लॉक-डाउन
के तमाम नियमों और वैक्सीन को धता वताते हुये कोरोना वायरस ने अपने पैर पसारना
जारी रखा है । पोस्ट वैक्सीनल वैस्कुलर इम्बोलिज़्म की कुछ घटनाओं के बाद
गायनेकोलॉज़िस्ट डॉ. तस्लीमा नसरीन भी डर गयी हैं और अब दूसरा शॉट लेने का निर्णय
नहीं ले पा रही हैं । ऐसी द्विविधा बहुत से लोगों के साथ है ।
कल एक
शिक्षित महिला ने मुझसे पूछा – “मैंने मात्र दो दिनों के
अंतराल पर अपनी आर.टी. पी.सी.आर. जाँच करवायी । पहली बार यह रिपोर्ट पॉज़िटिव थी
जबकि ठीक दो दिन बाद ही निगेटिव हो गयी, क्या ऐसा सम्भव है”?
रायबरेली के नीरज वाजपेयी बताते हैं कि आर.टी. पी.सी.आर. की जाँच
रिपोर्ट में आने वाली भिन्नताओं से लोगों के मन में संदेह उत्पन्न होने लगे हैं और
आम आदमी इसे विश्वसनीय नहीं मान पा रहा, वह बात अलग है कि
इसके बाद भी आम आदमी के पास आर.टी. पी.सी.आर. का कोई विकल्प नहीं है ।
इधर न्यूली
म्यूटेण्ट कोरोना वायरस ने भी अपने शौर्य प्रदर्शन में परिवर्तन कर लिया है ।
लंग्स फाइब्रोसिस की विकृति होना अब आवश्यक नहीं है बल्कि नये कोरोना सिण्ड्रोम
में आँखों की कन्जेंक्टीवाइटिस, सिरदर्द, बुख़ार, पेट में दर्द या दस्त की शिकायतें मिलने लगी
हैं । वैक्सीन से होने वाली इम्यूनिटी की अधिकतम अवधि छह माह होने की उम्मीद की
जाती है । ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिये यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है ।
मैं
लोगों से पूछता हूँ – इतनी बड़ी समस्या से निपटने के लिये आपने क्या तैयारी की है? ड्रॉपलेट इन्फ़ेक्शन को न्यूनतम करने के लिये आप क्या करते हैं? क्या आपने पारिस्थितिक अनुकूलन के लिये अपनी जीवनशैली में कोई परिवर्तन
किये हैं? मुझे इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर नहीं मिलते ।
सब्जी वाले जोर-जोर से चिल्लाकर सब्ज़ी बेचते है जिससे उसके सामने रखी सब्ज़ियों की
सतह पर ड्रॉपलेट्स की एक पर्त बन जाती है । मिठायी वाले जिस हाथ से करेंसी का
लेन-देन करते हैं उसी हाथ से मिठायी भी तौलते हैं । स्थानीय प्रशासन से इसे रोकने
का लिखित अनुरोध करने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी... किंतु आम आदमी ने
अपने स्तर पर इस समस्या से निपटने के लिये क्या रास्ता निकाला?
ध्यान
रखें, कोरोना वायरस को पसंद है मोटापा, हृदयरोग और मधुमेह
। कोरोना वायरस सबसे पहले और सर्वाधिक इन्हीं तीन व्याधियों वाले लोगों को अपना
शिकार बना रहा है । इन तीनों व्याधियों का सम्बंध रिफ़ाइण्ड ऑयल के सेवन से भी जुड़ा
हुआ है । मैं, विगत कई वर्षों से इस सम्बंध में विभिन्न
आलेखों के माध्यम से लोगों को सचेत करता रहा हूँ । एक बार फिर से स्मरण करा दूँ कि
किसी तेल को रिफ़ाइन करने की प्रक्रिया में जिस पेट्रोकेमिकल “हेक्सॉन” का स्तेमाल किया जाता है वह अपने आप में
कैंसर उत्पादक है । रिफ़ाइण्ड ऑयल के स्तेमाल से ट्राईग्लिसरॉयड का संतुलन भी
बिगड़ता है जिसके कारण मोटापा, वैस्कुलर डिस-ऑर्डर्स और हाई
ब्लडप्रेशर की शिकायतें हो सकती हैं । आपको यह भी समझना होगा कि आजकल उच्च तापमान
पर तेल निकालने की दोषपूर्ण प्रक्रिया प्रचलन में आ चुकी है जिसका विरोध वैज्ञानिकों
द्वारा किया जाता रहा है । घानी से तेल निकालने की प्राचीन प्रक्रिया ही सर्वथा
उचित प्रक्रिया है इसलिये अब हमें अपने रसोयी घर से रिफ़ाइण्ड ऑयल को हटा कर घानी
से निकाले हुये वर्जिन ऑयल का ही स्तेमाल करना होगा ।
फेफड़ों
की बीमारियाँ भी कोरोना को पसंद हैं, इसलिये पल्मोनरी
ट्युबरकुलोसिस और दमा जैसी बीमारियों वाले लोगों को भीड़भाड़ से बचना होगा । बर्थडे
पार्टी में हमने केक के ऊपर मोमबत्ती सजा कर मुँह से फूँक मारकर बुझाने की अत्यधिक
अन-हायजेनिक परम्परा को अपना लिया है । एक ओर हम ड्रॉपलेट इन्फ़ेक्शन रोकने की बात करते
हैं और दूसरी ओर फूँक मारकर पूरे केक को ड्रॉपलेट्स से सराबोर कर देते हैं । क्या
आपने ऐसे केक का बहिष्कार करना शुरू किया है? सरकारों को दोष
देना बहुत आसान है किंतु शायद पहले और सबसे बड़े दोषी हम स्वयं ही हैं ।
कोरोना वायरस को निष्क्रिय करने के लिये अभी तक कोई दवा नहीं मिली है किंतु एण्टीऑक्सीडेण्ट्स, विटामिन सी और हल्दी मिले दूध के निरंतर उपयोग से शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी वायरस के फैलाव को रोकने में मदद मिलती है । कोरोना की युद्ध शैली गुरिल्ला वार की तरह होती है । वैक्सीन हमारे शरीर में माइक्रॉब्स से लड़ने के लिये एक उपयुक्त फ़ौज़ भर तैयार करती है । स्पष्ट है कि इस युद्ध से बेहतर है युद्ध की स्थितियों को समाप्त करना । इसलिये वैक्सीन लेने के बाद भी पूरी सावधानी अनिवार्य है । ध्यान रखें, वैक्सीन लड़ाई को गति देने का एक माध्यम है, लड़ाई को होने से रोकने का अंतिम उपाय नहीं ।
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