देश-काल-परिस्थितियों
के अनुसार शासनतंत्र स्थापित और तिरोहित होते रहते हैं । हो सकता है चीन के समाज
और चीनियों की आवश्यकताओं के लिये माओ ज़ेदॉन्ग (माओ-त्से-तुंग) की नीतियाँ उपयुक्त
रही हों किंतु कोई भी एक राजनैतिक व्यवस्था सार्वदेशज और सार्वकालिक नहीं हो सकती
। चीन ने अपनी आवश्यकता के लिये भारत से बौद्ध धर्म आयात किया तो भारत के कुछ
लोगों ने अपनी आवश्यकता के लिये चीन से उनका माओवाद आयात कर लिया । माओवाद यानी
हिंसा से सत्ता की प्राप्ति ।
विश्व
भर के रक्तरंजित इतिहास से तो हमने यही जाना है कि सत्ता का रास्ता बंदूक की नली
से होकर गुजरता है ...किंतु हमेशा नहीं । सत्ता का रास्ता छल से भी होकर गुजरता है
और शिवत्व की राह से होकर भी । फिर भी कोई भी सत्ता आज तक कभी स्थायी नहीं हो सकी
। ओट्टोमन साम्राज्य की तरह ब्रिटिश साम्राज्य और मुगल सल्तनत को भी अंततः एक दिन
अस्त होना ही पड़ा ।
यहाँ
प्रस्तुत हैं जनवादीक्रांति की राह पर बस्तर के जंगल में माओगुरिल्लाओं के एक दिन
की कुछ झलकियाँ –
भारतीय
सुरक्षा बलों को गोलियों और विस्फोटकों से उड़ाने के लिये साथियों को अंतिम निर्देश
देते गुरिल्ला अधिकारी
माओ का
सांस्कृतिक विभाग, रात में मोटर सायकल की हेड लाइट की रोशनी में जनवादी गीतों और नाटकों के
माध्यम से ब्रेन वाश के रिहर्सल की तैयारी
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) की जनताना सरकार
के गुरिल्ला अधिकारी
बुलंद हौसलों के साथ माओवादियों का प्रचारतंत्र, कामरेड गुरिल्लाओं के पीछे
ट्राईपोड्स पर रखे हैं उनकी गतिविधियों की शूटिंग के लिये जंगल में अत्याधुनिक
कैमरे
रक्तक्रांति
के लिये जंगल में गुरिल्लाओं की ट्रेनिंग
जंग का
ऐलान, माओ कैम्प में हथियारों के ज़खीरे का निरीक्षण और प्रदर्शन
जंगल है
सर्वाधिक सुरक्षित ठिकाना, घर भी वही, युद्धक्षेत्र भी वही और जनताना सरकार का
कार्यालय भी
वही
गुरिल्ला टुकड़ी ने भोजन तैयार कर लिया है, भारत सरकार को अपनी निर्भयता और बुलंद हौसलों का संदेश देने के लिये भोजन
से ठीक पहले एक फ़ोटो सेशन भी ज़रूरी है
रक्तक्रांति
की राह पर, जंगल में अगले पड़ाव की योजना बनाते माओगुरिल्ला
जंगल-जंगल
रक्तक्रांति के लिये लाव-लश्कर के साथ भोजन के बाद अगले पड़ाव की ओर, साथ
में है दवाइयों की पेटी लिये एक महिला गुरिल्ला
स्थानीय निवासियों के ब्रेन वाश की तैयारी में ढपली
और जनवादी गीतों के साथ माओगुरिल्ला मण्डली
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