वाह-वाह क्या बात है
!
दरअसल बात यह है कि .....
इण्डियन शुगर मिल्स
एसोशिएसन 35 लाख टन चीनी नष्ट करना चाहती है जिससे चीनी के मूल्यों पर नियंत्रण
किया जा सके । पश्चिमी देशों की तर्ज़ पर भारत में भी अधिक कृषि उत्पादों को मूल्य
नियंत्रण के लिये नष्ट किये जाने पर विचार चल रहा है । पश्चिमी देशों में तो
हज़ारों लीटर दूध समुद्र में बहा दिया जाता है ......ताकि बाज़ार में उसकी कीमत को
नियंत्रित रखा जा सके ।
कीमतों
को नियंत्रित करने के लिये अधिक उत्पादन होने पर सोमालिया जैसे देशों को दान देने
की प्रथा का अभी तक जन्म नहीं हुआ है । जन्म होगा भी नहीं अन्यथा बाज़ार की अर्थशास्त्रीय
सभ्यता नष्ट हो जायेगी । मरते हुये भूखे आदमी को बचाने की अपेक्षा बाज़ार को बचाना
अधिक महत्वपूर्ण है ।
क्या
कोई बीवरेज़ कम्पनी या आयुध फैक्ट्री भी कभी अपने उत्पादों को नष्ट करने के बारे
में सोचेगी ? यह सब कृषि और कृषि से जुड़े अन्य उत्पादों के साथ ही सम्भव क्यों है ?
20.4.15
मेरे शहर में नहीं है
एक प्रेक्षागृह ।
ज़िन्दा रहने के लिये
जितना आवश्यक भोजन है उससे भी अधिक आवश्यक है ज़िन्दा रहने के उद्देश्यों को पूरा
करने के लिये कला और संगीत का होना .....और होते हुये प्रकट होना ।
कला और संगीत किसी भी
समाज के लिये वह सौम्य वल्गा है जो अनियंत्रित और हिंसक मनः आवेगों को बड़े ही
मनुहार के साथ थाम लेने की क्षमता रखती है ।
हमारे शहर में
रंगकर्मी हैं जो भूखे पेट रहकर भी रंगकर्म के लिये समर्पित हैं ....
हमारे शहर में सुधी
प्रेक्षक हैं जो कला के दीवाने हैं .....
हमारे शहर में
रचनाकार हैं जो कला की विभिन्न विधाओं का पोषण करने के लिये प्रतिबद्ध हैं .....
किंतु नहीं है तो
...एक अदद प्रेक्षागृह ।
क्या हमें इसके लिये
सरकार से भिक्षा मांगनी होगी ? ...भिक्षामि देहि ...भिक्षामि देहि ....
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |