ज्योतिषीय गणनायें तृतीय विश्वयुद्ध का संकेत दे रही हैं । यदि यूक्रेन और रूस के बीच बात नहीं बनी तो अप्रैल 2022 तक का समय पूरे विश्व के लिये हिंसा और अशांति से भरा रह सकता है ।
प्रथम और
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका और सोवियत संघ जैसे मित्र रहे देश आज आपस में एक-दूसरे
के शत्रु हो गये हैं और एक-दूसरे के शत्रु रहे ज़र्मनी और अमेरिका जैसे देश आपस में
मित्र हो गये हैं । दुनिया इसी तरह चलती है । शत्रुता और मित्रता के सिद्धांत अपने-अपने
हितों के टकराव या उनकी रक्षा को लेकर होने वाली गतिविधियों पर विकसित होते हैं । यहाँ
कोई किसी का न तो स्थायी मित्र होता है और न स्थायी शत्रु । याद कीजिये, प्रथम
और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय एक ओर थे धुरी राष्ट्र- ज़र्मनी, इटली, जापान, और ऑस्ट्रिया आदि,
जबकि दूसरी ओर थे मित्र राष्ट्र – ब्रिटेन,
फ़्रांस, सोवियत संघ और अमेरिका आदि ।
ज़र्मनी, इटली,
जापान और ऑस्ट्रिया तो पहले भी सोवियत संघ के शत्रु रह चुके हैं
किंतु ब्रिटेन, फ़्रांस, और अमेरिका ने
तो सोवियत संघ के साथ मिलकर द्वितीय विश्वयुद्ध लड़ा था । आज स्थिति बदल गयी है,
अब सारे पश्चिमी देश अपनी आपसी शत्रुता भुलाकर रूस के विरुद्ध उठकर
खड़े हो गये हैं ।
रूस को
यह नहीं भूलना चाहिये कि जिस पश्चिमी राष्ट्रवाद को दुनिया भर के वामपंथी लोग
कोसते नहीं थकते उसके जन्म के कारण थे वे अर्थिक दण्ड और प्रतिबंध जो 1943 में पराजित
हुये ज़र्मनी पर वार्सेल्स की संधि में थोपे गये थे । यह भी याद कीजिये कि इसी संधि
में ज़र्मनी पर एक लाख टन सोने के मूल्य के बराबर आर्थिक दण्ड भी लगाया गया था जिसे
चुकाने में ज़र्मनी को 91 साल लग गये । पश्चिम का राष्ट्रवाद अस्तित्व संरक्षण के
लिये की गयी एक प्रतिक्रियात्मक वैचारिक क्रांति थी जिसके बाद ही खण्डित कर दिये
गये ज़र्मनी का पुनः एकीकरण हो सका ।
पिछले
दो दिनों से यूक्रेन में भी वैसा ही राष्ट्रवाद देखा जा रहा है । मैं इसे
प्रतिक्रियात्मक राष्ट्रवाद कहता हूँ और इसे किसी भी देश के अस्तित्व के लिये
आवश्यक मानता हूँ । कोई नहीं जानता कि रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम क्या होगा, किंतु
यदि परिणाम रूस के पक्ष में गये और रूस ने वार्सेल्स संधि जैसी शर्तें यूक्रेन पर
थोपने का प्रयास किया तो क्या यूक्रेन में प्रतिक्रियात्मक राष्ट्रवाद के उदय को
रोका जा सकेगा!
स्मरण कीजिये, सन्
1939 से प्रारम्भ होकर सन् 1945 तक, विश्व के सबसे लम्बे समय
तक चलने वाले विश्वयुद्ध में लगभग 8.5 करोड़ लोग मारे गये जबकि लाखों लोग अपंग हो
गये थे । इस युद्ध से दुनिया को मिली थी भुखमरी, गरीबी,
महँगाई और अभाव । किसी भी युद्ध में सम्पत्ति नागरिकों और
उद्योगपतियों की नष्ट होती है, मृत्यु सैनिकों और सामान्य नागरिकों
की होती है जबकि हितलाभ सत्ताधीशों के हिस्से में जाते हैं ।
अमेरिका
द्वारा जापान के दो बड़े शहरों पर परमाणुबम गिराने के बाद सितम्बर 1945 में जापान को
अमेरिका के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा और इस तरह जापान सहित दुनिया के कई देशों की
भारी क्षति के बाद समाप्त हुआ था द्वितीय विश्वयुद्ध । जो संधि और वार्ता आप युद्ध
की समाप्ति के बाद करना चाहते हैं उसे पहले ही क्यों नहीं कर लेते!
जहाँ तक भारत की बात है तो भारत के पास दो-दो विश्वयुद्ध लड़ने और विजयी होने का गौरवशाली अनुभव रहा है । भारत ने एक पराधीन देश के रूप में ब्रिटेन के लिये प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में न केवल भाग लिया बल्कि ब्रिटेन के पक्ष में जीत भी प्राप्त की थी ।
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