शनिवार, 31 अगस्त 2024

हिन्दुस्तान में हिन्दूराष्ट्र का विरोध क्यों

 

हिन्दूराष्ट्र क्यों नहीं?

दिनांक ३०.०८.२०२४, इंडिया टीवी के कार्यक्रम “कॉफ़ी पर कुरुक्षेत्र” में आज हुई चर्चा का एक अंश –

“पश्चिम बंगाल में एक जिला मुस्लिम बहुल हो गया तो वहाँ माँग उठने लगी कि इसे इस्लामिक जिला घोषित किया जाय । यही माँग धीरे-धीरे अन्य स्थानों से भी उठने लगेगी...!

“इस्लामिक जिला घोषित तो नहीं हुआ, क्या हिन्दूराष्ट्र की माँग़ नहीं उठती रहती...”।

भीमराव अम्बेडकर ने भी कहा था कि हिन्दू और मुसलमान कभी एक साथ रह ही नहीं सकते, इसके बाद भी विभाजन के समय दोनों समुदायों का स्थानांतरण नहीं किया गया...

“आप सिलेक्टिव कोट करते हैं, बाबा साहब ने तो और भी बहुत कुछ कहा था, उसे क्यों नहीं कोट करते?”

 

यह चर्चा उस सम्प्रभु देश के नागरिकों के बीच हो रही है जहाँ सनातन-संस्कृति और हिन्दूसभ्यता उदित एवं विकसित हुई, जो देश भारत, जम्बूद्वीप और आर्यावर्त के नाम से विश्व भर में जाना जाता रहा, जिस देश में विश्व भर के मत-मतांतरों को प्रश्रय प्राप्त होता रहा, जिस देश में मोहम्मद साहब के सगे सम्बंधियों को शरण दी गयी और उनकी रक्षा के लिए महाराजा दाहिर को मोहम्मद-बिन कासिम से हुये युद्ध में आत्मोत्सर्ग तक करना पड़ा । आज उसी देश में हिन्दूराष्ट्र और हिन्दू सभ्यता जैसे शब्द घृणा एवं विवाद के विषय बना दिए गए हैं । भारतीयता के विरुद्ध विषवमन करने वाले ये कौन भारतीय हैं ?

अरब के तत्कालीन शासक नहीं चाहते थे कि मोहम्मद साहब के वंशजों की ओर से कोई व्यक्ति इस्लाम के शीर्ष ख़लीफा पद के लिए सामने आये अर्थात् वे इस्लाम तो स्वीकार कर रहे थे पर मोहम्मद साहब के सगे सम्बंधियों को नहीं, इसलिए वे उनके सगे सम्बंधियों की हत्या करवा रहे थे जिससे भयभीत होकर मोहम्मद साहब के दो सगे सम्बंधी अल्लाफ़ी भाइयों को अरब से भागकर सिंध के हिन्दू राजा के यहाँ शरण के लिए याचना करनी पड़ी थी । सिंध के चचवंशी महाराजा दाहिर अरब के कुछ लोगों को पहले ही अपने राज्य में स्थान दे चुके थे । अरब के उमय्यद ख़लीफ़ाओं के शत्रु अल्लाफ़ी भाइयों ने राजा दाहिर के दरबार में शरण ली किंतु युद्ध के समय उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि “हम आपके आभारी हैं लेकिन हम इस्लाम की सेना के विरुद्ध तलवार नहीं उठा सकते”। इसके बाद उन्होंने सिंध से बाहर सुरक्षित भेजे जाने का राजा दाहिर से अनुरोध किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया । राजा दाहिर को बौद्धों के विश्वासघात के परिणामस्वरूप रणक्षेत्र में अपनी आहुति देनी पड़ी । मोहम्मद बिन कासिम ने दाहिर की राजरानी रानीबाई के साथ यौनदुष्कर्म करने के बाद उनसे बलपूर्वक निकाह किया, जबकि दूसरी रानी ने आत्मदाह कर लिया । इस तरह भारत में इस्लाम का प्रवेश ही विश्वासघातों और कृतघ्नता के साथ हुआ लेकिन इतिहास के इस कटु सत्य से मोहनदास और उनके अनुयाइयों ने कभी कोई शिक्षा नहीं ली ।

यह कैसा देश है जहाँ किसी शिक्षित और विचारक कहे जाने वाले व्यक्ति को इस्लामिक जिला, इस्लामिक मुल्क, गजवा-ए-हिंद, शरीयत कानून और पर्सनल लॉ जैसी माँगों के विषयों पर कोई आपत्ति नहीं होती किंतु समावेशी हिन्दूराष्ट्र की माँग करने पर आपत्ति होती है ?

इस विषय पर मुखर रहने वाले मोतीहारी वाले मिसिर जी का संकल्प भी सभी भारतवासियों को विदित होना चाहिए –  

“जब कोई भारतवासी कहता है कि यह देश मनुस्मृति, रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता से नहीं संविधान से चलेगा तो वह भारतीय मूल्यों, सनातनी सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहरों का तिरस्कार करता है । ऐसा वक्तव्य देना भारतीय मनीषा और भारत के महान पूर्वजों के तप की अवहेलना एवं भारत के विरुद्ध विद्रोह की स्पष्ट घोषणा करना है । भारत के प्राचीन ग्रंथों और भारतीय महापुरुषों के आदर्शों एवं जीवनचरित्र का तिरस्कार करना इस देश की आत्मा और आदर्शों की हत्या है जिसकी स्वीकृति किसी भी संविधान को नहीं दी जा सकती । संविधान जनता के लिए है, उसे कुचलने के लिए नहीं । कोई संविधान जनता के साथ शत्रुवत या भेदभावपूर्ण व्यवस्था कैसे कर सकता है! संविधान की सार्थकता तभी सम्भव है जब भारत में समावेशी सनातनी मूल्यों को महत्व दिया जाय । भारत का कोई भी संविधान भारतीय सनातनी मूल्यों से श्रेष्ठ नहीं हो सकता । यह मेरा स्पष्ट और दृढ़ मत है”।   

यह विचारणीय है कि भारत में ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूलुल्लाह” का जप किया जाना सनातनी सहिष्णुता, संभावनाओं के प्रति उदारता, वैचारिक समावेशिता, विश्वबंधुत्व, विविधता और प्राकृतिक बहुलता जैसे मौलिक एवं उदार विचारों के विरुद्ध एक कठोर अभियान की घोषणा है । यदि अल्लाह का अभिप्राय ईश्वर जैसी किसी सर्वशक्तिमान सत्ता से है और इबादत का अर्थ उस सत्ता को सर्वोच्च सम्मान देते हुये उसका स्मरण करना है तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है भला ! किंतु इन्हीं शब्दों के संकुचित अभिप्राय प्राकृतिक सिद्धांत और सर्वोच्च शक्ति की स्वीकार्यता के विरुद्ध हो जाते हैं ।       

कोई भी संविधान किसी देश की सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों की रक्षा करने के लिए भी उत्तरदायी होता है, उत्तरदायी होना ही चाहिए । यदि किसी देश का संविधान ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं रह पाता तो वह त्रुटिपूर्ण है और लोकहितकारी नहीं है, राष्ट्रहित में उसे तुरंत निरस्त किए जाने की आवश्यकता है ।

क्या हमारा संविधान इन सामान्य से प्रश्नों के उत्तर दे सकता है – 

धर्म के आधार पर भारत विभाजन की माँग करने वाले मुसलमान विभाजन के बाद भी भारत में ही क्यों बने रहे, और यदि बने भी रहे तो अब भारत के अस्तित्व को मिटाकर अरबी अस्तित्व को थोपने के लिए क्यों उग्र होते जा रहे हैं ?

जब भारत के दो विभाजित खण्डों को इस्लामिक देश बना दिया गया तो भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने में किसे और क्यों आपत्ति होनी चाहिये ?

संविधान के पृष्ठों पर अंकित किए गए रामराज्य के चित्र किस तरह की कल्पना और भविष्य के प्रतीक हैं ? क्या यह हिन्दूराष्ट्र की कल्पना नहीं है ?

संविधान संशोधन कर “सेक्युलर” शब्द जोड़ने से पहले जनता की राय क्यों नहीं ली गयी थी ?

यदि हमारा संविधान इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता तो हम किस आधार पर संविधान को महान स्वीकार करें और उसकी प्रशंसा करें ?  

जो लोग बात-बात में संविधान की प्रशंसा करते हैं, वे ही लोग संविधान की धज्जियाँ उड़ाने में सबसे आगे खड़े दिखायी देते हैं । जो लोग न्यायालयों के निर्णयों को अस्वीकार कर देते हैं, बहुसंख्य जनता ही नहीं सेना और सुरक्षाबलों पर भी आक्रमण करते हैं, धार्मिक अनुष्ठानों पर पथराव करते हैं, देश की सम्पत्तियों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं, भारत के अस्तित्व को खुलकर चुनौती देते हैं ...वे लोग ऐसा करके क्या संविधान का सम्मान कर रहे होते हैं ?

अब यह कहना बंद करो कि हिन्दुस्तान किसी के बाप का नहीं है। हिन्दुस्तान हमारे पूर्वजों के बाप के बाप के समय से हमारा है, उस समय न तुम्हारा इस्लाम था और न तुम थे । हमें किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सनातन हिन्दूधर्म इस्लाम आने के बाद प्रारम्भ हुआ और न भारत का इतिहास ईसवी सन् सातसौ बारह के बाद से ही प्रारम्भ होता है । हम जानते हैं कि तथाकथित सेक्युलर भारतवासियों को भारत का यह सत्य कभी स्वीकार नहीं होगा, पर सत्य तो यही है जिसे झुठलाया नहीं किया जा सकता ।

  

सावधान! बीबीसी न्यूज़ हिन्दू-मुसलमान के विषय पर सदा से मिथ्या समाचार परोसता रहा है । वह यह दुष्प्रचार करता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं, उनकी हत्यायें कर दी जाती हैं और उनकी सम्पत्ति को नष्ट कर दिया जाता है । भारत के हिन्दुओं के विरुद्ध यह एक सोची समझी वैश्विक धूर्तता है जिसके लिए बीबीसी कभी-कभी औपचारिक क्षमायाचना तो करता रहता है पर अपनी आदत कभी नहीं छोड़ता इसलिए भारत में बीबीसी को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

वर्चस्व का संघर्ष

            जब हमारे गमन की दिशा सभ्यता और सहिष्णुता के उत्कर्ष की ओर होती है तब हमारा सबसे कठिन सामना असभ्यता और असहिष्णुता से ही होता है । विचारों और प्रतीकों की दो विपरीत धाराएँ आपस में टकराती हैं जिनसे निकलने वाली चिंगारियाँ गम्भीर चुनौती बनकर हमें रोकती हैं ।

भौतिक प्रतीकों पर होने वाले आक्रमण वस्तुतः विचारधाराओं और जीवनशैलियों पर आक्रमण हुआ करते हैं । प्रतीकों को मिटाने के प्रयासों से विचारधाराओं को तो मिटाया जा सकना सम्भव नहीं तथापि विचारधाराओं का दलन और उनपर वर्चस्व तो सम्भव है ही । बांग्लादेश में हिन्दूनरसंहार ही नहीं हो रहा, बौद्ध और ईसाई नरसंहार भी हो रहा है, यह वर्चस्व का युद्ध है जिसमें अन्य विचारधाराओं को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सुरक्षात्मक संघर्ष करना होगा । निष्क्रियता या पलायन का प्रयास संघर्ष किए बिना ही पराजय की पूर्व घोषणा है ।

मंदिर और मूर्ति जैसे भौतिकप्रतीक हमारे विचारों एवं जीवनदर्शन को प्रदर्शित करते हैं । यह एक दीर्घ वैचारिक यात्रा का समेकित परिणाम है । हम केवल भौतिक शरीर मात्र ही नहीं होते, कुछ और भी होते हैं जिसके अभाव में हम मनुष्य नहीं हो पाते, पशु भर रहते हैं । मनुष्य होने और पशु बने रहने के बीच संघर्षों और साधनाओं की एक दीर्घ यात्रा होती है । 

बांग्लादेश के जातीय नरसंहार के एकपक्षीय युद्ध में कोई मारा जाएगा, कोई धर्मपरिवर्तन करेगा, और कुछ लोग सुरक्षात्मक संघर्ष करेंगे । बांग्लादेशी अ-मुस्लिमों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना ही होगा । सदा से ऐसा ही होता रहा है, मानव सभ्यता के इतिहास विघटनकारी शक्तियों से बचने के प्रयासों और संघर्षों से भरे पड़े हैं । जो लोग विघटनकारी शक्तियों के समर्थन में खड़े हैं उन्हें भी पहचानना और उनका प्रतिकार करना आवश्यक है, रणनीति का महत्वपूर्ण भाग है, फिर वे बलराम ही क्यों न हों !

हमारे देवी-देवताओं पर प्रहार, हिन्दू समुदाय को ललकार है ।

“देवी-देवताओं का विरोध करना और उनकी मूर्तियों को तोड़ना हमारे मज़हब में पुण्य का काम है, यह हमारा अभियान है । कोई हिन्दू, ईसाई या यहूदी हमें हमारे धर्म के अनुसार जीने से रोक नहीं सकता । हमें यह अधिकार भारत के संविधान ने दिया है । जिसका अल्लाह में ईमान नहीं है वह व्यक्ति काफ़िर है जिसे पाक रमजान के महीने के बाद घात लगाकर मार डालने का हुक्म है । हम जो भी करते हैं अल्लाह की ख़िदमत में करते हैं, वक्फ़ बोर्ड जो ज़मीन लेता है वह भी अल्लाह की ख़िदमत के लिए है, जब संविधान को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम कौन होते हो आपत्ति करने वाले ?

क्या वास्तव में संविधान को कोई आपत्ति नहीं है? क्या वास्तव में संविधान ने मुसलमानों को इतनी अराजक और असामाजिक शक्तियाँ प्रदान कर दी हैं ? टीवी डिबेट्स के लोग संविधान की इस शिथिलता पर कोई चर्चा क्यों नहीं करते ? यदि वास्तव में संविधान ने मुसलमानों को इतने अधिकार और असीमित शक्तियाँ दे रखी हैं तो हमें संविधान के स्वरूप और उद्देश्य पर पुनः विचार करने की तुरंत आवश्यकता है ।

सनातनियों की शोभायात्राओं पर पथराव, मंदिरों पर हिंसक आक्रमण, हिन्दू लड़कियों से सामूहिक यौनदुष्कर्म, नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों से विवाह के बाद उनसे बलात् इस्लाम स्वीकारने का दबाव, मदरसों में छात्रों को हिन्दुओं के प्रति घृणापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, भारत को दबावपूर्वक इस्लामी देश बनाने की घोषणा करना, हिन्दुओं से यह कहना कि यह देश तुम्हारे बाप का नहीं है, किसी भी भूभाग को वक्फ़-बोर्ड की ज़मीन बताकर हिन्दुओं से वह स्थान खाली करने की आदेशात्मक कार्यवाही करने, अपनी पैतृक सम्पत्ति कौड़ी के भाव बेचकर पलायन के लिए हिन्दू परिवारों को बाध्य करने आदि की बढ़ती  घटनाओं पर अंकुश न लग पाना क्या प्रदर्शित करता है ? सत्ता की दुर्बलता, हिन्दुओं की दुर्बलता, या मुसलमानों की दृढ़ इच्छाशक्ति ?   

इन घटनाओं के माध्यम से हिन्दुओं को यह चुनौती दी जा रही है कि पश्चिमी पंजाब (अफगानिस्तान), पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह अब शेष भारत भी मुसलमानों का है । इस्लाम पूरी दुनिया में इसी तरह अपने पैर पसारता रहा है । इस्लाम के इस विस्तार में वामपंथी और सेक्युलर हिन्दू उनके साथ खड़े हैं, ठीक सिंध की तरह जब मोहम्मद इब्न अल क़ासिम अल थकाफ़ी की भारत पर आक्रमण करने आयी सेना का सिंध के बौद्धों ने स्वागत किया और अपने ही हिन्दू राजा दाहिर को पराजित करवा दिया । हिन्दूविरोध की यह लहर सन् सात सौ बारह से निरंतर बढ़ती ही जा रही है, दूसरी ओर हिन्दुओं में इस लहर के प्रतिकार की कोई संगठित इच्छाशक्ति ही नहीं है । कोई प्रतिकार न करके क्या हिन्दू स्वयं ही अपनी सभ्यता को समाप्त हो जाने दे रहे हैं ?

गुरुवार, 22 अगस्त 2024

भाजपा का अंत करने को तैयार राकेश टिकैत

            स्वयंभू किसान नेता राकेश टिकैत ने मोदी को चेतावनी दे दी है कि वह बांग्लादेश की तरह ही मोदी की सत्ता को उखाड़ फेकेगा । टिकैत की पिछली गतिविधियों  और उन पर प्रधानमंत्री मोदी की निरुपायता को देखते हुये उसकी यह धमकी गम्भीर और पूर्ण आत्मविश्वास से भरी हुई है । मोदी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए सारे परस्पर विरोधी भी एक साथ खड़े दिखायी देते रहे हैं इसलिए टिकैत की धमकी और भी गम्भीर है ।

बांग्लादेश और भारत की परिस्थितियों में कुछ समानताएँ या असमानताएँ हो सकती हैं, किन्तु कुछ घटक तो बिल्कुल एक जैसे ही हैं, यथा – हिन्दुत्वद्वेष और कट्टरवादी मुसलमानों की हुंकार में हुंकार भरते पूरे विपक्षी दल । हसीना के साथ पूरा देश नहीं था, मोदी के साथ भी पूरा देश नहीं है । हसीना के साथ उनके अपने ही लोगों ने विश्वासघात किया, मोदी के साथ भी उनके ही अपने लोग विश्वासघात करने के लिए तैयार बैठे हैं । हसीना अपने राजनीतिक शत्रुओं की गहराई को समझ नहीं सकीं, मोदी भी कहाँ समझ पा रहे हैं !

लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश के परिणामों ने भाजपा विरोधी दलों को उत्साहित और ऊर्जावान किया है । भाजपा में अंतरकलह, पद को लेकर खींचतान और संगठनात्मक दुर्बलताओं को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि उसका पथ सरल होने वाला है ।

भाजपा के लोगों को अपनी सत्ता के प्रति जन-असंतोष की गम्भीरता पर विचार किए जाने की आवश्यकता है । चुनाव में जीत को जनसंतोष और लोकप्रियता का प्रतीक नहीं माना जा सकता । चुनाव जीतना जटिल घटकों की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का गणितीय परिणाम है । इसका तथ्यों की वास्तविकता से उतना ही सम्बंध है जितना कि स्टेटिस्टिक्स का अंकगणितीय निष्कर्षों से । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो भाजपा को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि नदी के विभिन्न स्थानों की गहराइयों के औसतमान को पूरी नदी की गहराई मानकर उसे पैदल ही पार करना संकट का कारण बन सकता है ।

वाराणसी और अयोध्या में मतदाताओं के जन-असंतोष को समझे जाने की आवश्यकता है । एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि जनता अराजक तत्वों के पक्ष में मतदान क्यों करती है ? बहुत अच्छे और सुलझे हुए लोग चुनाव क्यों हार जाते हैं ?

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए भाजपा के प्रयास सराहनीय रहे पर राष्ट्रीय स्तर पर आम जनता को भाजपा से कुछ नीतिगत अपेक्षायें थीं जो पूरी नहीं हो सकीं । एक देश एक कानून, साम्प्रदायिक उन्माद, हिन्दू-उत्पीड़न, अवैध विदेशियों के लिए एक स्पष्ट नीति, न्यायपालिका और ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार जैसी अपेक्षाएँ पूरी नहीं हो सकीं । नेताओं में सत्ता का अहंकार और जनता की उपेक्षा भी ऐसे दो महत्वपूर्ण घटक हैं जिन्होंने भाजपा के अपने ही कार्यकर्ताओं को विमुख और उदासीन कर दिया है । भाजपा आज भी इस विषय पर आत्मावलोकन क्यों नहीं करना चाहती ? कदाचित इसका एक कारण तो नेताओं की यह धारणा है कि राष्ट्रवादी हिन्दुओं के पास भाजपा को वोट देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प है ही नहीं, उन्हें झक मारकर भाजपा को ही वोट देना होगा । लेकिन भाजपा को भी यह सोचना होगा कि कौन सी भाजपा ? क्या वह भाजपा जो भारत को हिन्दूराष्ट्र घोषित करने के विषय पर कभी गम्भीर नहीं हो सकी ? क्या वह भाजपा जिसका बहुत कुछ कांग्रेसीकरण हो चुका है ? क्या वह भाजपा जिसमें भारतीय जनसंघ के मौलिक सिद्धांतों और आदर्शों का अब कोई मूल्य नहीं रहा ? राष्ट्रवादी हिन्दू किस भाजपा को वोट दे ? भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है कि राष्ट्रवादी लोगों ने वैकल्पिक समाधानों के बारे में गम्भीरता से विचार करना आरम्भ कर दिया है ।

बहुत से लोग हैं जो मतदान में ही विश्वास नहीं रखते । यह और भी गम्भीर विषय है, स्वतंत्रताप्राप्ति के दशकों के बाद भी राजनीतिक दल विचारवान जनता में अपनी स्वीकार्यता क्यों नहीं उत्पन्न कर सके ? आज की शिक्षित और विचारशील युवा पीढ़ी मतदान करने के पक्ष में क्यों नहीं है ? मतदान के प्रति उनका विकर्षण बहुत कुछ कहता है जिसे सभी दलों के नेताओं को समझने की आवश्यकता है ।

अराजक सत्ता

            जब कोई महिला मुख्यमंत्री किसी निष्ठावान और प्रतिभाशाली चिकित्सा अध्येता के सुनियोजित यौनदुष्कर्म और क्रूरहत्या के विरोध में चिकित्सकों के प्रदर्शन पर टिप्पणी करती हुयी कहती है कि “वह तो मर चुकी है, अब वह कभी वापस नहीं आएगी । अब आप लोग प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं ? मैंने उसके परिवार को पहले ही दस लाख रुपये दे दिए हैं, अब आपको प्रदर्शन करना है तो करते रहो” ...तब पदीय दायित्वों की उपेक्षा, संवेदनहीनता, अन्याय, अराजकता और दमन के पिछले सभी मानक भारी विस्फोट के साथ टूट-टूट कर बिखरने लगते हैं । संविधान की हत्या का यही वास्तविक स्वरूप है ।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अराजक सत्ता ने अपने ही बनाए कलंकों के पिछले सभी मानक तोड़ दिए हैं । आश्चर्य यह है कि इस सबके बाद भी वह अपने मुख्यमंत्री पद का दुरुपयोग करती हुई अपराधियों को बचाने और अपराध के प्रमाणों को नष्ट करने में अपराधियों को सहयोग कर रही है ।

कोलकाता मेडिकल कॉलेज की इतनी वीभत्स घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है । यह घटना आर्थिक और शैक्षणिक भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि ड्रग्स, देह-व्यापार और मानव अंगों के व्यापार की गोपनीयता को बनाए रखने के क्रम में आभिजात्य वर्ग के लोगों द्वारा संगठित प्रयासों का एक छोटा सा परिणाम भर है, वास्तविक स्थिति तो और भी भयावह है जो अभी तक अप्रकाशित है और आगे भी कभी प्रकाशित नहीं हो सकेगी । यदि इन सभी समस्याओं के मूल को समाप्त न किया गया तो स्थितियाँ और भी भयावह हो सकती हैं ।

शासन और प्रशासन में से किसी ने भी अपने संवैधानिक दायित्वों का लेश भी निर्वहन किया होता तो विश्व भर को दहला देने वाला इतना दुर्दांत अपराध घटित ही नहीं हुआ होता । इस हाई-प्रोफ़ाइल अपराध के घटित होने के पश्चात् हुये घटनाक्रमों की शृंखला से हर किसी को स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि अपराधियों के अवैध व्यापारों को निर्लज्ज और क्रूरसत्ता का महत्वपूर्ण संरक्षण प्राप्त होता रहा है । इस घटना के विरुद्ध बंगाल में जनाक्रोश तो है पर उसके स्थायी समाधान के लिए जो संगठित प्रयास किए जाने चाहिए उसका प्रायः अभाव ही अभी तक दिखाई दिया है ।

उच्चशिक्षा प्राप्त पुलिस के उच्चाधिकारी, स्थानीय कलेक्टर, प्राचार्य डॉक्टर संदीप घोष और घटना में लिप्त चिकित्सा छात्र इतने अमानवीय और संवेदनशून्य कैसे हो सकते हैं ? …किंतु प्रमाण तो यही बताते हैं कि ये सभी लोग जघन्य अपराध में सहभागी रहे हैं । उच्चशिक्षा और जघन्य अपराध ? सामान्यतः माना जाता है कि ये दोनों विरोधाभासी हैं, इनके पारस्परिक तालमेल की कोई सहज स्थिति नहीं हो सकती, किंतु तालमेल देखा जा रहा है, वह भी अटूट तालमेल । उच्चशिक्षा और उच्चपदीय दायित्वों के साथ पशुता का तालमेल क्या हमें कुछ सोचने और मंथन करने के लिए विवश नहीं करता ? गड़बड़ी कहाँ पर है ? दोष शिक्षा में है, या संस्कारों में, या शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की पात्रता में, या इन सबके लिए उत्तरदायी राजसत्ता की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में ? उच्चशिक्षित व्यक्ति इतना निरंकुश, स्वेच्छाचारी और पशु से भी किसी अधम कोटि का क्यों है ? स्थायी समाधान के लिए मंथन तो करना ही होगा

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कोलकाता निर्भया के बाद अब देहरादून निर्भया

कितनी निर्भयायें ?

(दिल्ली के कुख्यात निर्भया कांड से पहले भी दो सौ पचास ज्ञात-निर्भयाओं के साथ लम्बे समय तक शृंखलाबद्ध एवं सुनियोजित तरीके से सामूहिक यौनदुष्कर्म किया जाता रहा था इसलिए निर्भयाओं के क्रूरइतिहास में इस नामकरण से पूर्व की पीड़िताओं को भी सम्मिलित किया गया है । कोलकाता मेडिको कांड निर्भया-दो नहीं, दो सौ अट्ठावन है)।

अथ निर्भया शृंखला...

निर्भया (दो सौ पचास), शृंखलाबद्ध एवं सुनियोजित सामूहिक यौनदुष्कर्म, अजमेर शरीफ़, सन् १९९२

अजमेर शरीफ़ दरगाह के ख़ादिम परिवारों के चिश्तियों द्वारा एक लम्बे समय तक किया जाता रहा भारत का सबसे बड़ा यौनदुष्कर्म, जिसमें विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्ययन करने वाली निर्भयाओं की संख्या दो सौ पचास थी । बत्तीस वर्ष तक चली न्यायिक प्रक्रिया के बाद आज न्यायालय के न्यायाधीश निर्भयाओं पर कृपा करके निर्णय सुनाने की कृपा करेंगे, इस बीच छह निर्भयाओं ने आत्महत्या कर ली । “विलम्ब से न्याय, अन्याय है” का ढिंढोरा पीटने वाले न्यायालय का बत्तीस वर्ष बाद न्याय अद्भुत् है ।

निर्भया (दो सौ एक्यावन), प्रभावशाली लोगों द्वारा लम्बे समय तक कलाकार का सामूहिक यौनदुष्कर्म, किलिरूर केरल, सन् २००३,

फ़िल्म में काम दिलाने के बहाने भिन्न-भिन्न स्थानों पर ले जाकर कई प्रभावशाली लोगों द्वारा यौनदुष्कर्म, एक बच्ची को जन्म देने के बाद युवती की मृत्यु, पाँच आरोपी दोषी पाये गये ।

निर्भया (दो सौ बावन)), सामूहिक यौनदुष्कर्म, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, सन् २०१२,

पैरामेडिकल छात्रा से चलती बस में सामूहिक यौनदुष्कर्म के बाद क्रूरतापूर्वक अंगभंग, गुप्तांगों में लोहे की ब्लंट रॉड से आंतरिक प्रहार, पेट चीरकर आँतें बाहर निकाल दी गयीं । चिकित्सा के अनन्तर मृत्यु । चिकित्सा करने वाले डॉक्टर्स ने अपने जीवन में ऐसी कोई वीभत्सता न देखी थी, न सुनी थी, पीड़िता की हृदयविदारक स्थिति देखकर डॉक्टर्स अपने को रोक नहीं सके और रो पड़े थे ।  

न्यायालय की महानता – इस कांड का एक अपराधी अवयस्क था जिसने निर्भया के गुप्तांग में रॉड से प्रहार कर सर्वाधिक क्रूरता की थी, उसी सर्वाधिक क्रूरता करने वाले अवयस्क अपराधी को उसकी पहचान छिपा कर बालसुधार गृह में रखा गया जहाँ उसके उग्र व्यवहार से सभी लोग परेशान रहते थे । वयस्क होने पर उसे दक्षिण भारत में किसी अज्ञात स्थान पर सर्वथा नयी पहचान के साथ आर्थिक सहयोग दे कर स्वाबलम्बी बनाकर पुरस्कृत किया गया । अपराध में वयस्कों को भी बहुत पीछे छोड़ देने वाले क्रूर अपराधी की अवयस्कता को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता न्यायविदों और विधायिका को आज तक नहीं हुयी अद्भुत् भारत! विश्वगुरु भारत! 

निर्भया (दो सौ तिरेपन), सामूहिक यौनदुष्कर्म, बुलंदशहर, सन् २०१६

नोयडा जाते समय माँ-बेटी को कार से उतारकर, खेत में ले जाकर सामूहिक यौनदुष्कर्म ।  

निर्भया (दो सौ चौवन), सामूहिक यौनदुष्कर्म, उन्नाव, सन् २०१७

बी.एससी. द्वितीय वर्ष की दलित छात्रा का अपहरण, कई दिन तक सामूहिक यौनदुष्कर्म के बाद हत्या, लकड़ी या लोहे की छड़ से गुप्तांगों में आंतरिक प्रहार, हत्या के बाद शव को गड्ढे में गाड़ दिया गया । प्रशासन ने घटना के प्रमाणों का युक्तियुक्त परीक्षण नहीं किया, पुलिस द्वारा अपराध अन्वेषण कार्यवाही में घोर उपेक्षा, प्रभावशाली अपराधियों को बचाने के राजनीतिक प्रयास किये गये ।  

निर्भया (दो सौ पचपन), आठ साल की बच्ची के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म, कठुआ, सन् २०१८

सामूहिक यौनदुष्कर्म के बाद सिर को पत्थर से कुचलकर बच्ची की हत्या कर दी गयी ।

निर्भया (दो सौ छप्पन), सामूहिक यौन दुष्कर्म, हैदराबाद, सन् २०१९

विटरनरी डॉक्टर के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म, बाद में जीवित जला दिया गया । एक पुलिस अधिकारी ने चार अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया जिस पर पुलिस अधिकारी को पुरस्कृत करने के स्थान पर बंदी बना लिया गया और उस पर चार लोगों की हत्या के आरोप में कानूनी कार्यवाही की गयी । जहाँ ऐसा अद्भुत् दंड-विधान हो वहाँ किसमें साहस है जो रोक सके निर्भयाओं की शृंखला ?

निर्भया (दो सौ सत्तावन), दलित युवती के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म, हाथरस, सन् २०२०

चिकित्सा के अनंतर पीड़िता की मृत्यु । अपराध अन्वेषण में शासन-प्रशासन द्वारा उपेक्षा की गयी । अपराधियों को बचाने के प्रयास ।

निर्भया (दो सौ अट्ठावन), चिकित्सा वैज्ञानिक के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म, कोलकाता, सन् २०२४

कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल में पीजी ट्रेनी एवं युवा वैज्ञानिक द्वारा ड्रग्स, पोर्नोग्राफ़ी, मानव-अंग-व्यापार एवं आर्थिक भ्रष्टाचार में सम्मिलित न होने एवं इन कृत्यों का विरोध करने के कारण युवा वैज्ञानिक के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म, शारीरिक क्रूरता, अंगभंग, हत्या, एवं हत्या के बाद पुनः यौनदुष्कर्म और शव के साथ माओवादी शैली की क्रूरता ।

सत्ता के संरक्षण में कॉलेज-हॉस्पिटल एवं पुलिस प्रशासन द्वारा घटना के प्रमाणों को नष्ट करने के संगठित प्रयास । अपराध अन्वेषण में पुलिस द्वारा घोर उपेक्षा एवं मिसलीडिंग फ़ाइंडिंग्स द्वारा घटना को उलझाने के निरंतर प्रयास । सच बोलने और न्याय की माँग करने वालों को मारने पीटने और यौनदुष्कर्म की धमकी, प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर्स और हॉस्पिटल भवन पर सत्तापोषित हजारों गुंडों की भीड़ द्वारा हिंसक आक्रमण एवं तोड़फोड़ पुलिस कार्यवाही में लापरवाही का आरोप लगाने वालों पर पुलिस द्वारा बदले की कार्यवाही । भाजपा नेता लाकेट चटर्जी को मृतका की पहचान उजागर करने और दो डॉक्टर्स को ऑटोप्सी की रिपोर्ट मीडिया को बताने के आरोप में कोलकाता पुलिस द्वारा प्रेषित सम्मन से पुलिस को भय का वातावरण निर्मित करने और मैटर को डायलूट करने के प्रयासों में सफलता प्राप्त हुयी है । विश्व के इस सर्वाधिक क्रूर एवं हृदयविदारक यौनदुष्कर्म के हाई प्रोफ़ाइल अपराधियों को सत्ता का निर्लज्ज संरक्षण प्रदान करने वाली ममता सरकार विश्व भर में भारत की छवि को कलंकित करने में सफल हुयी है । क्या कोई कल्पना कर सकता है कि अब आगे और कोई निर्भया कांड नहीं होगा ?   

निर्भया (दो-सौ-उनसठ), अनाथ-अल्पवयस्क लड़की के साथ शासकीय कर्मचारियों द्वारा सामूहिक यौनदुष्कर्म, देहरादून (पोस्ट-कोलकाताकांड), सन् २०२४

देहरादून पुलिस ने पाँच अपराधियों को बंदी बना लिया है, पीड़िता की चिकित्सा की जा रही है ।

भारत के न्यायालयों में रातोरात सब कुछ हो सकता है पर कई दशकों में भी यौनदुष्कर्मियों के विरुद्ध की जाने वाले अन्वेषण, परीक्षण और फिर न्यायालयीन कार्यवाहियाँ एक निर्धारित समय में नहीं हो सकतीं । भारत की संसद में क्या नहीं किया जाता है पर विधायिका ऐसा कोई कानून नहीं बना पाती जिसके भय से अब और कोई निर्भया कांड न हो ।

पोस्ट-इफ़ेक्ट :- अब कोई फ़िल्मकार अजमेर दरगाह कांड की तरह कोलकाता कांड पर भी एक फ़िल्म बनायेगा, धनवर्षा होगी, सब कुछ होगा, सब कुछ... इसी तरह, यौनदुश्कर्म भी इसी तरह ।