आधुनिक
भारतीय समाज में उपनयन संस्कार की परम्परा लुप्त सी होती जा रही है । स्थिति यह है
कि आमंत्रणपत्र छपवाने के लिये प्रेस वालों के पास इसके प्रारूप तक उपलब्ध नहीं
हैं । हमने अंतरजाल पर खोजने का प्रयास किया किंतु वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी । तब
मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों न इसका एक प्रारूप बनाया जाय ।
सनातनधर्मी
आर्यों के षोडश संस्कारों में एक प्रमुख संस्कार है उपनयन संस्कार जो गुरुकुल जाने
के समय किया जाता था । आधुनिक समय में गुरुकुल परम्परा के समाप्त हो जाने से इस
संस्कार का भी महत्व लगभग समाप्त सा हो गया है । परम्परा निर्वहन के लिये अब केवल
ब्राह्मण परिवारों में प्रायः विवाह के समय ही लड़कों को यज्ञोपवीत धारण करवा दिया
जाता है जबकि “संस्करणं सम्यक करणं वा संस्कारः” एवं “संस्कारो हि
गुणंतराधानमुच्यते” के
अनुसार यह आज भी प्रासंगिक बना हुआ है ।
वास्तव
में उपनयन संस्कार द्विज होने की प्रक्रिया का एक व्रत है, एक तपश्चर्या है, उत्कृष्ट
गुणों का अभ्यास है, आचार और विचार में निरंतर परिमार्जन की प्रक्रिया है, त्रुटियों
की पुनरावृत्ति को रोकने का अनुभूत योग है, निरंतर सुधार की प्रक्रिया है, सभ्यता
का प्रथम सोपान है, मानव जीवन को पवित्र, उत्कृष्ट
और लोकहितकारी बनाने वाला एक आध्यात्मिक उपचार है । आज भले
ही गुरुकुल प्रथा समाप्त हो गयी है किंतु संस्कार की आवश्यकता तो बनी ही हुयी है ।
“संस्कार” चेतना
और संवेदना की वह सात्विक प्रक्रिया है जो मनुष्य के आचरण को सामाजिक एवं
व्यावहारिक जीवन में ग्राह्य और अनुकरणीय बनाती है ।
उपनयन संस्कार आमंत्रणपत्र
ॐ
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये । जगतः पितरौ वंदे पार्वती
परमेश्वरौ ॥
स्नेही स्वजन !
“संस्कारो
हि गुणंतराधानमुच्यते”
।
आर्यो में प्रतिष्ठित ‘संस्कार’ चेतना और संवेदना की वह सात्विक प्रक्रिया है जो
मनुष्य के आचरण को सामाजिक एवं व्यावहारिक जीवन में ग्राह्य और अनुकरणीय बनाती है
। सनातनधर्म में द्विज होने की तपश्चर्या के प्रयासस्वरूप मेरे पुत्र चिरञ्जीव ..............
प्रपौत्र श्री ........... पौत्र श्री ...................
के
उपनयन
संस्कार (यज्ञोपवीत) के शुभ अवसर पर
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, विक्रम संवत २०७२
तदनुसार दिनांक २८ मई २०१५, दिन गुरुवार को
आप
सभी सपरिवार सादर आमंत्रित हैं । कृपया इस
शुभ अवसर पर पधार कर ब्रह्मचारी को आशीर्वचन देकर हमें अनुग्रहीत करें ।
कार्यक्रम
विवरण
उपनयन संस्कार –
दिनांक २८ मई, २०१५; दिन गुरुवार, प्रातः १०
बजे
ब्रह्मभोज –
रात्रि ८ बजे से आपके आगमन तक ।
स्थान –
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प्रेषक –
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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.