माओ ज़ेदॉन्ग ने सत्ता का रास्ता बंदूक की नली से होकर पा लिया था । यह कोई नई बात नहीं है, लाखों वर्षों से ऐसा ही होता आया है । छल और बल से सत्ता हथियाने की चालों से पूरी दुनिया परिचित है । इसी तर्ज़ पर भारत में भी चीन के लिये जनवादी युद्ध का खेल चल रहा है । भारत के लोग इस मुग़ालते में हैं कि वे ज़माने चले गये, अब कोई हमसे हमारी आज़ादी नहीं छीन सकेगा । बस्तर के लोगों से पूछिये जिनकी तीन पीढ़ियाँ जनवादी युद्ध देखती आ रही हैं ।
जिस तरह
मनुवाद, हिंदुत्ववाद और ब्राह्मणवाद षड्यंत्रपूर्वक गढ़े हुये छद्म शब्द हैं उसी
तरह जनवाद भी एक छद्म शब्द है, वास्तविकता के धरातल पर इन
शब्दों का कोई अस्तित्व नहीं है । तीन अप्रैल 2021 को बस्तर संभाग के बीजापुर जिले
के तर्रेम गाँव के पास के जंगलों में घात लगाकर सैन्यबलों पर किये गये हमले को वे
जनवादी युद्ध कहते हैं जिसमें उन सैनिकों की हत्या कर दी गयी जो न तो पूँजीपति थे,
न शोषक, न फासीवादी, न
ब्राह्मणवादी, न मनुवादी और न वेदपाठी हिंदू । सात घण्टे तक
चले इस हमले में फ़ोर्स के 23 जवान न्योछावर हुये और 31 घायल हो गये । सैन्यबलों के
संयुक्त जवाबी हमले में 16 से अधिक माओवादी गुरिल्ले मारे गये और 25 से अधिक घायल
हुये ।
माओटिक
एम्बुश लगाकर किये गये गुरिल्ला हमले में खेत रहे सुरक्षा बलों के बच्चे अनाथ हो
गये हैं और उनकी पत्नियाँ विधवा । तथाकथित माओवादी जनताना सरकार के गुरिल्लाओं
द्वारा सैनिकों की हत्या करके उनके परिवार वालों को यह कैसी स्वतंत्रता दी गयी है ? अनाथ
परिवार को यह कैसे मौलिक अधिकार दिये गये हैं ? अनाथ बच्चों
के साथ यह कैसा न्याय किया गया है ?
इस
गुरिल्ले हमले की व्यूह रचना कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया (माओवादी) की सेण्ट्रल
मिलिट्री कमीशन के चीफ़, 40 लाख के इनामी ख़ूँख़ार माड़वी हिड़मा के द्वारा की गयी थी जो पीपुल्स
लिबिरेशन गुरिल्ला आर्मी की दण्डकारण्य स्पेशल ज़ोन कमेटी की बटालियन नम्बर एक का
कमाण्डर इन चीफ़ है ।
माड़वी
हिड़मा की व्यूह रचना के अनुसार पहले तो उसने मुख़बिर के माध्यम से अपनी मौज़ूदगी की
सूचना फ़ोर्स तक पहुँचायी और जब तीन अप्रैल की दोपहर सी.आर.पी.एफ़. की कोबरा यूनिट, डिस्ट्रिक्ट
रिज़र्व गार्ड और स्पेशल टास्क फ़ोर्स के
संयुक्त अभियान में सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया तो पहले से पाँच स्थानों पर एम्बुश
लगाकर घेराबंदी के लिये तैयार गुरिल्ला बटालियन के सैकड़ों गुरिल्लाओं ने ए.के. 47,
कंसास और यू.जी.बी.एल जैसे अत्याधुनिक हथियारों से फ़ोर्स की
टुकड़ियों पर हमला कर दिया जिनमें 760 जवान और अधिकारी सम्मिलित थे । माओवादी
प्रवक्ता अभय के अनुसार पाँच में से तीन एम्बुश सफल रहे जबकि दो स्थानों पर बम
लगाने में हुयी तकनीकी चूक से असफल हो गये । एक स्थान पर तो सुरक्षा बलों को
स्थानीय गाँव वालों ने बातों में उलझाने की कोशिश की तभी माओ गुरिल्लाओं ने उनपर
हमला कर दिया । गुरिल्लाओं द्वारा पहले भी इसी शैली में व्यूह रचना की जाती रही है
इसके बाद भी सुरक्षा बलों का उनके जाल में फँस जाना दुःखद है ।
जिस
स्थान पर यह घटना हुयी है वहाँ से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर हिड़मा का पैतृक गाँव
पूवर्ती है । आसपास के जंगल के चप्पे-चप्पे से अच्छी तरह परिचित और गुरिल्लाओं के
चार स्तरीय सुरक्षा घेरे में रहने और ए.के. 47 जैसे अत्याधुनिक हथियार से हमेशा
लैस रहने वाला हिड़मा अपने क्षेत्र का बेताज बादशाह माना जाता है । उसके सुरक्षा
घेरे में साये की तरह रहने वाले गुरिल्लाओं की संख्या 250 से लेकर 300 तक होती है
।
तीन
अप्रैल की रात को गुरिल्लाओं की उपस्थिति में ही घायल और लापता सैनिकों एवं शवों
की जंगल में खोज की गयी और उन्हें एयर लिफ़्ट किया गया । यह खोज अगले दिन चार
अप्रैल को भी जारी रही । जिस समय सैन्यबलों द्वारा अपने सैनिकों की खोज की जा
रही थी उस समय भी माओवादी वहाँ उपस्थित थे
किंतु उन्होंने दोबारा हमला नहीं किया बल्कि चुपचाप सारी गतिविधि देखते रहे ।
किंतु हमेशा ही ऐसा नहीं होता, कभी-कभी तो वे शव उठाने आये
सैन्यबलों पर भी घात लगाकर हमला कर दिया करते हैं । किंतु इस बार एक गुरिल्ला ने
तो सैन्यबलों के सामने ही एक सैनिक के साहस की तारीफ़ भी की जिसने किसी गुरिल्ला से
हथियार छीनने की कोशिश की थी । उसे गोली लगी फिर भी वह आख़िरी दम तक गुरिल्लाओं के
विरुद्ध लड़ता रहा । गुरिल्लाओं के मूड को कोई नहीं जानता, कभी
वे घायल सैनिकों को अपने पास से पानी भी पिलाते हैं तो कभी उनके शवों को जूतों से
ठोकरें मारते और उन पर कूद-कूद कर नाचते हैं ।
साल 2010
में चिंतलनार और ताड़मेटला के जंगलों में सी.आर.पी.एफ़. पर हमला करके 76 जवानों की
हत्या, 2013 में झीरम घाटी हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र
कर्मा, और नंदकुमार पटेल सहित अन्य कई लोगों की हत्या,
2017 में बुर्कापाल एम्बुश में सी.आर.पी.एफ़. के 23 जवानों की हत्या
में शामिल माड़वी हिड़मा पर चालीस लाख का इनाम है । हिड़मा ने अपनी सुरक्षा के लिये
रहस्य का कवच ओढ़ रखा है । कोई नहीं जानता कि उसकी उम्र कितनी है और वह देखने में
कैसा है । कुछ लोग
उसे 20 साल का जवान मानते हैं तो कुछ उसे 40 साल का तो कोई 50 साल का अधेड़ । कुछ
लोग कहते हैं कि वह झीरमघाटी काण्ड के बाद एक मुठभेड़ में मारा गया और अब उसका नाम केवल
एक पद के रूप में स्तेमाल किया जाता है । अपने रहस्यमयी कवच के कारण यदि वह
सैन्यबलों के पास भी खड़ा रहे तो उसे कोई पहचान नहीं सकेगा । उसकी पत्नी राजे भी माओवादी
संगठन की सक्रिय सदस्य है ।
पीपुल्स
लिबिरेशन गुरिल्ला आर्मी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सुसज्जित सेना है ।
स्वतंत्र भारत में केवल यही एक ऐसा राजनीतिक दल है जिसके पास अपनी समानांतर सेना है
और जो भारत के सैन्यबलों को समय-समय पर कड़ी चुनौती देती रहती है । गुरिल्ला सेना
में स्पेशल एरिया मिलिट्री कमेटी और ज़ोनल मिलिट्री कमिटी होती हैं जो हथियार
उपलब्ध कराने, युद्ध की व्यूह रचना करने, गुरिल्ला हमले करने और
शासकीय सम्पत्तियों को गम्भीर क्षति पहुँचाने के मिशन में संलग्न रहती हैं ।
सिक्किम से लेकर कर्नाटक तक रेड कॉरीडोर बनाकर भारत को उत्तरी और दक्षिणी भागों
में बाँटने का स्वप्न इनकी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है । माओवादी गुरिल्ले
भारत में चीनी शासन पद्धति लाने के लिये प्रयासरत हैं । हम बहुत ज़ल्दी यह भूल गये
कि भारत पर पिछली कई शताब्दियों से तलवारों और बारूद का ही शासन रहा है ।
गुरिल्लों की शवयात्रा में शामिल गुरिल्लों की सेना
इस तथाकथित जनवादी युद्ध के औचित्य के बारे में देशवासियों को गम्भीरता से मंथन करना होगा । यह देश हम सबका है, देश के अस्तित्व और इसकी सम्प्रभुता के प्रति हम सभी के दायित्व हैं जिनके निर्वहन के लिये हमें अपनी-अपनी भूमिका तय करनी होगी ।
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