मेरी भतीजी तान्या, पीएच. डी. के लिये
यू.एस.ए. चली गयी और अब कभी इण्डिया वापस नहीं आना चाहती, उसे भारत की तलाश है ।
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मेरा भान्जा पार्थ, फ़िज़िक्स में रिसर्च करने
यू.एस.ए. चला गया और अब कभी इण्डिया वापस नहीं आना चाहता, उसे भी भारत की तलाश है ।
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मेरा बड़ा भतीजा सुस्मित, बीस साल बाद सेवानिवृत्त होते
ही भारत की खोज में एक बार फिर इण्डिया आना चाहता है ।
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मेरा बेटा अचिंत्य, लॉस एंज़ेल्स जाकर बस जाना
चाहता है और वहीं रहकर एक नन्हें
भारत की रचना का स्वप्न देखता है ।
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मोतीहारी वाले मिसिर जी जीवन
भर इण्डिया में भारत की खोज करने में व्यस्त रहे हैं, उनकी खोज अभी तक पूरी नहीं
हो सकी है ।
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हमने गोरखपुर वाले ओझा जी
को फोन लगाया, -“क्या एक दिन हमें भी भारत
छोड़कर जाना होगा?”
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ओझा जी बोले – “ना, हम कहिओ ना जाइब, हिमालय चल देब, ओहिजे एगो छोट-मोट भारत
बना लेब आ लिट्टी-चोखा आ आलू-गोभी के सब्जी खा के बाकी जिनगी गुजार देब”।
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देवताओं की भीड़ नहीं होती, इसलिये उन्हें राक्षसों
और दैत्यों से डरना पड़ता है । भयभीत और असंगठित देवताओं को पलायन करना पड़ता है । राक्षसी शक्तियाँ उन्हें
भगा दिया करती हैं ।
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भारत में देव, दानव, दैत्य, राक्षस और मानव जैसी
विरोधी वृत्तियों का सदा संघर्ष होता रहा है । एक दिन भारत में राक्षसों, दैत्यों और दानवों का
वर्चस्व होना निश्चित है, तब देवों को भारत छोड़कर
पाताललोक जैसे किसी स्थान पर जाकर छिपना होगा । आसुरी शक्तियाँ वहाँ से भी उन्हें
खदेड़ देंगी । देवता भागते रहेंगे, असुर उन्हें खदेड़ते
रहेंगे ।यही होता आया है, भागने भगाने का यही क्रम है
।
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सुना है, किसी मुस्लिम देश में हिंदुओं
के लिये एक भव्य मंदिर बनाया गया है... इधर यह भी उतना ही सत्य है
कि इण्डिया में मंदिरों को ध्वस्त करने की सदियों पुरानी परम्परा आज भी व्यवहृत
होती है ।
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