एक दिन सुना कि क्वाण्टम फ़िज़िक्स और वैशेषिक दर्शन के रसिक मिसिर जी अब मोतीहारी में नहीं रहते बल्कि अपनी भेड़ों के साथ बुग्यालों में बंजारा बनकर घूमते रहते हैं । पता चला कि हिमालय जाकर उन्हें देवदार से प्रेम हो गया । भेड़ें चराते हुये जहाँ कहीं देवदार के पेड़ मिल जाते तो उनसे बतियाये बिना मिसिर जी का आगे बढ़ना सम्भव नहीं होता । पान खाना उन्होंने उसी दिन छोड़ दिया था जिस दिन वे मोतीहारी छोड़कर बंजारा बन गये थे । अब वे थुनेर की नमकीन चाय पीते हैं जिसमें उन्हीं की भेंड़ों के दूध का मक्खन होता है ।
बाँसुरी
को सुर में बजाने की उनकी बड़ी इच्छा हुआ करती थी किंतु दुर्भाग्य से वे कभी ऐसा
नहीं कर सके, क्योंकि उन्हें बाँसुरी बजाना आता ही नहीं था । मिसिर जी अपनी युवावस्था
में राजा विक्रमादित्य बनने का स्वप्न देखते रहे किंतु दुर्भाग्य से उनका स्वप्न
कभी सच नहीं हो सका, क्योंकि उन्हें कोई राजनीतिक गुरु मिल
ही नहीं सका ।
अधिकांश
लोगों को लगता है कि मिसिर जी नास्तिक व्यक्ति हैं, किंतु बहुत थोड़े से
लोगों का मानना है कि वे आस्तिक हैं । उनके बारे में लोगों के विरोधाभासी
दृष्टिकोण मिसिर जी के व्यक्तित्व को जटिल और विवादास्पद बनाते हैं, किंतु एक बात तो तय है कि मिसिर जी किसी एक वैचारिक खूँटे से बँधकर रहने
वाले लोगों में से नहीं हैं ।
मिसिर
जी बताया करते थे – “किसी वैचारिक खूँटे से बँध कर रहने का अर्थ है चिंतन और
परिष्करण जैसी अनिवार्य और सतत चलने वाली प्रक्रियाओं पर पूर्णविराम लगाकर सीमित
हो जाना । वैदिक वर्णाश्रम धर्म किसी खूँटे से बँधा हुआ नहीं है । यह तो अपने
आसपास के बुग्यालों में विचरने वाले स्वतंत्र मृगों की तरह है । प्राणिमात्र के
लिये कल्याणकारी विचारों को लेकर जिनका आचरण समावेशी होता है वे ही आर्य होते हैं इसीलिये
वे तत्कालीन विभिन्न विचारों और मतों को अपने में समाहित कर सके, द्वैत
को भी अद्वैत को भी”।
यह सच
है कि मोतीहारी वाले मिसिर जी वैदिक वर्णाश्रम धर्म के प्रखर समर्थक हैं, किंतु
यदि आप सोचते हैं कि वे भाजपाई होंगे तो आपका अनुमान सही नहीं है । यह सच है कि
मिसिर जी “मेरा ईश्वर, तेरा ईश्वर” को स्वार्थी और
महत्वाकांक्षी लोगों की रचना मानते हैं और लोकतंत्र को अलोकतांत्रिक लोगों की
व्यूह रचना किंतु यदि आप सोचते हैं कि वे साम्यवादी कामरेड हैं तो ऐसा बिल्कुल भी
नहीं है । वे कांग्रेसी, समाजवादी, आपी,
लोकदली, या अन्य ढेरों दलों में से भी किसी के
समर्थक नहीं हैं । मिसिर जी भारत के किसी भी राजनीतिक दल के चरित्र के अनुरूप
स्वयं को ढाल सकने में पूरी तरह असफल रहे हैं । सच बात तो यह है कि मिसिर जी का
कोई रंग ही नहीं है, इसलिये कोई भी व्यक्ति उन्हें अपने
कैनवास में कभी उतार ही नहीं सका, और इसीलिये वे रंगों की
दुनिया के लिये सदा ही एक कुपात्र व्यक्ति बने रहे । भला रंगीन संसार में किसी रंगहीन
की क्या आवश्यकता!
😃😃😃👌👌 बहुत बढ़िया प्रस्तुति डॉक्टर साहब। मिसिर जी के बहाने गहरा व्यंग 👌👌 फक्कड़ लोगों के अपना जीवन-दर्शनऔर सिद्धांत होते हैं। उनके सॉलिड आदर्शो का थोथी राजनीति में क्या काम??🙏🙏😂
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! रेणु जी!
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