चुनावों के समय होने वाली मौसमी हिंसाओं से बंगाल पहले से ही रक्तरंजित और दहशत से भरा रहा है किंतु इसबार हिंसा और दहशत ने नये आयाम स्थापित किये हैं ।
साहित्यकारों, कलाकारों,
वैज्ञानिकों और क्रांतिकारियों की धरती बंगाल के वीभत्स होते जा रहे
इस स्वरूप के लिये उत्तरदायी कौन है ? धार्मिक हिंसाओं,
उपद्रवों और राजनीतिक दलों के एक-दूसरे पर हिंसक आक्रमणों के बाद
पत्रकारों पर हिंसक आक्रमणों से बंगाल की जो नयी और वीभत्स छवि उभर कर पूरे देश के
सामने आ रही है वह व्यथित और आक्रोशित करने वाली है । क्या यह बंकिमचंद्र
चट्टोपाध्याय, रवींद्रनाथ ठाकुर, शरतचंद्र,
सुभाषचंद्र बोस, यतींद्रनारायण बोस और जगदीशचंद्र
बोस का बंगाल है ?
सुपरस्टीशन, साइंस
एण्ड इम्पॉर्टेंस ऑफ़ एजूकेशन...
मोतीहारी
वाले मिसिर जी का विश्वास है कि शिक्षा से चीजों को देखने का हमारा दृष्टिकोण बदल
जाया करता है ।
किस्से
और किस्से पर लिखी गयी स्क्रिप्ट में फ़र्क होता है । अशिक्षित ग्रामीण द्वारा
सुनाया गया नाग-नागिन का किस्सा अंधविश्वास होता है, किंतु किसी पढ़े-लिखे
फ़िल्मकार द्वारा नाग-नागिन के किस्सों पर बनायी गयी फ़िल्में या धारावाहिक वाऽओ और
साइंटिफ़िक होते हैं ।
आस्था
और आस्था पर बनी फ़िल्म में फ़र्क होता है । अशिक्षित ग्रामीण द्वारा ईश्वर के प्रति
आस्था और भक्ति पिछड़ेपन और अंधविश्वास के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता, किंतु
किसी पढ़े-लिखे फ़िल्मकार द्वारा शनिदेव, संतोषीमाता और
साईंबाबा के चमत्कारी किस्सों पर बनायी गयी फ़िल्में या धारावाहिक वाऽओ और
साइंटिफ़िक होते हैं ।
किसी
चीज के सेवन करने के दृष्टिकोण में फ़र्क होने से जीवनस्तर बदल जाया करता है । गाँव
का अशिक्षित आदमी लाँदा, हँडिया और ताड़ी का सेवन करता है किंतु उच्चशिक्षित आदमी महँगी शराब,
स्मैक और कोकीन का सेवन करता है ।
माँगने-माँगने
में फ़र्क होता है । अशिक्षित आदमी बख़्शीश माँगता है, शिक्षित आदमी रिश्वत
माँगता है ।
हाँकने-हाँकने
में भी फ़र्क होता है । अशिक्षित आदमी भेंड़ें हाँकता है, शिक्षित
आदमी केवल आदमी को ही हाँकता है ।
लॉक-डाउन
एण्ड ट्रीटी विद कोरोना...
डबल
म्यूटेंट कोरोना की दहशत से फ़्रांस में एक महीना के लिये फिर से कम्प्लीट लॉकडाउन की
घोषणा कर दी गयी है । कोरोना से निपटने के ब्राज़ीलियन तरीकों के बारे में हम कोई
बात नहीं करेंगे । इधर भारत में भी कोविड संक्रमितों की संख्या में बहुत तेज़ी से
इज़ाफ़ा होता जा रहा है । आत्मनियंत्रण और सेल्फ़ क्वोरंटाइन की बातें हो रही हैं ।
मॉल और सिनेमाघर फिर से बंद हो रहे हैं । मामला कभी नीम-नीम कभी शहद-शहद जैसा है ।
कोरोना
और इंसानों के बीच एक ट्रीटी हुयी है जिसके अनुसार स्टेशन पर ट्रेन छूटने से 90
मिनट पहले, जबकि कोरोनवा लंच के लिये चला जाता है, इंसानों की
भीड़ परमिटेड है, जबकि यात्रियों की सुविधा के लिये ट्रेन के
अंदर एक साथ बैठकर ताश खेलने और गप्पें मारने पर कोई प्रतिबंध नहीं है । ट्रीटी के
अनुसार यदि आप किसी चुनाव-प्रचार, आंदोलन और भारतबंद
कार्यक्रम में सहभागी नहीं हैं तो एक साथ पाँच लोग तफ़रीह के लिये सड़क या पार्क में
नहीं निकल सकते और न कहीं एक साथ खड़े हो सकते हैं ।
चोरों
को रात में चोरी करने की पुरानी परम्परा में परिवर्तन करना होगा । दुनिया भर के
कोरोना रात में शिकार के लिये निकलते हैं जबकि दिन में वे गहरी नींद में सोये रहते
हैं । रात का लॉक-डाउन उन लोगों के लिये लाभकारी है जो रात में शिकार या धंधे पर
नहीं निकलते ।
जब
डॉक्टर्स ने बताया कि कोविड-19 की वैक्सीन का शॉट लेने वालों को मदिरा से दूर रहना
होगा वरना उनमें इम्यूनिटी डेवलप नहीं हो सकेगी और जो लोग पहले से ही मदिरा सेवन
के अभ्यस्त हैं उनमें इम्यूनिटी डेवलप होने की सम्भावनायें क्षीण हैं तो हमने अपने
आसपास झाँक कर देखा । आसपास का नज़ारा कुछ अलग था । शराब की दुकानें खुली थीं जहाँ मदिराप्रेमी
कतार बना कर खड़े थे । हमें बताया गया कि सरकार ने वायरस और शराब के बीच एक ट्रीटी स्थापित
करते हुये बहुत सोच-समझकर गधा-पचीसी की उम्र में भी मद्यसेवन की वैधानिक अनुमति
प्रदान कर दी है । सरकार कभी ग़लत नहीं हो सकती ।
शराब है, वायरस
है… चार दिन की ज़िंदगी है, पल भर की मौत
है… जिसे जो चाहिये ले ले, रोका किसने है!
बहुत बढ़िया .... भिगो भिगो कर मारा है ....
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