एक चिकित्सा वैज्ञानिक की क्रूरहत्या
कोलकाता
मेडिकल कॉलेज में चेस्ट मेडिसिन विभाग की पीजी अध्येता एवं पर्यावरण विज्ञान की
शोध वैज्ञानिक डॉक्टर मौमिता देवनाथ के साथ रात्रिकालीन सेवा के समय मारपीट की गयी, सामूहिक यौनदुष्कर्म हुआ, क्रूर हत्या की गयी और इसके बाद पुनः उनके मृत शरीर के साथ
यौनदुष्कर्म किया गया । अर्थात् इस जघन्य अपराध में
मारपीट, हत्या और यौनदुष्कर्मों की कई पर्ते
हैं जिसने हिन्दूविरोधी पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित विश्व भर के मानवतावादियों को
हिला कर रख दिया है ।
इतना सब
कुछ होता रहा पर चिकित्सालय में किसी को उनकी चीखें सुनायी नहीं दीं । प्राचार्य डॉक्टर संदीप घोष और पुलिस अधिकारियों द्वारा घटना के
कई घंटे बाद छात्रा के माता-पिता को हत्या के स्थान पर आत्महत्या करने की सूचना दी
गयी । सुबह देखा गया कि डॉक्टर मौमिता का शरीर क्षत-विक्षत था, शरीर पर मल्टीपल इंजूरीज़ थीं, चश्मे का काँच आँखों में घुसा हुआ था जहाँ से रक्तस्राव हो रहा
था, उनकी टाँगें चीर दी गयी थीं और शरीर निर्वस्त्र था । पुलिस और
चिकित्सालय के विद्वान अधिकारियों को प्रथम दृष्ट्या यह घटना आत्महत्या लगी, हत्या और यौनदुष्कर्म नहीं लगा । यह कैसी कर्तव्यपरायण पुलिस है
और ये कैसे विद्वान डॉक्टर्स हैं जिन्हें यह ज्ञान प्राप्त है कि आत्महत्या करने
वाली लड़की अपनी आँखों में काँच घुसेड़ लेती है, निर्वस्त्र होकर अपने शरीर को क्षत-विक्षत कर लेती है, अपनी टाँगें चीर लेती है और सामूहिक दुष्कर्म करवा लेती है ?
कोलकाता पुलिस
के राक्षसअधिकारियो ! नराधम डॉक्टर संदीप घोष ! तुमने झूठ बोलने और धूर्तता की कोई
सीमा ही नहीं रखी ! क्या तुम्हारा अभी तक का जीवन ऐसा ही रहा है, ऐसा ही अपराध और धूर्ततापूर्ण ? मेडिकल जूरिस्प्रूडेंस में अपने छात्रों को यही पढ़ाते रहे हो
तुम ? तुम लोग कलंक पर कलंक हो, तुम्हारे लिए सारी गालियाँ तुच्छ हैं, तुम्हारे पापों के लिए कोई भी दण्ड बहुत कम है ।
कोलकाता पुलिस के अपराधी-अधिकारियो ! पकड़ा गया हत्यारा पोर्न-एडिक्ट है जो तुम्हारे लिए सिविक-वालंटियर के रूप में काम करता है । क्या तुमने कोलकाता में ऐसे ही अपराधियों को सिविक वालंटियर बनाया हुआ है ? तुम्हारा अपराधशास्त्र का ज्ञान कितना है, यह तो पूरी दुनिया ने देख लिया है किंतु घटना का परीक्षण एवं की गयी अन्य कार्यवाहियाँ अपराधी को बचाने वाली हैं, यह भी पूरी दुनिया ने देख लिया है । जघन्य अपराधी की रक्षा करते समय तुमने एक क्षण के लिए भी अपनी बेटी या बहन के बारे में क्यों नहीं सोचा ? तुम लोग समाज के सामने अपना इतना वीभत्स चेहरा लेकर कैसे घूम-फिर लेते हो ?
यौनदुष्कर्म और जघन्य हत्या के
अपराध में संलिप्त सत्ता –
भारत में अपराध
और उसमें सत्ता की न्यूनाधिक संलिप्तता कोई नई बात नहीं है किंतु जिस तरह एक
चिकित्सा वैज्ञानिक की हत्या और उसके बाद प्रमाणों को नष्ट करने में सत्ता की खुलकर
भागीदारी हो रही है वह राज्यसरकार का एक और अराजक-आचरण है और इसीलिए जन-आक्रोशकारक
और एक अपघटित समाज के विनाशक भविष्य की संकेतक है । सत्ता कितनी अराजक और निर्लज्ज हो सकती है, यह पूरी दुनिया ने भारत की इस घटना से देख लिया है । सामान्यतः
अपराधी लोग अपने अपराध को छिपाने के लिए प्रमाणों को नष्ट करने का प्रयास करते रहे
हैं, किंतु अरविंद केजरीवाल के बाद अब ममता बनर्जी भी ऐसी निर्लज्ज सत्ताधीश
बन गयी हैं जो अपने और अपने पाले हुये अराजकतत्वों के कुकर्मों के प्रमाण नष्ट
करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कुछ भी करने के लिए तैयार रहती हैं ।
कल रात
अपराध के प्रमाण नष्ट करने के लिए हॉस्पिटल में सात हजार लोगों की भीड़ कहाँ से आ
गयी, क्यों आ गयी, किसने उन्हें बुलाया, किसने उन्हें दारू पिलायी, किसने उन्हें इस काम के लिए पैसे दिये, किसने उन्हें संरक्षण दिया ? क्या पुलिस, स्थानीय प्रशासन और सत्ता की
भीगीदारी के बिना यह सब सम्भव था ?
डॉक्टर
मौमिता देवनाथ के साथ जो भी हुआ है उसके लिए अपराध शब्द भी बहुत छोटा पड़ गया है ।
मौमिता की हत्या एक डॉक्टर की ही हत्या नहीं है बल्कि पर्यावरण और चिकित्सा में पीएच
डी. शोधवैज्ञानिक और एक बहुमुखी प्रतिभा की हत्या है, एक आत्मस्फूर्त सच्चे समाजसेवी की हत्या है, भारतीय सभ्यता और आदर्शों की हत्या है, चिकित्साव्यवसाय की पवित्रता और परोपकारिता की हत्या है, नैतिकमूल्यों और मानवता की हत्या है, नारी सशक्तिकरण और सम्मान के लिए की जाती रही राजनैतिक घोषणाओं
की हत्या है, सनातन संस्कारों और संवैधानिक
अधिकारों की हत्या है । यह सत्ता के संरक्षण में विकृत होते समाज का वास्तविक
चित्र है जो बड़ा विद्रूप और भयानक है ।
डॉक्टर
मौमिता देवनाथ को एक और निर्भया किसने बनाया ? निर्भयाओं की यह श्रंखला कब समाप्त होगी ? हत्या एवं यौनदुष्कर्म में निकृष्ट-सत्ता की संलिप्तता और बढ़ती
अराजकता के बाद भी राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए अभी कितनी और
निर्भयाओं की प्रतीक्षा है ?
समाज, सत्ता और न्यायालय विचार करें कि क्यों नहीं इस तरह के अपराधों में संलिप्त चिकित्सकों एवं अधिकारियों के चिकित्साव्यवसाय एवं शिक्षण कार्यों पर आजीवन
प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये ?
चिकित्सा जैसे पवित्र व्यावसायिक क्षेत्र में जघन्य अपराधियों की जड़ों का निरंतर सुदृढ़ होते जाना एक चिंता का विषय है । चिकित्सा शिक्षा की श्रेष्ठता एवं प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के विषय पर अभी तक कभी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता क्यों नहीं समझी गयी ? मेडिकल प्रवेश परीक्षा में नैतिकतापात्रता के परीक्षण का अभाव चिंता का विषय है । छात्र के नैतिकमूल्यों का कोई परीक्षण नहीं किया जाता, क्या यह उचित है ? हम समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं ?
एक दृष्टि में एक और निर्भया –
पीड़िता – डॉक्टर मौमिता देवनाथ, निवासी कोलकाता ।
मृतका के बारे में – आयु एकतीस वर्ष, अविवाहित, बहुमुखी प्रतिभा, शोधवैज्ञानिक, चेस्ट मेडिसिन में पीजीटी, पर्यावरण विज्ञान में पीएच.डी. अध्येता, “श्वसनतंत्र के स्वास्थ्य पर वायुप्रदूषण का प्रभाव (Impact of air pollution on respiratory health)” विषय पर शोधरत, स्वास्थ्य देखभाल नीतियाँ (Health care policies) में सक्रियता, मेडिसिन और पर्यावरण शोध में
उत्कृष्टता ।
हत्या का कारण – मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल में चल
रही अवैध गतिविधियों का समर्थन न करना ।
हत्या का दिनांक – ०९ अगस्त २०२४, समय – ब्राह्ममुहूर्त ।
हत्या का स्थान – सेमिनार हॉल, आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल, कोलकाता ।
घटना का सारांश – सेमिनार हॉल में सोते समय
अचानक आक्रमण कर मार-पीट, यौनदुष्कर्म, हत्या एवं हत्या के बाद शव के साथ पुनः यौनदुष्कर्म (नेक्रोफीलिया) और अंत में मृतशरीर का अंग-भंग ।
पकड़ा गया हत्यारा – संजय रॉय, कोलकाता पुलिस में स्वयंसेवी समाजकार्यकर्ता ।
आज दिनांक तक सामने आये अन्य
अपराधियों के नाम – डॉक्टर आर्शीन आलम, डॉक्टर गुलाम आज़म और डॉक्टर शुभदीप महापात्र ।
घटना में संलिप्त अन्य सहयोगी एवं संरक्षक – कॉलेज
के प्राचार्य डॉक्टर संदीप घोष, स्थानीय पुलिस अधिकारी, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कॉलेज के कुछ अराजक छात्र और इंटर्नी डॉक्टर्स ।
जघन्यता – मल्टीपल इंजूरी, मृत्यु से पूर्व एवं पश्चात् सामूहिक यौनदुष्कर्म, चिरी हुयी टाँगें, क्षत-विक्षत शरीर ।
प्रशासनिक संलिप्तता एवं संरक्षण
– यौनदुष्कर्म
एवं हत्या के बाद चिकित्सालय प्रशासन और पुलिस ने घटना की जघन्यता को छिपाते हुये छात्रा
के माता-पिता को घटना की मिथ्या सूचना दी कि उसने आत्महत्या कर ली है । प्राचार्य
संदीप घोष ने अपराधियों को संरक्षण ही नहीं दिया बल्कि घटना के प्रमाण नष्ट करने
के लिए पर्याप्त समय भी दिया । मृतका के माता-पिता को ढाई घंटे तक प्रतीक्षा
करवाने के बाद चिकित्सालय प्रशासन द्वारा देखने की अनुमति दी गयी । पुलिस ने प्रारम्भिक
अन्वेषण की पूरी तरह उपेक्षा की और अपराधियों को प्रमाण मिटाने के भरपूर अवसर उपलब्ध
करवाये । अपराध अन्वेषण में स्थानीय लोक प्रशासन के अधिकारियों का कोई सहयोग नहीं
मिला ।
शासन की संलिप्तता एवं संरक्षण – जघन्य घटना के बाद कई दिन तक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मौन रहीं, इस बीच घटना स्थल पर सात हजार लोगों की अराजक भीड़ ने बांग्लादेश
शैली में चिकित्सालय पर रात में आक्रमण किया और प्रमाणों को नष्ट करने के लिए
तोड़फोड़ की, विरोधप्रदर्शन कर रहे छात्रों
के साथ मारपीट की और विरोध प्रदर्शन कर रही नर्सेज
को भी उनके साथ यौनदुष्कर्म करने की धमकी दी । मुख्यमंत्री ने घटना के प्रमाणों को
नष्ट करने की अपराधियों को खुली छूट दी जो निर्लज्जता ही नहीं आपराधिक संलिप्तता
और संरक्षण भी है । घटना के बाद माँग करने कर भी कॉलेज
एवं हॉस्पिटल के डॉक्टर्स को कोई सुरक्षा व्यवस्था अभी तक उपलब्ध नहीं करवायी गयी है
।
मेडिकल कॉलेज में संचालित अन्य
गतिविधियाँ – आर्थिक भ्रष्टाचार के साथ-साथ देहव्यापार, ड्रग्सव्यापार, पोर्नोग्राफी, ब्लैक-मेलिंग, गुंडागर्दी और अराजक
गतिविधियों का संचालन एवं संरक्षण ।
लोक-प्रतिक्रिया – जनाक्रोश, भारतीय डॉक्टर्स में भय एवं
असुरक्षा की भावना, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित देश-विदेश
में विरोध प्रदर्शन ।
अपराधियों का सबसे बड़ा सुरक्षा
कवच – भारत
में नेक्रोफीलिया (शव के साथ यौनदुष्कर्म) एक मानसिक विकृत तो मानी जाती है किंतु उसके
लिए कोई आपराधिक धारा नहीं है । भारत के नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए इन बड़े-बड़े
विद्वानों को भारत की प्राचीन विधि संहिता की आवश्यकता क्यों नहीं होती ?
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