हिन्दूराष्ट्र क्यों नहीं?
दिनांक ३०.०८.२०२४, इंडिया टीवी के कार्यक्रम “कॉफ़ी पर कुरुक्षेत्र” में आज हुई
चर्चा का एक अंश –
“पश्चिम
बंगाल में एक जिला मुस्लिम बहुल हो गया तो वहाँ माँग उठने लगी कि इसे इस्लामिक
जिला घोषित किया जाय । यही माँग धीरे-धीरे अन्य स्थानों से भी उठने लगेगी...!”
“इस्लामिक
जिला घोषित तो नहीं हुआ, क्या हिन्दूराष्ट्र की माँग़ नहीं
उठती रहती...”।
“भीमराव अम्बेडकर ने भी कहा था
कि हिन्दू और मुसलमान कभी एक साथ रह ही नहीं सकते, इसके बाद भी विभाजन के समय दोनों समुदायों का स्थानांतरण नहीं
किया गया...”।
“आप
सिलेक्टिव कोट करते हैं, बाबा साहब ने तो और भी बहुत
कुछ कहा था, उसे क्यों नहीं कोट करते?”
यह चर्चा
उस सम्प्रभु देश के नागरिकों के बीच हो रही है जहाँ सनातन-संस्कृति और
हिन्दूसभ्यता उदित एवं विकसित हुई, जो देश भारत, जम्बूद्वीप और आर्यावर्त के नाम से विश्व भर में जाना जाता रहा, जिस देश में विश्व भर के मत-मतांतरों को प्रश्रय प्राप्त होता
रहा, जिस देश में मोहम्मद साहब के सगे सम्बंधियों को शरण दी गयी और
उनकी रक्षा के लिए महाराजा दाहिर को मोहम्मद-बिन कासिम से हुये युद्ध में
आत्मोत्सर्ग तक करना पड़ा । आज उसी देश में हिन्दूराष्ट्र और हिन्दू सभ्यता जैसे
शब्द घृणा एवं विवाद के विषय बना दिए गए हैं । भारतीयता के विरुद्ध विषवमन करने वाले
ये कौन भारतीय हैं ?
अरब के
तत्कालीन शासक नहीं चाहते थे कि मोहम्मद साहब के वंशजों की ओर से कोई व्यक्ति
इस्लाम के शीर्ष ख़लीफा पद के लिए सामने आये अर्थात् वे इस्लाम तो स्वीकार कर रहे थे
पर मोहम्मद साहब के सगे सम्बंधियों को नहीं, इसलिए वे उनके सगे सम्बंधियों की हत्या करवा रहे थे जिससे
भयभीत होकर मोहम्मद साहब के दो सगे सम्बंधी अल्लाफ़ी भाइयों को अरब से भागकर सिंध के
हिन्दू राजा के यहाँ शरण के लिए याचना करनी पड़ी थी । सिंध के चचवंशी महाराजा दाहिर
अरब के कुछ लोगों को पहले ही अपने राज्य में स्थान दे चुके थे । अरब के उमय्यद
ख़लीफ़ाओं के शत्रु अल्लाफ़ी भाइयों ने राजा दाहिर के दरबार में शरण ली किंतु युद्ध
के समय उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि “हम आपके आभारी हैं लेकिन हम इस्लाम की सेना के
विरुद्ध तलवार नहीं उठा सकते”। इसके बाद उन्होंने सिंध से बाहर सुरक्षित भेजे जाने
का राजा दाहिर से अनुरोध किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया । राजा दाहिर को बौद्धों
के विश्वासघात के परिणामस्वरूप रणक्षेत्र में अपनी आहुति देनी पड़ी । मोहम्मद बिन कासिम
ने दाहिर की राजरानी रानीबाई के साथ यौनदुष्कर्म करने के बाद उनसे बलपूर्वक निकाह
किया, जबकि दूसरी रानी ने आत्मदाह कर लिया । इस तरह भारत में इस्लाम का
प्रवेश ही विश्वासघातों और कृतघ्नता के साथ हुआ लेकिन इतिहास के इस कटु सत्य से मोहनदास
और उनके अनुयाइयों ने कभी कोई शिक्षा नहीं ली ।
यह कैसा
देश है जहाँ किसी शिक्षित और विचारक कहे जाने वाले व्यक्ति को इस्लामिक जिला, इस्लामिक मुल्क, गजवा-ए-हिंद, शरीयत कानून और पर्सनल लॉ जैसी माँगों के विषयों पर कोई आपत्ति नहीं होती
किंतु समावेशी हिन्दूराष्ट्र की माँग करने पर आपत्ति होती है ?
इस विषय पर
मुखर रहने वाले मोतीहारी वाले मिसिर जी का संकल्प भी सभी भारतवासियों को विदित
होना चाहिए –
“जब कोई भारतवासी
कहता है कि यह देश मनुस्मृति, रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता से
नहीं संविधान से चलेगा तो वह भारतीय मूल्यों, सनातनी सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहरों का तिरस्कार करता है । ऐसा वक्तव्य देना भारतीय मनीषा और भारत के महान पूर्वजों के तप
की अवहेलना एवं भारत के विरुद्ध विद्रोह की स्पष्ट घोषणा करना है । भारत के
प्राचीन ग्रंथों और भारतीय महापुरुषों के आदर्शों एवं जीवनचरित्र का तिरस्कार करना
इस देश की आत्मा और आदर्शों की हत्या है जिसकी स्वीकृति किसी भी संविधान को नहीं
दी जा सकती । संविधान जनता के लिए है, उसे कुचलने के लिए नहीं । कोई संविधान जनता के साथ शत्रुवत या
भेदभावपूर्ण व्यवस्था कैसे कर सकता है! संविधान की सार्थकता तभी सम्भव है जब भारत
में समावेशी सनातनी मूल्यों को महत्व दिया जाय । भारत का कोई भी संविधान भारतीय
सनातनी मूल्यों से श्रेष्ठ नहीं हो सकता । यह मेरा स्पष्ट और दृढ़ मत है”।
यह विचारणीय
है कि भारत में “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूलुल्लाह” का जप किया जाना सनातनी
सहिष्णुता, संभावनाओं के प्रति उदारता, वैचारिक समावेशिता, विश्वबंधुत्व, विविधता और प्राकृतिक बहुलता जैसे
मौलिक एवं उदार विचारों के विरुद्ध एक कठोर अभियान की घोषणा है । यदि अल्लाह का
अभिप्राय ईश्वर जैसी किसी सर्वशक्तिमान सत्ता से है और इबादत का अर्थ उस सत्ता को सर्वोच्च
सम्मान देते हुये उसका स्मरण करना है तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है भला
! किंतु इन्हीं शब्दों के संकुचित अभिप्राय प्राकृतिक सिद्धांत और सर्वोच्च शक्ति
की स्वीकार्यता के विरुद्ध हो जाते हैं ।
कोई भी
संविधान किसी देश की सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों की रक्षा करने के लिए भी
उत्तरदायी होता है, उत्तरदायी होना ही चाहिए । यदि
किसी देश का संविधान ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं रह पाता तो वह त्रुटिपूर्ण है और लोकहितकारी
नहीं है, राष्ट्रहित में उसे तुरंत
निरस्त किए जाने की आवश्यकता है ।
क्या हमारा
संविधान इन सामान्य से प्रश्नों के उत्तर दे सकता है –
धर्म के
आधार पर भारत विभाजन की माँग करने वाले मुसलमान विभाजन के बाद भी भारत में ही
क्यों बने रहे, और यदि बने भी रहे तो अब भारत के
अस्तित्व को मिटाकर अरबी अस्तित्व को थोपने के लिए क्यों उग्र होते जा रहे हैं ?
जब भारत के
दो विभाजित खण्डों को इस्लामिक देश बना दिया गया तो भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने
में किसे और क्यों आपत्ति होनी चाहिये ?
संविधान के
पृष्ठों पर अंकित किए गए रामराज्य के चित्र किस तरह की कल्पना और भविष्य के प्रतीक
हैं ? क्या यह हिन्दूराष्ट्र की कल्पना नहीं है ?
संविधान
संशोधन कर “सेक्युलर” शब्द जोड़ने से पहले जनता की राय क्यों नहीं ली गयी थी ?
यदि हमारा
संविधान इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता तो हम किस आधार पर संविधान को महान
स्वीकार करें और उसकी प्रशंसा करें ?
जो लोग बात-बात
में संविधान की प्रशंसा करते हैं, वे ही लोग संविधान की धज्जियाँ
उड़ाने में सबसे आगे खड़े दिखायी देते हैं । जो लोग न्यायालयों के निर्णयों को
अस्वीकार कर देते हैं, बहुसंख्य जनता ही नहीं सेना और
सुरक्षाबलों पर भी आक्रमण करते हैं, धार्मिक अनुष्ठानों पर पथराव करते हैं, देश की सम्पत्तियों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं, भारत के अस्तित्व को खुलकर चुनौती देते हैं ...वे लोग ऐसा करके क्या
संविधान का सम्मान कर रहे होते हैं ?
अब यह कहना
बंद करो कि “हिन्दुस्तान किसी के बाप का
नहीं है” । हिन्दुस्तान हमारे पूर्वजों
के बाप के बाप के समय से हमारा है, उस समय न तुम्हारा इस्लाम था और न तुम थे । हमें किसी को यह
बताने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सनातन हिन्दूधर्म इस्लाम आने के बाद प्रारम्भ
हुआ और न भारत का इतिहास ईसवी सन् सातसौ बारह के बाद से ही प्रारम्भ होता है । हम
जानते हैं कि तथाकथित सेक्युलर भारतवासियों को भारत का यह सत्य कभी स्वीकार नहीं
होगा, पर सत्य तो यही है जिसे झुठलाया नहीं किया जा सकता ।
सावधान! बीबीसी
न्यूज़ हिन्दू-मुसलमान के विषय पर सदा से मिथ्या समाचार परोसता रहा है । वह यह दुष्प्रचार
करता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं, उनकी हत्यायें कर दी जाती हैं और उनकी सम्पत्ति को नष्ट कर दिया
जाता है । भारत के हिन्दुओं के विरुद्ध यह एक सोची समझी वैश्विक धूर्तता है जिसके लिए
बीबीसी कभी-कभी औपचारिक क्षमायाचना तो करता रहता है पर अपनी आदत कभी नहीं छोड़ता इसलिए
भारत में बीबीसी को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ।