पिछले साल आये कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में जो अँधेरा फैलाया उसी अँधेरे में से कुछ प्रकाश की किरणें भी निकलकर हमारे सामने फैल गयीं जिसने हमारे जीवन में बहुत कुछ बदल कर रख दिया है गोया ब्रह्माण्ड के डार्क मैटर से एनर्ज़ी प्रस्फुटित हो गयी हो । कोविडजन्य नयी जीवनशैली पर चर्चा करने से पहले मैं उन चंद शब्दों या मुहावरों की बात करना चाहूँगा जिन्होंने कोरोना काल में नयी परिभाषायें ओढ़ ली हैं या जनसामान्य में तेजी से प्रचलित हो गये हैं ।
कोविड-18
की वैक्सीन बनी तो ग़रीब देशों को लगा कि अमीर देश वैक्सीन बनाने वाली फ़ार्मेसीज़ से
ऊँचे दामों में वैक्सीन ख़रीद लेंगे जिससे वैक्सीन का टोटा हो जायेगा और गरीब देश
मुँह ताकते रह जायेंगे । इसके लिये एक नया मुहावरा प्रचलित हुआ – “Vaccine
nationalism”. पाकिस्तान जैसे ग़रीब देशों को वैक्सीन
नेशनलिज़्म के भय ने बहुत परेशान किया है, वहीं वामपंथियों के
हाथ बैठे-ठाले एक नया मुहावरा लग गया । वे ख़ुश हैं कि अमीरों को कोसने के लिये
उन्हें एक मॉडर्न मुहावरा मिल गया है । दूसरी परिभाषा नयी तो नहीं है किंतु टीवी
समाचारों के कारण तेजी से प्रचलित हुयी है । यह है – “Flattening the
curve”, किसी संक्रामक बीमारी के फैलने की दर को संक्रमित होने वाले
लोगों की संख्या और समय के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है । कम समय में अधिक लोगों
के संक्रमित होने को कागज़ पर दर्शाने से एक शार्प माउण्ट बनता है जो अच्छा नहीं
माना जाता जबकि अधिक समय में कम लोगों के संक्रमित होने की घटना को कागज़ पर
दर्शाने से बना ग्राफ़ अपेक्षाकृत फ़्लैट होता है । फ़्लैट ग्राफ़ यह दर्शाता है कि
संक्रमण फैलने की दर अधिक नहीं है या यह कि संक्रमण की दर में पूर्वापेक्षा सुधार
हुआ है । अतः किसी संक्रमण के संदर्भ में फ़्लैटनिंग द कर्व अच्छा माना जाता है ।
अगली परिभाषा है – “Social distancing” अर्थात सामाजिक दूरी
। किसी समय में सोशल डिस्टेंसिंग का अर्थ सामाजिक भेदभाव हुआ करता था किंतु कोरोना
ने इसके अर्थ को पूरी तरह बदलते हुये सकारात्मक बना दिया है । वास्तव में
नकारात्मक अर्थों वाली सोशल डिस्टेंसिंग को हड़बड़ाहट में सकारात्मक अर्थों में
स्तेमाल कर लिया गया । सोशल डिस्टेंसिंग को जिन अर्थों में स्तेमाल किया जाने लगा
है उसके लिये सही शब्द थे – “फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग” । कुछ लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग
शब्दों का विरोध भी किया और उनके स्थान पर “फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग” कहे जाने का
परामर्श दिया किंतु झटके में आयी सोशल डिस्टेंसिंग ने हटने का नाम नहीं लिया । यूँ,
मुझे लगता है कि सोशल डिस्टेंसिंग के स्थान पर “मेडिकल अनटचेबिलिटी”
का प्रयोग करना कहीं अधिक उपयुक्त है । आख़िर ऑपरेशन थिएटर में इसका पालन किये बिना
कोई सर्जन ऑपरेशन करने की बात सोच भी नहीं सकता । आप चाहें तो इनके स्थान पर हायज़ेनिक
अनटचेबिलिटी जैसे शब्दों का भी स्तेमाल कर सकते हैं । इस श्रंखला का अंतिम शब्द है
–“Furlough”. यह शब्द भी नया नहीं है किंतु कोरोना काल में
प्रचलित ख़ूब हुआ है यानी कोरोना ने इस शब्द में नयी जान फूँक दी है । “फ़र्लो” शब्द
का स्तेमाल किसी कर्मचारी की अपने कर्तव्य स्थल से अनुपस्थिति को “उपस्थिति” मानने
के लिये किया जाता है, यह अवकाश नहीं है फिर भी आप घर पर
रहते हैं और आपको ऑन ड्यूटी मान लिया जाता है ।
जीवन
में हायज़िन के महत्व को इतनी शिद्दत से आम आदमी ने पहले कभी नहीं स्वीकार किया था
जितना कि कोरोना के आने के बाद किया । कोरोना वायरस ने हमें अपने पूर्वजों के अतीत
की एक खिड़की खोलने के लिये विवश कर दिया । हमने उनकी जीवनशैली में झाँक कर देखा और
उसे दोहराने का प्रयास किया । हमने अस्पर्श्यता की सोशियो-पोलिटिकल संवेदनशीलता से
बचते हुये स्पर्श की हायज़ेनिक गम्भीरता को चुपचाप स्वीकार कर लिया । हम सब
पर-स्पर्श से डरने लगे, मेला-मदार और सिनेमा जाने से डरने लगे, यात्रा करने
से डरने लगे । इस बीच हमने मनोरंजन के विकल्पों पर सोचना शुरू किया और ऑफ़ीशियल
कार्यों की शैली में परिवर्तन करते हुये घर से ही काम करना शुरू किया जिससे काम के
घण्टों में वृद्धि हुयी और बेहतर आउटपुट मिलना प्रारम्भ हुआ । जगदलपुर जैसे शहर
में भी हमें कुछ लोग ऐसे मिल गये जिन्होंने भोजन पकाने के लिये अपने रसोयीघर में
मिट्टी के बर्तनों को ससम्मान स्थान दिया और मेटेलिक बर्तनों को स्थायीरूप से बाहर
का रास्ता दिखा दिया । ज़ालिम कोरोना ने हमें सभ्यता की एक नयी परिभाषा सिखा दी है,
इसीलिये मैं इसे डार्क मैटर से एनर्ज़ी का प्रस्फुटन कहता हूँ ।
कितनी सही बात ... बुरे में भी अच्छाई को देखना ...
जवाब देंहटाएं...और शत्रु की अच्छाई को स्वीकार करना ।
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