शनिवार, 10 अगस्त 2024

बांग्लादेश में माल-ए-गनीमत

बांग्लादेश में भीड़ के द्वारा सत्तापरिवर्तन के बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख की नियुक्ति हो चुकी है तथापि पिछले लगभग एक सप्ताह से चल रही साम्प्रदायिक हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही । बांग्लादेश हिन्दू-बुद्धिस्ट-क्रिस्चियन यूनिटी काउंसिल के अनुसार बांग्लादेश के कुल ६४ जिलों में से ४५ जिले इस समय हिन्दू-नरसंहार से पीड़ित हो रहे हैं । बांग्लादेश के एक मानवाधिकार समूह के आँकड़े बताते हैं कि केवल २०१३ से २०२१ के बीच हिन्दुओं पर ३६७९  बार हिंसक आक्रमण किये गये थे 

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस नोबल पुरस्कार विजेता होने के साथ-साथ हिन्दू-विरोधी और भारत-विरोधी भी हैं यही कारण है कि उनमें हिन्दू-नरसंहार रोकने की इच्छा शक्ति का अभी तक अभाव ही देखने को मिला है । नोबल-पुरस्कार विजेता होने के लिए क्या मानवीय और नैतिक मूल्यों की आवश्यकता नहीं होती? जब चारो ओर नरसंहार और यौनदुष्कर्म हो रहे हों तब एक नोबल पुरस्कार विजेता एवं राष्ट्रप्रमुख की कुटिल मुस्कराहट उसके मनुष्य होने पर भी संदेह उत्पन्न करती है । नोआखाली में भीड़ के द्वारा घरों में घुसकर हिन्दू लड़कियों को बलात् उठाया जा रहा है, उनके साथ यौनदुष्कर्म हो रहे हैं, हिन्दू घरों एवं उनकी सम्पत्तियों को लूटने के बाद आग लगायी जा रही है और कई स्थानों पर तो हिन्दुओं को जीवित ही जलाये जाने जाने की घटनायें भी हो रही हैं । मुस्लिम परम्परा के अनुसार इस्लामिक विस्तार के लिए की जाने वाली साम्प्रदायिक हिंसा में लूटमार को क्रूरता या पाप नहीं माना जाता बल्कि सम्पत्तियों के साथ पशुधन और स्त्रियों को भी लूटना माल-ए-गनीमत माना जाता है । साम्प्रदायिक हिंसा में हिन्दू नरसंहार के पीछे इस्लामिक मान्यता के अनुसार अ-मुस्लिमों की हत्या और लूट को महिमामंडित किया जाना एक बहुत बड़ा कारण है । यद्यपि मानवतावादी कुछ मुसलमान इसका समर्थन नहीं करते पर ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है और उन्हें तस्लीमा नसरीन की तरह निर्वासित होना पड़ता है ।    

नोआखाली में यौनदुष्कर्म की घटनाओं ने मुस्लिम-लीग के डायरेक्ट-एक्शन-डे जैसी ऐयिहासिक घटनाओं को दोहराना प्रारम्भ कर दिया है, और इस सबके बीच नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के चेहरे पर स्थायी भाव से चिपक चुकी कुटिल मुस्कराहट धूमिल होने का नाम नहीं ले रही । हिन्दू नरसंहार के विरोध में बीरगंज (नेपाल) के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि भारत में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना रशीदी ने भारत के हिन्दू-संगठनों द्वारा बांग्लादेश की घटनाओं के विरोध को औचित्यहीन बताया है । उसने पूछा कि भारत के लोगों को बांग्लादेश के हिन्दुओं से क्या लेना देना ? यह उनका आंतरिक विषय है ।   

मौसमी एक हिन्दू वकील हैं जो बांग्लादेश के पंचगढ़ जिले में प्रेक्टिस करती हैं । मौसमी की बेटी भारत के सिलीगुड़ी में है, पिता की मेडिकल स्टोर की दुकान लूट ली गयी है और वे स्वयं कुछ दिनों से एक समय चावल-नमक खाकर किसी तरह जीवित हैं । उन्होंने बताया कि बुर्का पहनने के बाद भी हिन्दू नाम होने के कारण वकालत में आने के बाद प्रारम्भ के एक वर्ष तक उन्हें एक भी केस नहीं मिला । वे फोन पर बेटी से बात करती हैं तो माँ-बेटी अधिकांश समय रोती ही रहती हैं । मौसमी मान चुकी हैं कि उन्हें किसी भी दिन मार दिया जाएगा किंतु संतोष यह है कि उनकी बेटी भले ही अनाथ हो जाये पर जीवित तो रहेगी ।

मौसमी और उनकी बेटी की इस त्रासदीपूर्ण मनःस्थिति को समझ पाना हर किसी के लिए सम्भव नहीं, इसके लिए तो कुछ समय के लिए हमें मौसमी और उनकी बेटी बनना पड़ेगा । यह आत्मा को कँपा देने वाली स्थिति है जिसे न तो सेक्युलर्स कभी समझ सकेंगे, न मानवाधिकार आयोग और न कभी संयुक्त राष्ट्र संघ ।

मणिपुर हिंसा के एक पक्ष को लेकर हंगामा करने वाले विपक्षी दल अब चुप हैं क्योंकि यहाँ पीड़ित पक्ष हिन्दू है । मणिपुर में भी जब तक पीड़ित पक्ष हिन्दू रहा तब तक हर कोई चुप रहा और जब मैतेयियों के एक वर्ग ने बदले की कार्यवाही की तो सभी विपक्षी दल रोने लगे । केवल वोट पाने के लिए पीड़ितों के साथ पक्षपात करना सत्तालोभी राजनीति का सर्वाधिक निंदनीय और अमानवीय पक्ष है ।

हमें भारत के हिन्दुओं से तो नहीं पर नेपाल के हिन्दुओं से थोड़ी सी आशा अवश्य है कि वे दुनिया में कम से कम एक देश तो ऐसा बनाने की दिशा में अब तीव्रता से आगे बढ़ेंगे जहाँ हिन्दू अपने स्वाभिमान के साथ जीवित रह सकें । भारत के काने राजनीतिज्ञों ने संवेदना और मानवीयता की भी जाति और धर्म निश्चित कर दिये हैं, वे केवल एक ही आँख से देख पाते हैं, जो वे देखना चाहते हैं, रौल विंची और मौलाना रशीदी की तरह ।     

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