आशंका की जा रही है कि यूक्रेन और रूस से बीच कभी भी भीषण युद्ध प्रारम्भ हो सकता है ।
एशिया से योरोप तक
विस्तृत भूभाग वाले पूर्व सोवियत संघ को 1991 से पूर्व दुनिया का सबसे बड़ा
यूरेनियम उत्पादक देश माना जाता था । विभाजन के बाद प्रमुख यूरेनियम उत्पादक देश
यूक्रेन, कज़ाख़िस्तान
और उज़्बेकिस्तान आदि स्वतंत्र हो गये और सोवियत रूस यूरेनियम के मामले में
अपेक्षाकृत ग़रीब हो गया । तो क्या यूक्रेन के यूरेनियम स्रोतों के लिये रूस इतना
आक्रामक हो उठा है!
सोवियत संघ से पृथक होते
समय रूसी बहुल जनसंख्या वाला क्षेत्र क्रीमिया यूक्रेन का एक हिस्सा बना ।
क्रीमिया एक महत्वपूर्ण पेनिनसुला है जिसकी आवश्यकता यूक्रेन और रूस दोनों देशों
को है । रूसी बहुल क्षेत्र होने के कारण क्रीमिया के नागरिकों के हितों की सुरक्षा
के लिये सोवियत रूस की सहज भावनाओं का अनुमान किया जा सकता है ।
क्रीमिया एक ऐसा क्षेत्र
रहा है जहाँ समय-समय पर ग्रीक, तुर्क, ज़र्मन, पर्सियन्स और हूण आदि भी शासन करते रहे हैं । इसीलिये वहाँ के नागरिकों
में 65.3% रसियन और 15.1% यूक्रेनियन के साथ-साथ 10.8
% क्रीमियन तातार, 0.9% बेलारूसियन,
0.5% आर्मीनियन एवं 7.4% अन्य
लोग हैं जिनमें ग्रीक, अश्केनाज़ी ज्यूज़, ज़र्मन्स और पर्सियन्स भी सम्मिलित हैं ।
2014 में रूस ने क्रीमिया
को फिर से रूस का हिस्सा बना लिया । यद्यपि क्रीमिया का अराबात स्पित अभी भी
यूक्रेन के ही अधिकार में है । यूँ समझिये, सिंधियों की दुर्दशा के कारण भारत एक बार
फिर से कराची को अपना हिस्सा बना ले तो वृहत्तर भारत के खण्डित हुये दोनों हिस्सों
के बीच युद्ध की आशंकायें तो होंगी ही ।
क्रीमिया के एक ओर है
गर्म पानी वाला अज़ोव सागर और दूसरी ओर है काला सागर । सामरिक और आर्थिक दृष्टि से
भी क्रीमिया का महत्व रूस और यूक्रेन दोनों के लिये है । कराची के अधिकांश सिंधी
तो मुसलमान बन गये किंतु क्रीमिया के रूसी अभी तक रूसी ही हैं और रूस का समर्थन
करते हैं ।
युद्ध सदा ही विनाशक होते हैं, यूँ दिमाग की गर्मी को शांत करने का जब और कोई उपाय न बचे तो युद्ध को टाला जा सकना सम्भव नहीं होता । बिना किसी विवाद के क्रीमिया विवाद सुलझ जाने की कामना के साथ हम ईश्वर से प्रार्थना हैं ।
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