अन्याय
के विरुद्ध माओवादियों के हिंसक युद्ध का दर्शन अन्याय के ही पोषण पर आधारित है
जिसका उद्देश्य बस्तर के आमआदमी की हत्या के साथ-साथ राष्ट्रीय और निजी
सम्पत्तियों को क्षति पहुँचाना है ।
शनिवार
की सुबह लगभग दस बजे करंज के पेड़ों से भरा पिड़मेल का ख़ूबसूरत जंगल मशीनगनों की
कर्कश आवाज से काँप रहा था और धरती जवानों के रक्त से नहा रही थी । माओवादियों ने
मुख्यमंत्री की आगामी यात्रा के दो दिन पूर्व एस.टी.एफ़. के जवानों को मौत का तोहफा
दे दिया । कहने को इनकी लड़ाई सरकारी नीतियों से है लेकिन हर बार मौत के शिकार होते
हैं जवान । वे जवान जो देश के निम्न या निम्न-मध्य आयवर्ग वाले परिवारों के सदस्य
होते हैं । निम्न और निम्न-मध्य आयवर्ग के लोगों को न्याय दिलाने के लिये छेड़े गये
माओवादी हिंसक आक्रमण से न्याय मिल किसे पा रहा है ...माओवादियों को यह समीक्षा करनी
चाहिये । किंतु वे इस तरह की कोई समीक्षा नहीं करेंगे ..... नहीं करेंगे कोई
समीक्षा ....क्योंकि समीक्षा का उद्देश्य सही दिशा का निर्धारण और विचलन को रोकना
हुआ करता है जो माओवादियों के सिद्धांत में कहीं है ही नहीं ।
आज कांकेर
में कई वाहनों को जला कर ख़ाक कर दिया गया और कल बस्तर के सुकमा जिले में पोलमपल्ली
से रवाना होकर सर्चिंग के बाद कांकेरलंका की ओर वापस आ रही एस.टी.एफ़. की
सर्चिंगपार्टी पर पिड़मेल के जंगलों में घात लगाकर किये गये माओवादी छापामार युद्ध
में सात जवानों की हत्या कर दी गयी और लगभग दस जवान घायल हो गये । पचास जवानों की
सर्चिंग पार्टी पर पाँच सौ से अधिक माओवादियों का आक्रमण एक बहुत बड़ी रणनीति का
परिणाम थी । आये दिन जवानों पर घात लगाकर किये गये हमलों में अब तक सैकड़ों निर्दोष
जवान अपनी जान गँवा चुके हैं । वनवासियों के हितों की लड़ाई का दावा करब्ने वाले
माओवादियों के इस छद्मयुद्ध में अभी तक सर्वाधिक क्षति वनवासियों को ही हुयी है ।
युद्ध कोई भी हो उसकी पीड़ा सदैव वंचितों के हिस्से में आती है और लाभ आभिजात्यों के हिस्से में । दूसरी ओर् सच यह भी है कि जंगल और ज़मीन की बलि चढ़ाकर विकास के लिये लालायित औद्योगिक घरानों के साथ सरकारी विकासयात्राओं की रहस्यमयी कथायें पूरे देश के लिये न जाने कब से अबूझमाड़ बनी हुयी हैं ।
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