शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

हिज़ाब के समर्थन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

         हिज़ाब के समर्थन में मुसलमानों की अंतरराष्ट्रीय बिरादरी एक सुर में आलाप भरने लगी है, उसी सुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी गीत गाने लगा है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कर्नाटक शाखा के अनिल सिंह ने पर्दाप्रथा को भारतीय सभ्यता का एक हिस्सा मानते हुये हिज़ाब का समर्थन किया है । उन्होंने यह भी फ़रमाया कि भगवा गमछा वाले लड़कों द्वारा देश की बेटी को आतंकित करने का व्यवहार अनुचित है ।

वहीं अलीगढ़ की सपा नेता रूबीना ख़ान ने भी घूँघट और हिज़ाब को भारतीय संस्कृति और परम्पराओं का अटूट हिस्सा बताते हुये लड़कियों के आत्मसम्मान पर डाले गये हाथों को काट डालने की घोषणा कर दी है ।

हिज़ाब मामला अभी हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय में है, किंतु ठेकेदारों के फैसले अभी से आने प्रारम्भ हो चुके हैं । ज़ाहिर है, कि न्यायालयों से इन ठेकेदारों को अपने मनचाहे निर्णय की अपेक्षा है, मनचाहा निर्णय न होने की स्थिति में न्यायालयों को सुपरसीड करते हुये ठेकेदारों का निर्णय ही अंतिम माना जायेगा ।

हम भारत के लोग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जानना चाहते हैं कि आतंकपूर्ण व्यवहार की परिभाषा क्या है और जय श्रीराम का नारा लगाने से आतंक कैसे उत्पन्न होता है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पर्दा प्रथा को भारतीय संस्कृति का हिस्सा स्वीकार किया है, कृपया बतायें कि क्या सीता स्वयम्वर में सीता जी ने घूँघट डालकर विवाह रचाया था? भारत के लोग यह भी जानना चाहते हैं कि रूपेश पांडे की हत्या आतंकवाद की श्रेणी का हिस्सा है अथवा नहीं?

आज भारत, पाकिस्तान, अमेरिका और यूके में कर्नाटक की हिज़ाबी घटना को लेकर धार्मिक राजनीति गर्म हो गयी है, इन स्थितियों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का “भगवा गमछा” और “जय श्रीराम” के नारे पर दिया गया यह वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यह वक्तव्य, कि जयश्रीराम का नारा लगाने से आतंक उत्पन्न होता है और हिज़ाब वाली मुस्कान ख़ान को भगवा गमछा वाले लड़कों ने आतंकित करने का प्रयास किया है, हिन्दूविरोधी नेताओं के उस आरोप को स्वीकार करता है जो हिंदुत्व और केसरिया रंग को आतंक का प्रतीक और भारत के लिये ख़तरा मानते रहे हैं । इस दृष्टि से बंगाल में जय श्रीराम का नारा लगाने वालों पर दमनात्मक कार्यवाही और कारसेवकों पर मुलायम सरकार द्वारा बरसाई गयी गोलियों की कार्यवाही को सर्वथा न्यायोचित ठहराया जा सकता है ।

ईशनिंदा के आरोप में काफिरों की हत्या कर दी जाती है, पालघर में साधुओं की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है, हिन्दू मंदिरों की छतों पर मजारें बना दी जाती हैं, सार्वजनिक पार्कों में दरगाहें बना दी जाती हैं ...इन सब लोकतांत्रिक और भारतीय संस्कृति को पोषित करने वाली घटनाओं पर कोई संतोषजनक और सशक्त कदम न उठाकर राष्ट्रीस्वयं सेवक संघ ने अपनी नीति-रीति से सभी को अवगत करा दिया है जिसके लिये यह देश उनका बहुत ऋणी है ।   

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दुओं को प्रकारांतर से यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत में हिन्दू हितों का कोई भी समर्थक और रक्षक नहीं है, इसलिये हिन्दुओं को अपनी संस्कृति, सभ्यता और अस्तित्व बचाने के लिये किसी संस्था पर आश्रित होने की अपेक्षा स्वयं ही उठकर खड़े होना होगा अन्यथा ईरान बनने के लिये तैयार रहना होगा ।

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