रविवार, 18 अक्तूबर 2020

एक पिटीशन, नो रिलीजन...

मोतीहारी वाले मिसिर जी इंसानी दुनिया के सभी लौकिक धर्मों को समाप्त कर दिये जाने के पक्ष में हैं । यह पहली बार नहीं है जब इस विषय पर उनसे हमारी गम्भीर चर्चा हुयी है । गोरखपुर वाले ओझा जी भी सदा की तरह उन्हीं के साथ खड़े दिखायी देते हैं । बल्कि आज तो उन्होंने एक कदम और आगे बढ़कर यहाँ तक कह दिया कि यदि आप शांति, स्वास्थ्य और सुख चाहते हैं तो आपको दुनिया के समस्त अत्याधुनिक संसाधनों से विरत होना ही होगा । मैंने जानना चाहा कि क्या वे विज्ञान और अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों को समाप्त कर दिये जाने की ओर संकेत कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा – “हाँ! मैं चाहता हूँ कि मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता समाप्त हो और वह आत्मनिर्भर एवं पुरुषार्थी बने । हम एक नकारात्मक और पंगु सभ्यता के विकास की होड़ में लगे हुये हैं” ।

धर्म के वर्चस्व को लेकर दुनिया भर में पहले भी विनाशकारी युद्ध होते रहे हैं । आज हम पुनः आर्मीनिया और अज़रबैजान के रूप में क्रिश्चियनिज़्म और इस्लामिज़्म को आमने-सामने एक-दूसरे को तबाह करते हुये देख रहे हैं । धर्म की सुप्रीमेसी को लेकर होने वाले विवादों और युद्धों में धार्मिक ध्रुवीकरण होना इस बात का प्रतीक है कि हम किसी भी “इज़्म” को लेकर कितने दुराग्रही हैं । इस्लामिज़्म के पक्ष मे टर्की, पाकिस्तान और ईरान आदि देश अज़रबैजान के साथ खड़े हो चुके हैं । नागोर्नो-क़ाराबाख़ में कुछ मोर्चों पर आर्मीनियाई सेना को पीछे हटना पड़ा है । युद्ध के नियमों के विरुद्ध दोनों देश एक-दूसरे की बस्तियों पर घातक आक्रमण कर रहे हैं जिससे बड़ी संख्या में दोनों ओर के निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं । अज़रबैजान के सैनिक तो आर्मीनियाई सैनिकों के कटे हुये सिर लेकर वीडियो भी बना रहे हैं । यह धार्मिक उन्माद की क्रूर पराकाष्ठा है ।

मोतीहारी वाले मिसिर जी पहले भी कह चुके हैं कि – “कोई भी लौकिक धर्म कितना ही अच्छा क्यों न हो अपने जन्म के साथ ही विकृति की ओर चल पड़ता है । यह उसी तरह है जैसे कोई जीव जन्म लेने के बाद निरंतर बुढ़ापे और अनिवार्य मृत्यु की दिशा में यात्रा प्रारम्भ कर दिया करता है । भारत में भी धार्मिक उन्माद और धार्मिक वर्चस्व की होड़ एक विनाशकारी पथ पर निरंतर आगे की ओर बढ़ती जा रही है । इसे रोकना होगा अन्यथा महाविनाश को कोई भी रोक नहीं सकेगा ...और इसे रोकने का एक ही मार्ग है – सभी लौकिक धर्मों का अंत” ।

हमने मिसिर जी से पूछा कि क्या वे चीन का अनुसरण करने की बात कह रहे हैं तो उन्होंने कहा- “नहीं, हम स्केण्डेनेवियन कंट्रीज़ के नागरिकों की लौकिक धर्मों पर निर्भरता को अस्वीकार करने वाली सोच की बात कर रहे हैं” ।

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