गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

मोतीहारी वाले मिसिर जी की डायरी का एक पन्ना...

राष्ट्रीय परिदृश्य...

बद-तमीज़ हम तब भी थे जब लाखों साल पहले पूर्ण गँवार थे, बद-तमीज़ हम आज भी हैं जब पूर्ण शिक्षित हो गये हैं ।

अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य...

ख़ून बहाने के लिए हम तब भी आमादा रहा करते थे जब असभ्य थे, ख़ून बहाने के लिए हम आज भी आमादा रहते हैं जब सभ्यता के शिखर पर हैं ।

टीवी डिबेट्स...

आदमी आदमी को देखते ही कितना बेशऊर और वैचारिक रूप से हिंसक हो उठता है, यह जानने के लिए आप देख सकते हैं भारतीय टीवी चैनल्स पर सम्भाषा परिषदों में होने वाली डिबेट्स ।

टीवी डिबेट्स का एकमात्र सिद्धांत...

न श्रुणुतव्यं न मंतव्यं वक्तव्यं तु पुनःपुनः ( मैं न तो तुम्हारी बात सुनूँगा, न किसी बात पर विचार करूँगा बल्कि पुनःपुनः बोलता ही रहूँगा)  

कितनी आशा...

टीवी डिबेट्स के लिये आमंत्रित राजनेताओं, राजनीतिक विश्लेषकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विचारकों, और धार्मिक स्कॉलर्स की अनियंत्रित परिषदों में एक-दूसरे को चीख-चीख कर चुनौती देने वाले आक्रामक वृत्ति से परिपूर्ण स्वयम्भू नायकों को देख कर सोचता हूँ कि आम जनता को ऐसे असामाजिक लोगों से अपने समाज और देश के कल्याण की क्यों और कितनी आशा करनी चाहिये ?

युद्ध के नियम...

आज, जब कि हम सभ्यता के उत्कर्ष पर हैं, युद्ध के सारे नियमों को तोड़ते हुये युद्ध करना ही युद्ध का नया नियम बन गया है । भले ही इस नियम को कोई भी देश मान्यता न दे किंतु परम्पराओं को तोड़ कर परिवर्तन करने वाले कभी किसी मान्यता की परवाह नहीं किया करते, वे इसे ही क्रांति कहकर इतराते और आत्ममुग्ध हो जाया करते हैं । बस्तर में माओवादियों द्वारा एम्बुश लगाकर हत्या करने के बाद शवों के ऊपर कूद-कूद कर नाचने और उन्हें जूतों से ठोकर मारने वाली परम्परा की पुनरावृत्ति आर्मीनिया-अज़रबैज़ान युद्ध में देखने को मिल रही है ।

ग़नीमत है...

सूखी नदी के किनारे खड़े सूखे पेड़ की एक डाल पर बैठे हीरामन तोते ने एक ठण्डी साँस ली फिर अपनी तोती से कहा – “ग़नीमत है कि परिंदों में इंसानों जैसी कई जातियाँ नहीं होतीं, कई धर्म नहीं होते वरना हम भी इंसानों जैसे ही महापापी, महाक्रूर और महादुष्ट हो गये होते” ।     

अँधियारा करने वाले उजियारों के ये ठेकेदार...  

-      एक-दो नहीं बल्कि एक दर्ज़न से अधिक महिलाओं का यौनशोषण करने वाले पत्रकार मोहम्मद ज़ावेद अकबर का हृदय परिवर्तन हुआ, देश के ग़रीबों का शोषण रोकने के लिए उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और विदेश मामलों के मंत्री बन गये । बंद पड़ी पुरानी डायरी के पन्ने एक दिन अचानक फड़फड़ाये । डायरी के पन्नों में दफ़न यौनशोषण के ज़िन्न ने अँगड़ाई ली, मी टू- मी टू हुआ, डिफ़ेमेशन ने कोर्ट में गुर्राहट भरी, लेकिन...

...लेकिन एक महल जो बड़ी मुश्किल से बनाया था और अभी ठीक से अपनी रौनक बिखेर भी नहीं पाया था ...खण्डहर हो गया ।  और अब तो खण्डहर का सारा किस्सा ही ग़ुम हो गया है ।

-      टीवी क्राइम शो इण्डियाज़ मोस्ट वांटेडके प्रोड्यूसर, एंकर और ब्यूरोक्रेसी टुडेके सम्पादक सुहैब इलियासी दूसरों के क्राइम उजागर करते-करते एक दिन ख़ुद भी क्राइम कर बैठे और अपनी पत्नी अंजू इलियासी की हत्या कर डाली । 

-      तहलका मैग्ज़ीन के मुख्य सम्पादक, पत्रकार, प्रकाशक और उपन्यासकार तरुण तेजपाल सिंह भ्रष्टाचार के विरुद्ध तहलका मचाते-मचाते यौनउत्पीड़न करके एक दिन ख़ुद भी तहलका बन गये । आज उस तहलके का धूमकेतु अंतरीक्ष में दूर कहीं ओझल हो चुका है ।

-      एक और यक्ष प्रश्न...

गरीब-गुरबा की भलाई और न्याय के लिए लड़ते-लड़ते मूक पशुओं का चारा खा जाने वाले के चेहरे पर शर्म की एक भी रेखा किसी ने देखी है आज तक?  


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