सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

जीवन का सार


 
 
बहती है धार,
जिसे देती ललकार
एक छोटी पतवार,
यही कर्म योग है।
काट-काट धार,
करे नइया को पार
लिये ढेर-ढेर भार,
यही कर्म योग है।
 ना छोड़े मझधार,
कभी मिलती ना हार
सुनो जीवन का सार,
यही कर्म योग है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. हो चाहे दामन तार
    राह के कंटक करने हैं पार..
    है विकट बड़ा संसार
    पड़ती पग पग मार

    यही कर्म योग है..

    अनु

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    1. एक्सप्रेशन जी ! बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया आपने। बाधायें हैं तभी तो सारी बाधाओं को पार करने का योग कर्मयोग है।

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  2. जिसका कर्म योग में विशवास होता है,
    उसकी न कभी हार होती है।
    चाहे कितनी ही हो विकट परिस्तिति
    नैया उसकी पार होती है।

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  3. बहती है धार,
    जिसे देती ललकार
    एक छोटी पतवार,
    यही कर्म योग है।

    sach kaha chhoti si patwar rupi irada aur hausla ho to jeewan me aane wali har teekhi tez tarrar si dhaar ko kaat sakte hain.....GAGAR ME SAGAR.

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  4. बहती धार को छोटी सी पतवार दिशा दे सकती है ...
    सार्थक सन्देश !

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.