वहाँ न
तो कोई हत्या हुयी है और न किसी लड़की को उसके घर से ज़बरन उठाया गया है । यह सब कहने
की ग़ुस्ताख़ी अब्दुल समद ने तब की जब टीवी चैनल पर अफ़गानिस्तान की एक लड़की मुस्कान भी
मौज़ूद थी । पाकिस्तान के अब्दुल समद ने अफगानिस्तान की मुस्कान की बातों को भी नकार
दिया । यानी अब्दुल समद याकूब ने टीवी मीडिया पर सरे-आम उस मुंसिफ़ की तरह व्यवहार किया
जो विक्टिम को एक्यूज़्ड मान लेने का फ़ैसला पहले से ही कर चुका हो ।
जब मैं पढ़े-लिखे लोगों के ऐसे चरित्र को देखता हूँ तो लगता है कि शायद ऐसे ही लोगों की वज़ह से तालिबान ने शिक्षा का विरोध करना शुरू किया होगा, उन्हें लगा होगा कि ऐसे आचरण के लिए पढ़ायी-लिखायी में पैसे बरबाद करने की क्या ज़रूरत जो बिना पढ़े-लिखे ही आराम से किया जा सकता है । जो भी हो, ब्रिटेन के मुस्लिम उपदेशक अंजुम चौधरी ने जजिया कर को काफ़िरों पर लगाया जाने वाला टैक्स मानते हुये तालिबान को सलाह दी है कि वे अफ़गानिस्तान में रहने वाले ग़ैरमुस्लिमों पर उनकी सुरक्षा के बदले में जजिया कर लागू कर दें । अर्थात जो ग़ैरमुस्लिम जजियाकर नहीं देगा उसकी ज़िंदग़ी की कोई ग़ारण्टी नहीं । इस्लामिक क़ायदे के अनुसार भारत के भी बहुत से मुसलमान इसे उचित मानते हैं । “हिंदी सत्य” नामक “सच का सामना” करने वाले एक संगठन के अतिबुद्धिमान लोगों का मानना है कि औरंगज़ेब ने जो जजियाकर लगाया था उससे डर कर किसी भी निर्धन हिंदू ने धर्मांतरण नहीं किया था बल्कि वे तो सूफ़ी संतों से प्रभावित हो कर मुसलमान बने थे । मुझे लगता है कि इस थ्योरी के अनुसार तो अफगानिस्तान में रहने वाले ग़ैरमुस्लिम लोग अब तालिबान के इस्लामिक आचरण से प्रभावित होकर ज़ल्दी ही मुसलमान बन जायेंगे ।