रविवार, 19 अप्रैल 2015

...और अब योग भी धर्मनिरपेक्ष !


प्रिय आत्मन !
अत्यंत हर्ष का विषय है कि भारत की सरकार योग से ॐ को हटा कर उसे सर्वस्वीकार्य बनाना चाहती है । भारत सरकार का चिंतन है कि योग से धर्म विषयक सभी तत्व समाप्त कर दिये जाने से वह सर्व स्वीकार्य हो जायेगा । हम भारत सरकार के इस विकासवादी चिंतन से अत्यंत प्रसन्न और गद्गद हैं । हम बिल्कुल भी दुःखी और निराश नहीं हैं ।  
 हम चाहते हैं कि योग ही नहीं बल्कि ईश्वर और धर्म को भी धर्मनिरपेक्ष होना चाहिये । देश की प्रगति ....विश्व की प्रगति तभी सम्भव है जब ब्रह्माण्ड का एक-एक परमाणुअवयव भी धर्मनिरपेक्ष बना दिया जाय । निश्चित ही, नकचढ़े और उपद्रवी लोगों की सुविधा के लिये यह सब किया जाना अत्यंत धर्मनिरपेक्ष कृत्य है जिसे होना ही चाहिये ।
आम की मिठास, गन्ध और उसकी पौष्टिकता आम का स्वाभाविक धर्म है । आम सर्व स्वीकार्य हो सके इसलिये आम को भी धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिये उसकी मिठास, गन्ध और पौष्टिकता प्रतिबन्धित होनी चाहिये । इसी तरह ऊर्जा को भी धर्मनिरपेक्ष बनाये जाने की दिशा में गम्भीरतापूर्वक विचार किये जाने की आवश्यकता है । वस्तुतः हमें सात्विक लोगों की नहीं अपितु तामसिक लोगों के तामसिक कार्यों की निर्बाध सम्पन्नता की अधिक चिंता है ।
भारतीय ज्ञान-विज्ञान को आधे-अधूरे और विकृत रूप में प्रस्तुत करके यदि राक्षसी और विघटनकारी शक्तियों को संतुष्ट किया जा सकता है तो इससे सनातन संस्कृति और सभ्यता का विकास होने में देर नहीं लगेगी ।
भारतीय मनीषियों का अनुभव तो यह रहा है कि कुपात्र को किसी भी प्रकार का ज्ञान नहीं दिया जाना चाहिये अन्यथा वह उसका दुरुपयोग ही करेगा । किंतु हम कुपात्रों को ही ज्ञान देने के लिये दृढ़-प्रतिज्ञ हैं इसके लिये हमें जो भी अनैतिक, अवैज्ञानिक, असांस्कृतिक और असभ्य कृत्य करने पड़ेंगे वह सब किये जायेंगे । हम संकल्प करते हैं कि दुष्टों की दुष्ट भावनाओं का सम्मान करने के लिये भारतीय संस्कृति और विज्ञान को समाप्त करने के किसी भी अभियान से हम कदापि पीछे नहीं हटेंगे ।
हम यह भी चाहते हैं कि विघटनकारी तत्वों की भावनाओं का सम्मान करते हुये .....उनके उद्देश्यों को पूर्ण करने की दिशा में हम उन्हें परमाणुबम बनाने का ज्ञान भी प्रदान करें । हर कुपात्र को इस धरती का सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिये ताकि वे उसका भरपूर दुरुपयोग करते हुये प्रकृति को विकृति की अंतिम परिणति तक पहुँचाने में अपना महती योगदान प्रदान कर सकें ।

          योग से ॐ को समाप्त करने के उत्तम विचार से हम धन्य हो गये हैं । महर्षि पतञ्जलि की आत्मा को हमारे धन्य होने से यदि दुःख पहुँचा हो तो पहुँचे ..भाड़ में जायें अतञ्जलि-पतञ्जलि । हम तो योग की ऐसी कम तैसी करेंगे ही ।  


https://secure.avaaz.org/en/petition/Prime_minister_of_India_Save_Ancient_Indian_science_and_culture_by_using_om_satyamev_jayate/?nOmlacb

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.