यह एक एक्स्पेरीमेण्ट
था ,,,,,
जो असफल
हो गया ।
नये-नये
शोधकर्ता ने बड़े उत्साह में अल्बीनो रैट को ज़हर की थोड़ी-थोड़ी ख़ुराक रोज देने का
फ़ैसला किया था । उद्देश्य था ......यह जानना कि ज़हर की कितनी न्यूनतम मात्रा के
अभ्यास से अल्बीनो रैट्स ख़ूबसूरत विषकन्या में तब्दील हो सकते हैं ।
किंतु दुर्भाग्य
! कि ज़हर की न्यूनतम पहली ख़ुराक ने ही अभागे रैट पर अपना लीथल इफ़ेक्ट डालकर अपने
धर्म का पालन किया ।
अल्बीनो
रैट अब इस दुनिया में नहीं है । वह मर गया
......पता नहीं अपनी मौत मरा या
.....या मार दिया गया ? शायद वह शहीद हो गया है .......शायद उसे यह भरोसा दिलाया गया था कि वह
एक ख़ूबसूरत विषकन्या में तब्दील हो जायेगा ........
.....और
उसे अगली बार पार्टी से टिकट मिल जायेगा ।
किंतु
दुर्भाग्य से प्रयोग असफल रहा ..........एक बेहद घटिया प्रयोग असफल हो गया ।
सदा मौन
रहने वाले प्रेक्षकों ने इस प्रयोग से निष्कर्ष निकाला .......
”एक आम
जब सामूहिक आम का शुभचिंतक होने का ख़्वाब देखता है तो वह आम नहीं रह जाया करता ...एक
आम होते-होते वह ख़ास हो जाया करता है ।
एक आम
का ख़ास हो जाना और फिर किसी आम को अल्बीनो रैट बना देना लोकतांत्रिक व्यवस्था का
सबसे ग़ुस्ताख़ सच है ।
और अंत
में यह भी बता दूँ कि वह अल्बीनो रैट एक ग़रीब किसान था .....कि वह एक ग़रीब किसान
नहीं था .......कि वह साफा बाँधने का धन्धा करता था .... कि वह एक महत्वाकांक्षी
आम था .......कि उसके साथ धोखा हुआ था ....कि उसने सचमुच में मर कर स्क्रिप्ट को
सौ टका जी कर दिखा दिया है ।
स्क्रिप्ट
को इस हद तक जीना ...........
उफ़ !
यह कैसी
दीवानगी थी ......
नहीं
.........मुझे गुस्सा है उस स्क्रिप्ट पर ....उसे लिखने वाले पर ।
मुझे
वक्ष में कुछ भारी सा लगने लगा है ..और
मेरी आँखों ने अपने खारे पानी में उस स्क्रिप्ट को डुबोकर उसका अंतिम संस्कार कर
दिया है ।
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