पिछले कई सालों से मोतीहारी वाले मिसिर जी आम आदमी को
खोज रहे हैं । उस आदमी को खोज रहे हैं जो देश का अंतिम उपभोक्ता है, दैनिक उपभोग की जाने वाली
चीजों का ही नहीं बल्कि निराशा, क्रोध और शोषण की श्रंखला
का भी अंतिम उपभोक्ता । मिसिर जी ने ग़रीबों की बस्ती में जाकर खोजा, वहाँ हर कोई रोटी की
जुगाड़ में व्यस्त था, किसी को भी उनकी बात का
उत्तर देने का समय नहीं था । फिर उन्होंने बाजार में ख़रीददारी करती मध्यम आय वर्ग
की भीड़ में जाकर खोजा, यह भीड़ किसी लफड़े में
नहीं पड़ना चाहती थी, लोग बचकर सरकने लगे, भीड़ छँट गयी तो मिसिर जी
अकेले रह गये ।
इस बीच चुनाव का मौसम एक बार फिर आ गया तो मिसिर जी ने चुनाव
प्रचार करने वाली भीड़ में जाकर आम आदमी को खोजने का प्रयास किया, मिसिर जी को लगा कि इन
लोगों से अधिक व्यस्त और कोई नहीं है, यहाँ भी कोई बात नहीं बनी
। मिसिर जी ने वोट डालने वाले लोगों की लम्बी कतार को देखा, वे उनसे बात करना चाहते
थे लेकिन पुलिस के जवानों ने उन्हें उन लोगों के पास नहीं फटकने दिया ।
मिसिर जी के पाँव उस बस्ती की ओर मुड़ गये जिसे अक्खा
दुनिया इण्डिया की दलित बस्ती के नाम से जानती है । मिसिर जी ने देखा, वहाँ विवाद हो रहा था ।
कुछ लोग दलित बनना चाहते थे, कुछ लोग उन्हें दलित
स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं थे । मिसिर जी को लगा कि दलित होना एक उपलब्धि है
इसलिये यहाँ भी किसी आम आदमी के होने की कोई सम्भावना नहीं है ।
यह वर्गभेद और जातियों को जन्म देने के आरोप से आरोपित
एवं बुरी तरह कुख्यात हो चुके मनु का युग नहीं बल्कि ब्रिटिश हुक़ूमत का ज़माना था
जब वर्गभेद समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध इण्डिया ने एक नया वर्ग उत्पन्न किया और जिसे पूरी दुनिया ने
“दलित” के नाम से जाना । फ़्री इण्डिया के वर्गभेद विरोधी नायकों ने जातियों और
उपजातियों के समूहों का एक बार फिर वर्गीकरण किया । कुछ लोगों को अनुसूचित
जातियों, जनजातियों और दलितों में सम्मिलित किया जाने लगा ।
प्रारम्भ में कुछ लोगों को उन्हें दलित कहा जाना अच्छा नहीं लगा लेकिन बाद में वे
इस उपाधि से गौरवान्वित होने लगे । धीरे-धीरे इस नये वर्गीकरण का हिस्सा बनने की प्रतिस्पर्धा
में बहुत से लोग ख़ुशी-ख़ुशी सम्मिलित होने लगे ।
दलित होना, दलित खोजना, और दलित बनाये रखना
इण्डियन राजनीति की बहुत बड़ी आवश्यकतायें हो गयी हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह
विभिन्न धर्म, विभिन्न सम्प्रदाय और विभिन्न संगठन ।
मिसिर जी की खोज अभी पूरी नहीं हुयी है...
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