शनिवार, 7 जनवरी 2012

इंसानी चरित्र पर कोई किताब ..........



 


 सुबह दुहा ....... छोड़ दिया ------
जाओ,  दिन  भर इधर उधर मुंह मारो और डंडे खाओ ...... 
शाम को दुहा,  फिर छोड़ दिया ...... जाओ,  सड़क पर कहीं भी सो जाना............ सुबह फिर आ जाना .
नहीं,  अब और नहीं............
- "सेठ जी ! इंसानी चरित्र पर कोई  किताब दिखाना तो ज़रा ......"
 
 



जब तक सेठ जी किताब खोजें तब तक मैं ज़रा इन्हें ही देख लूं ..........








      गौ माता जी ! यह वाली किताब दे दूं क्या ? 

हाँ ठीक है -------------यह किताब चलेगी -----मगर पॉलीथिन में डाल कर मत दीजिएगा-------------


ये सारे फोटो नोकिया मोबाइल से खीचे हुए हैं ...... वक्त था सुबह का  .... और दूकान है लखनऊ की ......

9 टिप्‍पणियां:

  1. डॉक्टर साहब,
    इंसानी चरित्र का इतना दोहन किया है उसकी वासनाओं ने कि अब उसपर किताब तो क्या शास्त्र लिखे जा सकते हैं!!

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  2. इंसानी चरित्र के किताब अब शायद इंसान नहीं बेजुबान पढेंगे ...

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  3. गज़ब का व्यंग्य उकेरा है !

    चित्रों की भाषा गज़ब, बूझ सके तो बूझ।
    शब्द शब्द की सूझ है, कुछ अबूझ भी बूझ।।

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  4. मनोज भैया ! बिलकुल ठीक कहा आपने. मेरे मना करने के बाद भी दुकानदार लोग पॉलीथिन में डाल कर ही देते हैं. जब मैं कहता हूँ कि निकालिए इसे...तो वे हकबका जाते हैं. परिचित दुकानदार भी ऐसा ही करते हैं ..पर वे तुरंत गलती सुधार भी लेते हैं, यह कहते हुए कि ..क्या करें सर ! आदत ही हो गयी है...
    अर्थात गलतियाँ आदत बन गयी हैं और आदत सदाचार .....

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  5. बहुत बढ़िया....इंसानी चरित्र पर किताब...... कौन करेगा यह दुष्कर कार्य...
    फोटो नोकिया मोबाइल से खिंचे होने पर भी आपके बेहतरीन फोटोग्राफर होने का संदेश दे रहे हैं......
    जय गौ माता...काश समय रहते हम सुधर पायें....

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  6. वह कौशलेन्द्र जी बहुत बढिया सन्देश आभार ..

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.