रविवार, 19 अप्रैल 2015

धार्मिक अग्राह्यता


भारत में हमारे चरित्र और आचरण को नियंत्रित करने वाला प्रेरक और व्यवहार्य तत्व है धर्म । पश्चिम में धर्म का भारत जैसा रूप नहीं था । पश्चिम में धर्म की अवधारणा उतनी शाश्वत और परिपक्व नहीं बन सकी जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक केन्द्र सत्ता और शक्ति के गढ़ बनते चले गये । उस समय धार्मिक केन्द्रों को “भौतिक शक्तियों” से मुक्त करने के लिये धर्म को समाज के अन्य पक्षों से पूर्णतः पृथक करना तत्कालीन योरोपीय समाज के लिये आवश्यक हो गया था । यह कार्य धीरे-धीरे वैश्विक होता चला गया ...जहाँ आवश्यकता थी वहाँ भी और जहाँ नहीं थी वहाँ भी धर्म को अग्राह्य बनाया जाने लगा । धार्मिक अग्राह्यता की इन कुछ शताब्दियों में उग्र और हिंसक विस्तारवादी शक्तियाँ स्वयं को निरंतर हिंसक और उग्र बनाती रहीं । धर्म निरपेक्षता के छल ने इन असामाजिक शक्तियों को धार्मिक आडम्बर में स्वयं को प्रस्तुत करने की सुविधा उपलब्ध करवायी जिसके कारण आज पूरा विश्व हिंसा और अनैतिकता की गोद में समाता जा रहा है ।
गॉड-पार्टिकल खोजने वाला मनुष्य धर्म के विकृतस्वरूप में उलझ कर रह गया है, ऊपर से धर्मनिर्पेक्षता के जिन्न ने समाज में विषमता और वर्गभेद को और भी सुरक्षित करने का असामाजिक कृत्य किया है .....।

विश्व के बुद्धिजीवियो ! आप अपना मौन कब तोड़ेंगे ?  

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