किसने
बनाया
यह
कानून
जो
चिंतित है
उस
अजन्मे के
मौलिक
अधिकारों की रक्षा के लिये
जिसका
बीज ही
अंकुरित
हुआ है
अनैतिकता
और अपराध के खेतों में ।
बूढ़ा कानून
क्यों इतना
मौन है
क्यों इतना
निर्मम है
क्यों
इतना संवेदनहीन है
उसके
मौलिक
अधिकारों के प्रश्न पर
जो जन्म
ले कर
बन चुकी
है
किसी परिवार
और समाज का हिस्सा
और होती
जा रही है घायल
अन्याय
के तीखे नेज़ों से ?
क्यों
नहीं देख पाता
यह
अन्धा और संवेदनहीन कानून
पलपल
बढ़ते जा रहे घावों से रिसते मवाद को ?
पहले
अपहरण
फिर यौनउत्पीड़न
के दंश
अब
भ्रूण ढोने
और अपने
रक्त से
उसका
पोषण करने की विवशता,
प्रसव
के बाद
घूरती
दृष्टियों की प्रतीक्षा ।
और जब
पापियों का बीज
होकर पल्लवित
करेगा प्रश्न –
“माँ !
कौन है मेरा पिता ?”
तब
पल-पल
मरती माँ की लाश को देखकर
ठकाके
लगायेंगे
पापी
जिनके
अपराधों को
दण्ड
देने में असफल रहा है
सदा
चिंतित रहने वाला कानून ।
यह बूढ़ा
कानून
सेवानिवृत्त
कब होगा ?
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