*नहीं रुक रहा हिन्दू-नरसंहार*
आज नौवें दिन भी बांग्लादेश में हिन्दुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के नरसंहार और उत्पीड़न में कोई कमी नहीं हो पा रही है । रूस और इज़्रेल पर प्रतिबंध लगाने के लिए उतावली रहने वाली विश्वसमुदाय की बड़ी शक्तियाँ भी मौन हैं । ऐसा लगता है कि हर कोई हिन्दू-उन्मूलन की प्रतीक्षा कर रहा था ।
बांग्लादेशी हिन्दुओं का अपराध क्या है ? निरंकुश हुयी अराजक भीड़ अपने देश के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के विरुद्ध आंदोलन करती है और पाँच अगस्त को बहुमत से चुनी अपनी ही सरकार को उखाड़ फेकती है । भीड़ नहीं चाहती कि पाकिस्तान से बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में बलिदान हुये सैनिकों के परिजनों को आरक्षण दिया जाय । सरकार भीड़ की माँग पर झुक जाती है, आरक्षण समाप्त कर देती है पर सर्वोच्च न्यायालय जनता और सरकार के निर्णय के विरुद्ध आरक्षण को पुनः लागू किये जाने का निर्णय पारित करता है जिसे बांग्लादेश की भीड़ स्वीकार करने से मना कर देती है ।
बांग्लादेश में असंगत घटनाओं का एक विचित्र गुम्फन है जिसमें भीड़ न्यायालय के विरुद्ध सड़कों पर उतरती है और प्रधानमंत्री को त्यागपत्र देकर देश से निर्वासित हो जाने के लिए विवश कर देती है । बात यहाँ समाप्त हो जानी चाहिये थी पर ऐसा नहीं होता, भीड़ विजय के हर्षोन्माद में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का नरसंहार प्रारम्भ कर देती है, जिनका इस पूरे प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं होता । हिन्दुओं की सम्पत्तियाँ, पशुधन और स्त्रियाँ लूटी जाने लगती हैं, उनके घरों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और मंदिरों में तोड़-फोड़ के बाद उनमें आग लगायी जाने लगती है और पूरा विश्व इस क्रूर-अराजकता और हिन्दू-नरसंहार को मौनधारण किए देखता रहता है । ये घटनायें असंगत अवश्य दिखायी देती हैं पर हैं नहीं । बहुमत से निर्वाचित सरकारों को सत्ताच्युत करने और विकासशील देशों की आर्थिक प्रगति को रोकने के लिए और महाशक्तियों के षड्यंत्र तो पूरे विश्व में रचे ही जा रहे हैं किंतु इस्लामिक कट्टरवादियों के लिए बहाना कुछ भी हो, हर कहीं हिन्दू-नरसंहार ही उनका अंतिम उद्देश्य हुआ करता है ।
इसी हिंसा के बीच चीन एवं पाकिस्तान समर्थित और नोबेल पुरस्कार विजेता एक हिन्दूविरोधी एवं भारतविरोधी प्रवासीपाकिस्तानी मोहम्मद यूनुस ब्रिटेन से बांग्लादेश में अवतरित होता है, और इस शर्त पर अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हो जाता है कि देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार तुरंत बंद कर दिए जाएँ, किंतु यदि ऐसा न हुआ तो वह अपने पद से त्यागपत्र दे देगा । यह एक लुभावनी और आदर्श प्रस्तावना थी जिसका एक भी अंश आज दिनांक तेरह अगस्त तक वास्तविकता के धरातल पर क्रियान्वयित नहीं हो सका । बांग्लादेश में न तो नरसंहार रुका, न यौनहिंसा रुकी, न मोहम्मद यूनुस ने त्यागपत्र देकर पुनः ब्रिटेन के लिए प्रस्थान किया और न वहाँ की सेना या पुलिस ने अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कोई तात्कालिक कार्यवाही की । अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस जब भी संचार माध्यमों के सामने प्रकट हुये उनके चेहरे पर एक बार भी दुःख का भाव दिखायी नहीं दिया बल्कि एक कुटिल मुस्कराहट ही देखी जाती रही । यह अल्पसंख्यकों और विश्व के साथ मोहम्मद यूनुस का दुस्साहस और ढिठाई भरा एक छल था । इस व्यक्ति में यदि थोड़ी सी भी मनुष्यता होती तो शपथग्रहण के साथ ही हिंसा रोकने के लिए कड़ी कार्यवाही करता, जबकि उसमें ऐसी कोई इच्छाशक्ति आज भी नहीं है ।
इस समय बांग्लादेश में सरकार होकर भी कोई सरकार नहीं है, ऐसी सरकार का होना, किसी सरकार के न होने से भी अधिक बुरा है । इस हिन्दू-विरोधी सरकार ने कट्टरपंथियों और हिंसक भीड़ को एक तरह से अभयदान दे दिया है ।
आज बांग्लादेश के गृहमंत्री ने हिन्दू-नरसंहार, लूटमार और क्रूर यौनदुष्कर्मों को रोक सकने में सरकार की विफलता के लिए हिन्दुओं से क्षमायाचना की है किंतु नरसंहार को रोकने की इच्छाशक्ति प्रकट नहीं की, कोई दृढ़ आश्वासन नहीं दिया अर्थात् यह सब अभी होता रहेगा और वे बीच-बीच में प्रकट होकर अपने पापों के लिए क्षमायाचना करते रहेंगे ! अद्भुत राजनीतिक कपट है !
बांग्लादेश में हिन्दू-नरसंहार ही नहीं होता, समय-समय पर बौद्धों एवं ईसाइयों का भी नरसंहार और हिंसापूर्वक धर्मांतरण होता रहता है । वास्तव में उनकी विकृत सोच के अनुसार इस तरह वे अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए “काफ़िरों का इस्लामिक धर्मानुकूल नरसंहार“ किया करते हैं ।
मुस्लिम देश की महिला प्रधानमंत्री किसी दूसरे मुस्लिम देश में शरण लेने की अपेक्षा एक ऐसे देश में तात्कालिक शरण लेने के लिए बाध्य होती हैं जो मुस्लिम देश नहीं है और जहाँ के बहुसंख्यक हिन्दुओं को आये दिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही नहीं बल्कि अपने देश में भी नरसंहार, यौन-उत्पीड़न और धर्मांतरण का सामना करना पड़ता है ।
जिन हिन्दुओं को भारत का नेताप्रतिपक्ष संसद में मिथ्या आरोप लगाकर लांछित करता है कि हिन्दू हत्यारे हैं, केवल हिंसा और घृणा करते हैं, उसी हिन्दूसमुदाय के लोग बांग्लादेश में जातीय हिंसा से पीड़ित होते हैं पर वहाँ की पुलिस या सेना उनकी रक्षा नहीं करती । ऐसी हिंसक और विषम स्थितियों में जब उसी हिन्दूसमुदाय के लोग अपने घरों से बाहर निकलकर “जयराम श्रीराम जय-जय राम” और हरे कृष्णा हरे रामा” गाते हुये निकलते हैं तो क्या वे हिंसा और घृणा का संदेश दे रहे होते हैं ? भारत की संसद का नेताप्रतिपक्ष अपने वक्तव्य पर न तो लज्जित होता है, न कोई खेद व्यक्त करता है, न पीड़ित समुदाय के दुःख से दुःखी होता है और न उनके प्रति संवेदना प्रकट करता है । नेताप्रतिपक्ष की बहन प्रियंका बढेरा को जब यह पता चला कि बांग्लादेश में अब ईसाइयों के साथ भी वही होने लगा है जो हिन्दुओं के साथ इतने दिनों से होता आ रहा है तब कल उन्होंने नरसंहार के विरोध में वक्तव्य दिया । नरसंहार के विरोध में भी पक्षपात!
बांग्लादेश के हिन्दुओं को मुस्लिम कट्टरता का सामना अपने बुद्धिकौशल और साहस के साथ करना ही होगा, पलायन करने या इधर-उधर छिपने-भागने की आवश्यकता नहीं है । कोई भी निर्बलता उन्हें समाप्त कर देगी । बांग्लादेश उनके पूर्वजों का देश है, जननी जन्मभूमि है, उनकी कर्मभूमि है और उनका पूरा अधिकार है, वे किसी की कृपा पर वहाँ नहीं रहते, बांग्लादेश के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है । समावेशी और व्यापक सोच वाले हिन्दू बांग्लादेश के साथ खड़े हैं, वहाँ के हिन्दुओं के ही साथ नहीं बल्कि बौद्धों और ईसाइयों के साथ भी खड़े हैं ।
सावधान! बांग्लादेश की हिंसा को लेकर भारत में की जा रही विरोधाभासी प्रतिक्रियाएँ भारतीय समाज के लिए आसन्न संकट की सूचक हैं ।
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