कोरोना
विषाणु के सम्बंध में अभी तक जितनी भी जानकारियाँ विषय विशेषज्ञों द्वारा दुनिया
को दी गयी हैं उनमें परिवर्तनशीलता के साथ-साथ विरोधाभासी तत्वों की बाहुल्यता रही
है । अत्याधुनिक उपकरणों और संसाधनों से युक्त दुनिया भर की प्रयोगशालायें कोरोना
के सम्बंध में अपनी ही खोजी हुयी सूचनाओं का अगले ही दिन खण्डन करती रही हैं ।
विज्ञान ही विज्ञान का खंडन करता रहा है, विज्ञान ही विज्ञान को नकारता
रहा है । कोरोना के सत्य को प्रकाशित करने के स्थान पर विज्ञान ही जनमानस को
दिग्भ्रमित करता रहा है ।
इस लेख
का प्रतिपाद्य विषय कोरोना-विषाणु और डार्क-मैटर के प्रसंग में ज्ञान और विज्ञान
के मूलभूत अंतर को समझना है ।
ज्ञान
व्यापक और सार्वकालिक होता है, विज्ञान संख्यादेशज और
कालापेक्षी होता है । ज्ञान अपौरुषेय है, विज्ञान पौरुषेय है
। ज्ञान तब भी था जब विज्ञान नहीं था । विज्ञान मानव सभ्यता के साथ उदित और अस्त
होता है । ज्ञान पूर्ण है इसलिए उसे विकसित नहीं किया जा सकता जबकि विज्ञान अपूर्ण
होने से विकसित किया जाता है । ज्ञान अपरिवर्तनीय है इसलिये क्षरित नहीं होता ।
विज्ञान परिवर्तनीय है इसलिये क्षरण स्वभाव वाला होता है । ज्ञान भौतिक प्रमाणों
से परे का विषय है जबकि विज्ञान भौतिक प्रमाणों के सहारे ही आगे बढ़ता है ।
ईश्वर
का कोई भौतिक प्रमाण नहीं है इसलिए विज्ञानवादी ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं
करते । किंतु आश्चर्यजनकरूप से डार्क-मैटर और डार्क-एनर्ज़ी का भी अभी तक कोई भौतिक
प्रमाण नहीं पाया गया है तथापि विज्ञानवादी उसकी सत्ता को स्वीकार करते हैं ।
विज्ञानवादियों
के अनुसार ईश्वर एक काल्पनिक विषय है जिसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं होता । डार्क-मैटर
और डार्क-एनर्ज़ी भी काल्पनिक विषय हैं तथापि विज्ञानवादी उसके वास्तविक अस्तित्व
को स्वीकार करते हैं ।
संख्या
का भी स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं होता किंतु दृश्य जगत की गणना के लिए संख्या की
हाइपोथेटिकल मध्यस्थता अनिवार्य है । संख्याओं के सहारे की गयी गणना से ही वैज्ञानिकों
को डार्क-मैटर और डार्क-एनर्ज़ी के अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए प्रमाण उपलब्ध
हो सके हैं यानी सकल ब्रह्माण्ड के 95 भाग की उपस्थिति का प्रमाण अनुमान पर आधारित
है ।
हाइपोथीसिसि
एक मानसिक रचना प्रक्रिया है जिसके अभाव में किसी भी वैज्ञानिक गतिविधि का प्रारम्भ
ही असम्भव है । यह सकल ब्रह्माण्ड भी ब्रह्म की मानस रचना है, एकोऽस्मि
बहुस्यामः, एक हूँ बहुत हो जाऊँ ...अ हाइपोथेटिकल क्रिएशन । फ़्रॉम वन टु मल्टी,
अद्वैत से द्वैत ...यहाँ भी गणीतीय संख्यायें हमें चमत्कृत करती हैं
।
भौतिक
प्रमाणों के सहारे आगे बढ़ने वाले आधुनिक विज्ञानवादियों द्वारा दृष्टव्य से परे
अदृष्टव्य की सत्ता को सैद्धांतिकरूप से स्वीकार करना यानी दृश्य ब्रह्माण्ड (ऑब्ज़रवेबल
मैटर एण्ड एनर्जी) से परे अदृश्य ब्रह्माण्ड (नॉनऑब्ज़रवेबल मैटर एण्ड एनर्ज़ी) की
सत्ता को सत्य मान लेना कितना विरोधाभासी और आश्चर्यजनक है !
हम उस
अदृश्य डार्क-मैटर और डार्क-एनर्ज़ी की बात कर रहे हैं जो सकल ब्रह्माण्ड का 95
प्रतिशत भाग बनाते हैं और जिनकी उपस्थिति की व्याख्या वर्तमान पैरामीटर्स और
सिद्धान्तों से नहीं की जा सकती । इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड्स और डार्क मैटर्स का
एक-दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं होता इसलिए इन्हें भौतिक संसाधनों से डिटेक्ट कर पाना
भी सम्भव नहीं होता ।
एस्ट्रोफ़िज़िकल
ऑब्ज़रवेशंस के द्वारा डिस्क शेप आकाशगंगाओं के इलिप्टिकल विस्तार का प्रमाण मिलता
है । गैलेक्सी के रोटेशन कर्व से अनुमान किया जाता है कि वहाँ आकर्षण-विकर्षण और
अवरोध उत्पन्न करने वाली कोई अदृश्य सत्ता उपस्थित होनी चाहिये, भले
ही वह सत्ता अभी तक डिटेक्टेबल नहीं हो सकी है । अनुमान है कि इस अदृश्य सत्ता के
घटक सब-एटॉमिक पार्टिकल्स हो सकते हैं । कदाचित ये वीकली इंटरएक्टिंग मास्सिव
पार्टिकल्स हैं जो गैलेक्सी रोटेशन कर्व के लिये उत्तरदायी हो सकते हैं । अनुमान
है कि आकाशगंगाओं का यह विस्तार उस अदृश्य मैटर के कारण ही सम्भव है जिसे
डार्क-मैटर की संज्ञा दी गयी है ।
ब्रह्माण्ड
की कुल मास-एनर्ज़ी के घटकों में सम्मिलित हैं – 5% सामान्य मैटर और ऊर्जा; 27% डार्क-मैटर
एवं 68% डार्क-एनर्ज़ी । इस तरह डार्क-मैटर ब्रह्माण्ड के कुल मास का 85% भाग है
जबकि कुल मास-इनर्ज़ी में डार्क-इनर्ज़ी एवं डार्क-मैटर की सहभागिता 95% है ।
विज्ञानवादी
स्वीकार करते हैं कि ब्रह्माण्ड का 95 प्रतिशत भाग अदृश्य है और अनुमान एवं गणितीय
तथा एस्ट्रोफ़िज़िकल ऑब्ज़रवेशंस पर आधारित है । ये तथ्य परिवर्तनशील हैं । ईश्वर भी
अदृष्य और अनुमान प्रमाण पर आधारित एक नियामक सत्ता है ...और यह तथ्य परिवर्तनशील
नहीं है ।
सब-एटॉमिक
पार्टिकल्स से लेकर विराट दृश्य जगत और फिर अदृश्य जगत के घटक डार्क-मैटर एवं
डार्क-एनर्ज़ी के होने एवं संचालित होने की आश्चर्यजनक सुव्यवस्था का कोई
व्यवस्थापक तो होना ही चाहिये न!
ब्रह्माण्ड
की सुव्यवस्था अपरिवर्तनीय है, जो अपरिवर्तनीय है वही शुद्ध
ज्ञान है ।
कोरोना
वायरस से सम्बंधित अभी तक खोजे गये तथ्य परिवर्तनीय हैं, जो
परिवर्तनीय है वही विज्ञान है ।
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