बांग्लादेश में बलात् सत्तापलट के बाद हुयी हिंसा में हिन्दुओं के नरसंहार पर मानवाधिकारवादियों को भले ही चिंता न हो पर मातृदेश होने के करण भारत को तो चिंतित होना ही चाहिये । यह भारत का सहज प्राकृतिक अधिकार है और नैतिक कर्तव्य भी । हिन्दुओं के लिए पूरे विश्व में भारत के अतिरिक्त और कोई स्थान ऐसा नहीं है जहाँ वे शरण ले सकें जबकि कहीं भी होने वाले हिन्दूनरसंहार में आज तक वे कभी भी दोषी नहीं पाये गये हैं । खंडित भारत में जहाँ-तहाँ रह रहे भारतवंशी हिन्दुओं का क्या दोष हो सकता है ?
राजसत्ता के
लिए किसी भी सीमा को तोड़ देने वाली कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेनाउद्धव गुट के कई नेता अपने इस्लामप्रेम
में मोहांध होकर हिन्दूविरोधी और हिंसक वक्तव्य पिछले कई वर्षों से देते आ रहे हैं
। इनके लक्ष्य पर हर वह व्यक्ति होता है जो हिन्दुओं के लिए न्याय की बात करता है ।
बांग्लादेश में सत्तापलट के बाद हो रही हिंसा और हिन्दू-नरसंहार से उत्साहित भारत के
कई नेता भारत में भी वैसा ही होने की घोषणा करने लगे हैं । यह दुःखद नहीं, आक्रोश उत्पन्न करने वाला है ।
दिल्ली में
शेख मुज़ीबुर्रहमान की पुस्तक “शिकवा-ए-हिन्द: द पॉलिटिकल
फ़्यूचर ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स” के विमोचन के अवसर पर कांग्रेस
के पूर्व केंद्रीय मंत्री ख़ुर्शीद आलम ने कहा –
“जो
बांग्लादेश में हो रहा है वैसा ही भारत में भी हो सकता है”।
कांग्रेस के
एक और वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा ने तो कई कोस आगे बढ़ते हुये घोषणा कर दी कि –
“श्रीलंका और
बांग्लादेश के बाद अब अगला नम्बर भारत का है । याद रखना मोदी जी! एक दिन यह जनता जो
सड़क पर हिलोरें ले रही है, एक दिन तुम्हारी गलत नीतियों के
कारण तुम्हारे प्रधानमंत्री निवास में घुस जायेगी और कब्जा कर लेगी । जिस तरह शेख हसीना
के घर में जनता घुस गयी उसी तरह अब मोदी के घर में भी घुसने वाली है”।
कोई भी सभ्य
समाज इस तरह के वक्तव्य की न तो प्रशंसा कर सकता है और न सहमत हो सकता है । सज्जन सिंह
वर्मा को भाषायी अभद्रता और राजनीतिक आतंक का दुस्साहस उनके ही नेता के सार्वजनिक वक्तव्यों
से मिलता है जो वर्तमान में विपक्ष के नेता हैं । यह भारत का दुर्भाग्य है कि एक अभद्र
और असंस्कारी व्यक्ति भारत की संसद में विपक्ष का नेता है । फ़रवरी २०२० में दिल्ली
में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुये कांग्रेस के रौल विंची खान घाँढी ने विषवमन
करते हुये अपने भाषण में कहा था–
“यह हिन्दुस्तान
की सच्चाई है, इसको आप सुन लीजिए, और आप देखना, अभी यह नरेंद्र मोद्दी जो भाषण
दे रहा है ना, यह छह महीने बाद, सात-आठ महीने बाद घर से नहीं निकल पायेगा, हिन्दुस्तान के युवा उसको ऐसा ड़डा मारेंगे, इसको समझा देंगे कि हिन्दुस्तान के युवा को रोजगार दिये बिना यह
देश आगे नहीं बढ़ सकता”।
रौल विंची खान
घाँढी का ही एक और वक्तव्य देखिये – “देश भर में पेट्रोल छिड़क दिया गया है, अब तीली लगाने की देर है”।
राजनीतिक दलों
में मतवैषम्यता स्वाभाविक है किंतु सत्ता के लिए सारी सीमायें तोड़ते जाना किसी भी स्थिति
में स्वीकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर हिन्दूहितों के मूल्य पर
। सभी दलों को देश के प्रति निष्ठावान होना चाहिए न कि किसी सम्प्रदाय के प्रति!
विगत कुछ वर्षों
से बारम्बार यह स्पष्ट होता रहा है कि पूरा विपक्ष हिन्दूहितों के विद्वेष से भरा बैठा
है, नरेंद्र मोदी हिन्दूविद्वेष के मूल्य पर मुस्लिमहितों के लिए देश
का पैसा लुटाने के पक्ष में नहीं हैं, हिन्दुओं के नरसंहार के पक्ष में नहीं हैं, भारतीय संस्कृति पर
विदेशी आक्रमण के पक्ष में नहीं हैं, यही कारण है कि विपक्ष नरेंद्र मोदी के विरुद्ध
हिंसक भाषा का प्रयोग करने लगा है । मोदी झूठा और जुमलेबाज है, हाय-हाय मोदी मर जा तू, मोदी हत्यारा है, मोदी तेरी कब्र खुदेगी इंशा अल्ला इंशा अल्ला, मोदी तानाशाह है, मोदी ने हिटलर को भी पीछे छोड़ दिया है, मोदी कायर है, मोदी हमारा सामना नहीं कर सकता, मोदी हमारे सामने डिबेट नहीं कर सकता … इस तरह की भाषा की उपेक्षा नहीं
की जानी चाहिये । यह अस्तरीय है, अभद्र है, मूर्खतापूर्ण है ...यह सोचकर इसकी उपेक्षा भारत के लिए बहुत भारी
पड़ सकती है । बांग्लादेश में जो हुआ, जो हो रहा है क्या वह सब भद्र और बुद्धिमान लोगों के द्वारा किया
जा रहा है? हिंसा तो अभद्र और मूर्ख लोग
ही करते हैं न! इस तरह के अराजक वक्तव्य अराजक
घटनाओं की पूर्वसूचना देते हैं । कोई भी सभ्य समाज व्यक्तिगत राजनैतिक हितों के
लिए इसकी अनुमति नहीं दे सकता । देश के विवेकशील और निष्ठावान लोगों को साहस के साथ
आगे आने की आवश्यकता है अन्यथा हिन्दू सभ्यता इतिहास में भी नहीं बचेगी ।
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