इस्लाम
स्वीकार नहीं किया तो हत्या कर दी । काश! भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश न होकर हिंदू
देश होता तो बलात् धर्मांतरण की घटनायें न होतीं और न हिंदू लड़कियों की आये दिन हत्यायें
होती ।
यह घटना
न तो बांग्लादेश की है और न इस्लामिक देश पाकिस्तान की बल्कि धर्मनिरपेक्ष भारत की
है जहाँ बल्लभगढ़ में साल 2018 में तौसीफ़ ने निकिता का अपहरण कर लिया था । निकिता के
पिता ने पुलिस में रिपोर्ट की थी, पुलिस ने दोनों पक्षों में समझौता
करवा दिया था जो कभी व्यवहार में नहीं आ सका । तौसीफ़ ने निकिता पर धर्मांतरण और शादी
करने का दबाव बनाये रखना जारी रखा । और आज ...जब निकिता परीक्षा देकर कॉलेज से बाहर
से निकली तो पहले से प्रतीक्षारत तौसीफ़ और रेहान ने उसके अपहरण का प्रयास किया । निकिता
ने भागने का प्रयास किया तो तौसीफ़ ने दिन-दहाड़े गोली मार कर उसकी हत्या कर दी ।
अब आगे के
कार्यक्रम में इस घटना को लेकर टीवी पर डिबेट्स के सिलसिले शुरू होंगे जो अगले कई दिन
तक चलेंगे । निकिता की हत्या का राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और डेमोग्राफ़िक विश्लेषण किया जायेगा जिसमें कुछ लोग अगले कई दिन
तक छोटे पर्दे पर चीखते हुये दिखायी देंगे और तथ्यों की अपेक्षा छीछालेदर पर अधिक
ध्यान केंद्रित किया जाता रहेगा । कुछ लोग विरोधप्रदर्शन करेंगे, जुलूस निकाले जायेंगे, न्याय की माँग की जायेगी । दिनदहाड़े
हत्या कर देने वाले आरोपियों के विरोध में कोई सबूत नहीं मिलेंगे जबकि उनके
निरपराध होने के कई सबूत मिल जायेंगे । अदालत में मुकदमा दर्ज़ होगा किंतु सबूत के अभाव
में आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुये दोषमुक्त कर दिया जायेगा । इसके बाद एक और
निकिता का शिकार किया जायेगा, उसके बाद फिर एक और निकिता का
...यह सिलसिला चलता रहेगा ...क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्षता की आड़ में पक्षपात करने
वाला एक देश है जहाँ हिंदुओं को सम्मानपूर्वक जीने के लिये कोई भी स्थान नहीं है ।
इस्लाम
स्वीकार न करने पर भारत में हिंदू लड़कियों की क्रूरतापूर्वक हत्या कर देने का
सिलसिला नया नहीं है । यह सिलसिला थमेगा भी नहीं । भारत के सनातनधर्मियों को अब यह
स्वीकार कर लेना चाहिये कि भारतीय समाज और भारतीय राजनीति की स्थितियाँ सनातन धर्म
और सनातनधर्म में संस्कारित नागरिकों, विशेषकर लड़कियों की रक्षा के
लिये उपयुक्त नहीं हैं । यह देश विदेशी शासनकाल में भी हिंदू लड़कियों के लिये उपयुक्त
नहीं था और आज स्वाधीन होने के बाद भी नहीं है । सनातनधर्मी लड़कियों को भारतीय
उपमहाद्वीप के किसी भी देश में सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं है । भारत एक इस्लामिक
देश बनने की ओर बढ़ रहा है और इसे रोकने के लिये हमारे पास दृढ़ इच्छाशक्ति का पूर्ण
अभाव है ।
बहस चल
पड़ी है - भारत में निकिताओं की क्रूर हत्याओं का कारण हमारी सहिष्णुता है या
भीरुता?
निकिता
की हत्या पर दो लोगों की त्वरित टिप्पणियाँ उल्लेखनीय हैं –
पहली
टिप्पणी गोरखपुर वाले ओझा जी की है – “निश्चित ही भीरुता । स्वाभिमानशून्य समाज की
रक्षा ईश्वर भी नहीं कर सकेंगे, भारत को भारत के रूप में
समाप्त हो जाना चाहिये” ।
अगली
टिप्पणी है मोतीहारी वाले मिसिर जी की – “अपने अस्तित्व पर आये गम्भीर संकट का
शौर्यपूर्वक सामना करने के स्थान पर चुप बने रहने की बाध्यता को सहिष्णुता नहीं
भीरुता कहते हैं” ।
तो क्या
अब हमें भयभीत होकर अपनी बच्चियों को शिक्षण संस्थानों में भेजना फिर से बंद करना
होगा? तो क्या अब हमें अपनी बच्चियों की रक्षा के लिये फिर से बालविवाह का आसरा
लेना होगा ? तो क्या अब हमें घूँघट प्रथा को फिर से ओढ़ना
होगा? तो क्या अब हमें जौहर प्रथा अपनाने के लिए फिर से बाध्य
होना होगा ? तो क्या अब हमें दबे-कुचले समुदाय के रूप में
जीने के लिये फिर से बाध्य होना पड़ेगा ?
राजा ने
हमारी ओर से आँखें मूँद ली हैं और न्याय की आँखों में पट्टी बँधी है जिसके कारण हम
इन दोनों की दृष्टि से ओझल हैं ।
अशिक्षा, बालविवाह,
घूँघट और जौहर से पहले का भारत ऐसा नहीं था । ईसापूर्व तीसरी
शताब्दी तक भारत में नारी शिक्षा के जैसे उच्च मानक हुआ करते थे वैसे मानक पूरे
विश्व में और कहीं नहीं थे । वेद पारंगत विदुषी ब्रह्मवादिनियों द्वारा रची गयीं
ऋचायें प्राचीन भारत में नारियों की स्थिति को गौरवान्वित करती हैं । गार्गी,
मैत्रेयी, लोपामुद्रा, और
विश्ववारा का भारत अब कहीं नहीं है । उस तरह के भारत को फिर से निर्मित करने का
संकल्प भी अब कहीं नहीं है । स्वाधीनता के बाद हमने कैसा भारत गढ़ा है ?
सनातनधर्मी
नारियों के लिये आधुनिक भारत के निर्बल समाज में कहीं कोई सुरक्षित स्थान दिखायी नहीं
देता । क्या उन्हें अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी ...या फिर निकिता और निर्भया की
तरह नारकीय यंत्रणा भोगते हुये कभी भी, कहीं भी मर जाने के लिये तैयार
रहना होगा ?
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