स्वतंत्रता प्राप्ति और भारत विभाजन के बाद कुछ हिन्दुओं का विश्वास था कि अब हिन्दू भी रोज-रोज की खट-खट से मुक्त होकर स्वाभिमान के साथ जी सकेंगे । हिन्दुओं का यह विश्वास बारम्बार खण्डित होता रहा । पहले हिंसावादियों ने खुलकर हिंसा की फिर तत्काल ही अ-हिंसावादियों ने पूरे महाराष्ट्र में हिंसा की । पचहत्तर साल बीत गये, समय के साथ-साथ हिन्दुओं का विश्वास निराशा की ऊँची प्राचीरों से घिरता चला गया ।
नेपथ्य
में बहुत से लोग हैं जो या तो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के संकल्प पर आगे
बढ़ते जा रहे लोगों का हर तरह से सहयोग कर रहे हैं या फिर मौन रहकर उनकी गतिविधियों
का समर्थन कर रहे हैं । कुछ रावण भी हैं जो साधु के वेश में हर पल सीता का अपहरण
कर रहे हैं ।
एक दिन
पूर्व प्रधानमंत्री परमपूज्य मनमोहन सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि भारत के संसाधनों
पर पहला अधिकार मुसलमानों का है किंतु कभी कुछ न समझने के लिये दृढ़प्रतिज्ञ हिन्दू
ने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया । परमपूज्य प्रातःस्मरणीय मुलायम सिंह जी ने
कारसेवकों को गोलियों से भुनवा डाला, हिन्दू ने इसे अपनी नियति
मानकर स्वीकार कर लिया । सरकारी और सार्वजनिक सम्पत्तियों के साथ-साथ मंदिरों पर
पहले चुपके से और अब खुले आम इस्लामिक कब्जे होते जा रहे हैं, हिन्दू ने इसे भी अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया है । तमिलनाडु की सरकार
सैकड़ों साल पुराने मंदिरों को ढहा रही है । मंदिरों पर आये दिन होने वाले निर्विरोध
इस्लामिक कब्ज़ों के बाद एक दिन यह देश इस्लामिक देश बन जायेगा, इसे भी भारत के हिन्दू अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेंगे । ऐसा तब होता है
जब सरकारें अपने देश के नागरिकों के साथ पक्षपात करती हैं और कोई एक वर्ग स्वयं को
पूरी तरह असुरक्षित और अनाथ अनुभव करने लगता है । स्वतंत्रता के इन पचहत्तर वर्षों
में हिन्दुओं को यह लगातार अनुभव कराया जाता रहा है कि वे भारत के दूसरी श्रेणी के
नागरिक हैं । कोई भी सरकार, अभी तक भारत के हिन्दुओं को स्वाभिमान
के साथ जीने का अवसर उपलब्ध करवा सकने की सच्ची इच्छा शक्ति का प्रदर्शन कर पाने में
असफल रही है । वसीम रिज़वी जेल में हैं और हिन्दुओं को भारत से काट कर फेक देने की सैकड़ों
घोषणायें करने वाले मुल्ले-मौलवी-नेता अपने अभियान को आगे बढ़ाते जा रहे हैं । दीक्षा
जोशी, रविश कुमार, कन्हैया, महबूबा, ओवेसी, कपिल सिब्बल,
अखिलेश ....आदि को यह सब बिल्कुल भी पक्षपात नहीं लगता ।
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