मंगलवार, 6 अगस्त 2024

बांग्लादेश विद्रोह में हिन्दू नरसंहार

               बांग्लादेश में हो रहे जन-विद्रोह का कारण है ढाका सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्णय जो वहाँ के कट्टरपंथियों को अच्छा नहीं लगा । कट्टरपंथियों के विद्रोह की आग वहाँ की प्रधानमंत्री पर ही नहीं वहाँ के उन हिन्दुओं पर भी बरस रही है जो लाखों वर्षों से अपने पूर्वजों की भूमि पर रहते आये हैं । उनका दोष केवल इतना ही है कि वे हिन्दू हैं और उनके देश पर कट्टरपंथी मुसलमानों का शासन है । हिन्दुओं को अपनी समावेशी धार्मिक मान्यताओं के कारण नरसंहार और मुस्लिम क्रूरता का सामना करना पड़ रहा है । भारत में अंगुली पर गिने जाने वाले कुछ मुस्लिम विचारकों और हिन्दूवादी संगठनों को छोड़कर शेष सभी लोग इस नरसंहार पर मौन हैं । बात-बात में दुनिया भर की समस्याओं में कूदने वाले अमेरिका और ब्रिटेन भी हिन्दू-नरसंहार की क्रूर घटनाओं पर इस समय परमहंस की गति को प्राप्त हो चुके हैं ।   

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आये और बहुमत से चुनी हुयी सरकार की प्रधानमंत्री शेख हसीना को न केवल त्यागपत्र देना पड़ा बल्कि देश छोड़कर भागना भी पड़ा । राष्ट्रपति ने संसद को भंग कर दिया और बांग्लादेश सेना के हाथ चला गया जिसके बाद सेना ने मौन रहकर उत्साहित विप्लवियों को खुली छूट दे दी । विप्लवी न केवल देश भर में हिंसा और उत्पात कर रहे हैं बल्कि अवसर का लाभ उठाते हुये हिन्दू मंदिरों, दुकानों और घरों में लूट-पाट कर उनमें आग भी लगा रहे हैं । आज सुबह तक प्राप्त समाचार के अनुसार कल रात से अब तक आठ हिन्दुओं को जीवित जला कर मार डाला गया । बांग्लादेश में हिन्दुओं के रक्त के प्यासे मुसलमानों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है । यह कट्टरपंथियों द्वारा किया गया हिन्दू नरसंहार है । बांग्लादेश की तरह किसी समय अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान भी भारत के अविभाज्य राज्य हुआ करते थे । विदेशी आक्रमणकारियों के भारत में प्रवेश के साथ ही समय ने करवट ली और करोड़ों हिन्दू अपने ही देश में पराये होते चले गये । बारबार उनका नरसंहार किया जाता रहा, उनका धर्मांतरण किया जाता रहा, उनकी लड़कियों के साथ यौनदुष्कर्म किया जाता रहा और अखण्ड भारत खण्ड-खण्ड होता चला गया । अपने पूर्वजों की भूमि पर लाखों वर्षों से रहते आये करोड़ों हिन्दू विदेशी मुस्लिमों के अत्याचारों, उत्पीड़न और अपमान को भोगने के लिए विवश होते रहे । दुर्भाग्य से भारत के हिन्दू जननायक भी समय-समय पर इस क्रूर त्रासदी को और भी क्रूर एवं स्थायी बनाने के लिए नैतिकता, मानवता और न्याय की सारी सीमाओं को तोड़ते हुये हिन्दू-उन्मूलन के लिए प्रयास करते रहे । यही कारण है कि मोतीहारी वाले मिसिर जी मोहनदास, जवाहरलाल, इंदिरा खान घांढी और मनमोहन सिंह से लेकर उन सभी जननायकों को हिन्दू-विरोधी मानते हैं जो बारबार हिन्दू-उन्मूलन करने वाले समुदाय के प्रति अपनी सद्भावनायें व्यक्त करते नहीं थकते । स्वयं को हिन्दूहितैषी कहने वाले स्वयंभू नेता भी क्रूर समुदाय में अपने पूर्वजों के डीएनए खोज-खोज कर निकालने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते ।

बांग्लादेश ने पूरे विश्व को क्रूरता और भीड़ की अनियंत्रित शक्ति का एक नया उदाहरण दे दिया है । यह भीड़ लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुयी बहुमत वाली सरकार को कभी भी अपदस्थ कर सकती है, कभी भी न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सड़कों पर उतर कर अग्निकांड कर सकती है, किसी भी समुदाय का अकारण ही नरसंहार कर सकती है और देश को प्रगति की ओर ले जाने वाले प्रधानमंत्री को देश छोड़कर भागने के लिए विवश कर सकती है ।

आज जो बांग्लादेश में हो रहा है वही सब कुछ भारत में भी हो सकता है, कभी भी हो सकता है । भारत में संसद पर आक्रमण हो चुका है, लालकिले पर खालिस्तान का ध्वज लहराया जा चुका है, किसान आंदोलन के नाम पर एकत्र भीड़ लालकिले पर आक्रमण करने का प्रयास कर चुकी है, शाहीन बाग में साल-साल भर तक देशविरोधी कृत्य किये जा चुके हैं, बहुमत से चुने हुए प्रधानमंत्री की पंजाब में हत्या की व्यूह रचना की जा चुकी है, मुस्लिम नेताओं द्वारा “हिंदुस्थान में रहना है तो या हुसैन कहना होगा” वाले नारे अब आये दिन लगाये जाने लगे हैं, निर्दोष हिन्दुओं के सर तन से काट कर फेके जाते रहे हैं, सेना और पुलिस पर आक्रमण आज भी हो रहे हैं, यह भीड़ निरंकुश है, अराजक है, संहारक है । दुःखद तो यह है कि खण्डित भारत के बांग्लादेश में हिन्दू संहार हो रहा है और भारत का विपक्ष अभी भी किंतु-परंतु-यद्यपि के पटाखे छोड़ कर आरोप-प्रत्यारोप में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है ।

जो सेक्युलर-हिन्दू व्यंग्य में प्रश्न करते हैं कि सत्तर प्रतिशत हिन्दुओं के होते हुये तीस प्रतिशत मुसलमान भारत को कैसे मुस्लिम देश बना सकते हैं, वे आज बांग्लादेश में मारे जा रहे हिन्दू नरसंहार पर मौन हैं, वे हिन्दुओं के हर संहार पर मौन ही रहते हैं । हमें ऐसे अराजक हिन्दुओं के सामाजिक बहिष्कार पर गम्भीरता से सोचना चाहिये । आज यह सब लिखते समय मेरे मस्तिष्क में तस्लीमा नसरीन के उपन्यास “लज्जा” के कई शब्दचित्र उभर आये हैं । 

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